प्राइवेट जेट
पिछले सप्ताह हमने देश के नागर विमानन महानिदेशालय (DGCA) की लापरवाही का एक उदाहरण दिया था जहां डीजीसीए एक निजी एयरलाइन की ग़लतियों को अनदेखा कर रही थी। देर से ही सही पर डीजीसीए जागी ज़रूर। परंतु देश के नागरिक उड्डयन मंत्रालय के अधीन अन्य विभागों के कुछ अधिकारी भारत की एक निजी चार्टर सेवा पर कुछ विशेष मेहरबानियाँ कर रहे हैं। इन मेहरबानियों के चलते अति विशिष्ट व्यक्तियों की सुरक्षा के साथ खिलवाड़ हो रहा है।
एआर एयरवेज़ नाम की एक निजी एयर चार्टर कंपनी यह खिलवाड़ कर रही है। इस कंपनी की सेवाओं का उपयोग करने वाले अति विशिष्ट यात्रियों को इस बात का अंदाज़ा भी नहीं है कि किस तरह उनके जीवन से खिलवाड़ किया जा रहा है। इस कंपनी की सेवाओं का उपयोग उद्योगपतियों, राजनेताओं, नौकरशाहों, फिल्मी सितारों व अन्य मशहूर हस्तियों द्वारा किया जाता है। या इस कंपनी के मालिक अशोक चतुर्वेदी नियमों की धज्जियाँ उड़ा कर, गृह मंत्रालय द्वारा ‘सिक्योरिटी क्लीयरेंस’ (सुरक्षा मंजूरी) की बुनियादी आवश्यकताओं का उल्लंघन करके यह एयरलाइन चला रहे हैं।
किसी भी गैर अनुसूचित एयरलाइन के शीर्ष प्रबंधन को नागरिक उड्डयन आवश्यकताएँ धारा -3, श्रृंखला-सी, भाग-III के पैरा 11 का अनुपालन करना होता है, जिसके अनुसार, “गैर-अनुसूचित ऑपरेटर के परमिट के नवीनीकरण के लिए नई सुरक्षा मंजूरी की आवश्यकता होती है। कंपनी और उसके निदेशकों की व्यक्तिगत सुरक्षा मंजूरी के नवीनीकरण का अनुरोध परमिट की समाप्ति से 180 दिन पहले eSAHAJ पोर्टल के माध्यम से प्रस्तुत किया जाना चाहिए।
इस सुरक्षा मंजूरी को प्राप्त करने के लिए, कंपनी के वरिष्ठ अधिकारियों व निदेशकों को उनके खिलाफ लंबित कानूनी मामलों की घोषणा करना अनिवार्य होता है। इनमें से यदि किसी भी व्यक्ति को, किसी भी मामले में, दोषी पाया जाता है तो उसकी सुरक्षा मंजूरी को तब तक वैध नहीं किया जा सकता जब तक वह कानूनी मामलों से मुक्त नहीं हो जाता। ऐसे व्यक्ति द्वारा इन तथ्यों को छिपाने पर संबंधित अधिकारियों द्वारा उस पर मुकदमा भी चलाया जा सकता है। सिविल एविएशन रिक्वायरमेंट्स (सीएआर) के प्रावधानों के अनुसार, यदि किसी कारण से एयरलाइन के उच्च अधिकारियों की सुरक्षा मंजूरी रद्द कर दी जाती है तो एयर ऑपरेटर के परमिट का भी नवीनीकरण नहीं किया जा सकता।
देश के कानून का उल्लंघन करने पर जो भी करवाई होती है वो ज़्यादातर आम नागरिकों पर ही होती है। परंतु यदि किसी के सत्ता में ऊँचे संपर्क हैं तो वो प्रायः कानूनी करवाई से बच निकलते हैं। यही किया है भारत के नामी उद्योगपति अशोक चतुवेर्दी ने। उनकी एआर एयरवेज के नाम से जो निजी चार्टर कंपनी है उसे ‘क्लब वन’ के नाम से भी जाना जाता है। चूँकि ये एयरलाइन देश के जाने-माने और प्रभावशाली व्यक्तियों को अपनी सेवाऐं प्रदान करती है, इसलिए श्री चतुर्वेदी के उच्च पदासीन अधिकारियों के साथ गहरे संपर्क हैं।
ग़ौरतलब है कि एआर एयरवेज को एयर ऑपरेटर परमिट 2005 में दिया गया था। जिसे समय-समय पर नवीनीकृत किया गया। इसका आख़िरी नवीनीकरण 2019 से 2024 तक किया गया। इस बीच कंपनी के मालिक अशोक कुमार चतुर्वेदी को 2010 में एक आपराधिक मामले में सीबीआई द्वारा दोषी ठहराया गया। चतुर्वेदी को 13 दिसम्बर 2010 को इलाहाबाद उच्च न्यायालय के एक आदेश द्वारा जमानत पर रिहा कर दिया गया। परंतु आरोप मुक्त नहीं किया गया। इस मामले में उनकी याचिका अभी भी उच्च न्यायालय के समक्ष लंबित है। उल्लेखनीय है कि इसी मामले में उत्तर प्रदेश की पूर्व मुख्य सचिव श्रीमती निरा यादव को जेल जाना पड़ा था।
नागरिक उड्डयन मंत्रालय ने 30 जुलाई 2020 को एआर एयरवेज़ को एक कारण बताओ नोटिस जारी किया गया। जिसमें बताया गया कि गृह मंत्रालय से प्राप्त इनपुट के आधार पर, नागरिक उड्डयन मंत्रालय ने अपने पत्र दिनांक 26.06.2020 के माध्यम से अशोक चतुर्वेदी की सुरक्षा मंजूरी के नवीनीकरण से इनकार कर दिया है। नोटिस में यह उल्लेख किया गया कि सुरक्षा मंजूरी से इनकार के मद्देनजर, अशोक चतुर्वेदी नागरिक उड्डयन आवश्यकताओं का अनुपालन में नहीं रहे, इसलिए उन्हें यह नोटिस जारी किया गया कि क्यों न उनका एयर ऑपरेटर परमिट भी रद्द कर दिया जाए।
अशोक चतुर्वेदी व उनकी कंपनी द्वारा संतोषजनक उत्तर न मिलने पर मंत्रालय ने दिनांक 03.09.2020 और 04.09.2020 के आदेशों के अनुसार, उन्हें सुरक्षा मंजूरी देने से इनकार करने और उनके कर्मचारियों के हवाई अड्डे के प्रवेश परमिट भी रद्द कर दिये। इसी आधार पर चतुर्वेदी के एयर ऑपरेटर की सुरक्षा मंजूरी को भी अस्वीकार कर दिया गया। चूंकि एयर ऑपरेटर परमिट के अनुदान/नवीनीकरण के लिए सुरक्षा मंजूरी एक पूर्व-आवश्यकता है, इसलिए दिनांक 07.09.2020 के आदेश के अनुसार डीजीसीए ने एआर एयरवेज का एयर ऑपरेटर परमिट भी रद्द कर दिया।
इन नोटिसों को चुनौती देते हुए अशोक चतुर्वेदी ने दिल्ली उच्च न्यायालय से नोटिस की करवाई पर रोक लगवा ली। परंतु माननीय उच्च न्यायालय के 15 फ़रवरी 2021 के आदेश अनुसार सरकार को निर्देश दिये कि यदि क़ानूनी सलाह ली जाए तो सरकार कानून के अनुसार चतुर्वेदी के खिलाफ आगे बढ़ने को स्वतंत्र है। यानी सरकार यदि चाहे तो इस कंपनी व इसके मालिकों के ख़िलाफ़ उचित क़ानूनी करवाई भी कर सकती है।
चतुर्वेदी के रसूख और संबंधों के चलते, उन्होंने यह सुनिश्चित किया कि उनके लंबित पड़े भ्रष्टाचार के मामले में इलाहाबाद उच्च न्यायालय को किसी न किसी आधार पर टाला जाए और वह जमानत पर बने रहें। इसी तरह, नागरिक उड्डयन मंत्रालय में हर स्तर पर अपने संबंधों के चलते, वे यह सुनिश्चित कर रहे हैं कि अधिकारी दिल्ली उच्च न्यायालय के फैसले को चुनौती न दें या माननीय अदालत के फैसले के अनुसार, उनके खिलाफ कार्रवाई न करें।
यह राष्ट्रीय सुरक्षा से समझौता करने और अति विशिष्ट यात्रियों के जीवन से खिलवाड़ करने का एक स्पष्ट मामला है। जहां कंपनी के निदेशक इस अपराध के दोषी हैं वहीं नियम पुस्तिका की अनदेखी करने पर नागरिक उड्डयन मंत्रालय, उसकी सहयोगी एजेंसियां और अन्य संबंधित मंत्रालय भी समान रूप से जिम्मेदार हैं। देखना यह है कि इतने बड़े मामले को कब तक दबाया जाता है?
(*लेखक दिल्ली स्थित कालचक्र समाचार ब्यूरो के प्रबंधकीय संपादक हैं)
– भारत एक्सप्रेस