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फिलिस्तीन समर्थित आतंकी ग्रुप हमास और इजरायल के बीच छिड़ी जंग पर दुनिया भर की नजर है। जहां दुनिया के देश दो ध्रुवों में बंटे दिख रहे हैं, तो करीब-करीब यही स्थिति मुस्लिम देशों की भी है। मुस्लिम देश अपने नफा-नुकसान का आंकलन कर प्रतिक्रिया दे रहे हैं। कौन किसके साथ होगा? इसको लेकर सभी देशों की अपनी आर्थिक और राजनीतिक समझ है। अब तक जितने मुस्लिम देशों की प्रतिक्रिया सामने आई है, उसमें से संयुक्त अरब अमीरात और बहरीन ने इजरायल पर हमले के लिए हमास की निंदा की है। हालांकि यूएई और बहरीन की निंदा से पूरी दुनिया हैरत में है। क्योंकि तमाम मुस्लिम देश फिलिस्तीन के समर्थन में दिख रहे हैं।
पाकिस्तान, बांग्लादेश, अफगानिस्तान, मलेशिया, ईरान, सऊदी अरब, कतर, जैसे मुस्लिम देशों ने हमास की जगह उलटे इजरायल की निंदा की है और फिलिस्तीन के साथ होने का दावा किया है। जबकि ताजा हमला हमास की ओर से किया गया है। पाकिस्तान, सऊदी और कतर तो फिलिस्तीनियों के लिए अलग राज्य यानी टू नेशन सॉल्यूशन की स्थापना की मांग उठा रहे हैं। सऊदी अरब और कतर का कहना है कि इजरायल फिलिस्तीनियों के अधिकारों का दमन करता है। वहीं इजरायली सुरक्षा बलों पर अल-अक्सा मस्जिद पर छापेमारी का आरोप भी लगाए हैं।
इन देशों के उलट इजरायल को लेकर तुर्की का रूख आक्रामक नहीं है। तुर्की ने इजरायल और फिलीस्तीन के बीच मध्यस्थ की भूमिका निभाने का प्रस्ताव रखा है। उसका कहना है कि तनाव खत्म करने के लिए फिलिस्तीनियों के लिए एक अलग देश बनाया जाना चाहिए। हालांकि तुर्की को हमास और फिलिस्तीनियों का समर्थक माना जाता है।
एक वक्त था जब मिडिल-ईस्ट में पूरे मुस्लिम वर्ल्ड के साथ संयुक्त अरब अमीरात और बहरीन भी इजरायल को अछूत मानते थे और उससे कोई संबंध नहीं रखना चाहते थे। आज के दौर में अमेरिका के प्रयासों से इसमें बदलाव आया है। सितंबर 2020 में संयुक्त अरब अमीरात और बहरीन ने इजरायल के साथ अब्राहम नाम का एक समझौता किया। इस समझौते के बाद दोनों देशों ने इजरायल से राजनयिक रिश्ते कायम किए।
अब इजरायल और हमास के बीच जंग को लेकर संयुक्त अरब अमीरात का जो बयान आया है, वो साफ तौर पर बदलाव का संकेत दे रहे हैं। यूएई ने एक बयान में साफ कहा है कि इस जंग के लिए हमास जिम्मेदार है। हमास की ओर से किया गया हमला बेहद गंभीर है। यूएई ने इजरायल को लेकर कोई टिप्पणी नहीं की है। दोनों पक्षों से जंग खत्म करने की अपील की है। बहरीन ने हमास के हमले की आलोचना करने के साथ-साथ इजरायल के नागरिकों के अपहरण और बंधक बनाने की घटना पर हमास को लताड़ा है। उसने कूटनीति और बातचीत के जरिए समस्या के निदान पर जोर दिया है। बहरीन का कहना है कि हमास के हमले से हालात बेहद खतरनाक और तनावपूर्ण बन गए हैं। जंग को जल्द से जल्द रोका जाना चाहिए।
अमेकिका की मदद से इजरायल और यूएई के बीच समझौते का सबसे बड़ा उद्देश्य व्यापार को बढ़ावा देना था और दोनों इस उद्देश्य में काफी हद तक सफल भी रहे हैं। पिछले दो साल में साढ़े चार लाख से ज्यादा इजरायली संयुक्त अरब अमीरात पहुंचे। तो वहीं इजरायल की कई सारी कंपनियों ने अपना कारोबार भी शुरू कर दिया। इससे यूएई को जहां मैनपॉवर की आपूर्ति हुई, तो वहीं इजरायल के बेरोजगार लोगों के लिए नौकरी का अवसर मिला।
हालांकि यूएई फिलिस्तीनी मुसलमानों के लिए पवित्र माने जाने वाले अल- अक्सा मस्जिद में इजरायली सुरक्षा बलों के छापे का विरोध करता रहा है। और ये मुद्दा दोनों देशों के संबंधों के आड़े आता रहा है। 2022 के अप्रैल में यूएई ने यरुशलम और अल-अक्सा मस्जिद में इजरायल के घुसपैठ को लेकर विरोध दर्ज कराया था और उसके राजदूत को तलब कर सही माहौल बनाए रखने को कहा था। 2023 के शुरुआती महीने में जेनिन शरणार्थी शिविर पर इजरायल के छापे के बाद यूएई ने इजरायल से तनाव कम करने और जिम्मेदारी लेने को भी कहा था।
इसके बावजूद दोनों देश रक्षा, तकनीक और आर्थिक क्षेत्र में एक-दूसरे से फायदा उठा रहे हैं। तो वहीं यूएई के पर्यटन उद्योग को भी इजरायल से काफी लाभ हुआ है। अगर व्यापार की बात करें, तो इजरायल-यूएई के बीच अरबों डॉलर का द्विपक्षीय कारोबार हो रहा है। इसी साल दोनों देशों में मुक्त व्यापार समझौता हुआ है, जिसके तहत दोनों देशों के बीच आयात-निर्यात के करीब 96 फीसदी सामानों से टैक्ट हटा दिया गया है। यूएई ने इजरायल से एयर डिफेंस सिस्टम भी लिया है।
इन स्थितियों के बाद भी इजरायल से सामान्य रिश्ता रखने से संयुक्त अरब अमीरात को जो फायदा हुआ है, उसे यूएई नजरअंदाज नहीं कर सकता। जानकार मानते हैं कि संयुक्त अरब अमीरात बेशक फिलिस्तीन के मुसलमानों के लिए मुखर रहे, लेकिन इजरायल से मजबूत रिश्तों से होने वाले लाभ को अनदेखा नहीं कर सकता। माना जा रहा है कि यही कारण है कि वो हमास और इजरायल के बीच तनाव में इजरायल के साथ खड़ा है।
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