Bharat Express

विनीत नारायण, वरिष्ठ पत्रकार




भारत एक्सप्रेस


चिंता की बात यह है कि पैसे की हवस ने आज खेलों को भी एक उद्योग बना दिया है और खिलाड़ियों को इन उद्योगपतियों का ग़ुलाम। इस मामले में भारत में क्रिकेट पहले नंबर पर है।

पिछले दिनों अमिताभ बच्चन भी अपने पुराने दिनों को याद करके सहाराश्री का हाल पूछने उनके होटल गये थे. ऐसे तमाम लोगों को उनका जाना बहुत खलेगा.

दूसरा अनुभव बिहार के चार लड़कों के साथ हुआ. इनमें से तीन हमारे संस्थान में दो दशकों से कर्मचारी हैं. तीनों बड़े मेहनती हैं. चौथा भाई आईपीएस बनने बिहार से रायपुर (छत्तीसगढ़) चला गया. चार बरस तक तीनों भाई दिन-रात मेहनत करके उसकी हर मांग पूरी करते रहे.

वैसे महुआ का कहना है कैश यानी नकद कहां है? कब, कहां, किसने, किसे दिया और क्या सबूत है. यही नहीं, स्वेच्छा से आरोपों के समर्थन में जारी किये गये शपथ पत्र में नकद देने का जिक्र ही नहीं है.

बढ़ती हुई महंगाई में गरीबी रेखा से नीचे रहने वाला क्या खाएगा, क्या पहनेगा, कैसे घर में रहेगा, इलाज कैसे कराएगा और बच्चों को कैसे पढ़ाएगा? इसकी चिंता गरीबी की परिभाषा देने वालों को नहीं।

राहुल गांधी के इस नए तेवर ने और कर्नाटक विधान सभा में कांग्रेस की जीत ने राहुल गांधी को एक आत्मविश्वास दिया कि वे बांहें फैला कर हर विपक्षी दल को ‘इंडिया’ गठबंधन में जोड़ सके।

इसी तरह सनातन धर्म की संस्कृति में हर व्यक्ति की दिनचर्या व जीवन के विभिन्न स्तरों पर वर्णाश्रम व्यवस्था के माध्यम से एक संविधान उपलब्ध है।

जबसे करतारपुर साहिब कॉरिडोर खुला है तबसे अब तक सैंकड़ों ऐसे परिवार हैं जो 70 साल बाद अपने बिछड़े परिवार जनों से मिल पाये हैं।

लोकसभा के चुनाव अभी 6 महीना दूर हैं। पर उसकी बौखलाहट अभी से शुरू हो गई है। हर राजनैतिक दल को यह पता है कि गठबंधन की राजनीति से छुटकारा नहीं होने वाला।

हमारे देश की राष्ट्रपति, जिस जनजातीय समाज से आती हैं वहाँ की महिलाएँ घर और खेती के दूसरे सब काम करने के अलावा ईंधन के लिए लकड़ी बीन कर भी लाती हैं।