उपेन्द्र राय, सीएमडी / एडिटर-इन-चीफ, भारत एक्सप्रेस
भारत एक्सप्रेस
हिंडनबर्ग रिपोर्ट से शेयर बाजार में हाहाकार, ‘आपदा’ के लिए हम कितने तैयार?
साख के साथ-साथ हिंडनबर्ग रिसर्च अपनी रिपोर्ट जारी करने की टाइमिंग को लेकर भी सवालों के घेरे में है। रिपोर्ट अडाणी समूह की प्रमुख कंपनी अडाणी एंटरप्राइजेज के फॉलो-ऑन पब्लिक ऑफर (एफपीओ) से पहले आई है।
बीबीसी डॉक्यूमेंट्री: पीएम मोदी की वैश्विक छवि को धूमिल करने की औपनिवेशिक मानसिकता
राजनीतिक तौर पर प्रधानमंत्री के विरोध का उन्हें पूरा अधिकार है लेकिन जब वैश्विक स्तर पर प्रधानमंत्री पद पर सवाल उठते हैं तो उसका मतलब देश पर सवाल उठना होता है।
अध्यक्ष पद पर जेपी नड्डा को सेवा विस्तार: नया कार्यकाल, बीजेपी का अमृतकाल
बहरहाल नई पारी में जेपी नड्डा ने मिशन 2024 की शुरुआत कर दी है और गाजीपुर से इसका शंखनाद राजनीतिक रूप से विपक्ष के लिए एक बड़ा संदेश है।
‘शरीफ’ नहीं हैं पाकिस्तान के इरादे
शरीफ पर विश्वास करने की कोई वजह भी नहीं है। पाकिस्तान जब तक सीमा पार से आतंकवाद को नहीं रोकता, तब तक भारत को उससे क्यों बात करनी चाहिए?
हादसा नहीं बदलाव का उदाहरण बने जोशीमठ
सवाल उठता है कि विकास के नाम पर हम जो विध्वंस कर रहे हैं, क्या ये त्रासदी वाकई उसी का परिणाम हैं? अगर ये निर्विवाद सच्चाई है तो विकास की कीमत क्या होनी चाहिए?
दांव पर ‘विश्वगुरु’ की साख
जी-20 इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि यह संयुक्त राष्ट्र के सभी पांच स्थायी सदस्यों, G-7 के सभी सदस्यों और सभी BRICS देशों का प्रतिनिधित्व करता है।
पाकिस्तान का मर्ज, दुनिया का दर्द
पड़ोस में जब इतनी उथल-पुथल मची हो तो भारत भला कैसे निश्चिंत रह सकता है। चीन के साथ जारी संकट के बीच पाकिस्तान में तालिबान का बढ़ता आतंक हमारे लिए दोहरी परेशानी खड़ी कर सकता है।
कंझावला हादसे से महिला सुरक्षा पर गंभीर सवाल: नया साल, पुराना हाल
हमें समझना होगा कि महिला सुरक्षा को लेकर जीरो टॉलरेंस की नीति से कोई भी समझौता होगा, तो निर्भया, कंझावला जैसे मामलों पर रोक नहीं लग सकेगी।
2024 का इम्तिहान, 2023 में घमासान
कुछ मुद्दे हैं जो मोदी और बीजेपी को परेशान कर सकते हैं। तमाम प्रयासों के बावजूद बेरोजगारी का उच्चतम स्तर अभी भी केन्द्र सरकार के लिए चुनौती बना हुआ है।
आर्थिक मोर्चे पर ‘कुछ बड़ा’ करने का साल
2023 में जो एक चुनौती दिख रही है वो रोजगार के क्षेत्र से आती दिख रही है। हालांकि दुनिया के मुकाबले भारत में बेरोजगारी की स्थिति उतनी भयावह नहीं है लेकिन हालात कोई बहुत अच्छे भी नहीं हैं।