Bharat Express

विनीत नारायण, वरिष्ठ पत्रकार




भारत एक्सप्रेस


लोकसभा के चुनाव अभी 6 महीना दूर हैं। पर उसकी बौखलाहट अभी से शुरू हो गई है। हर राजनैतिक दल को यह पता है कि गठबंधन की राजनीति से छुटकारा नहीं होने वाला।

हमारे देश की राष्ट्रपति, जिस जनजातीय समाज से आती हैं वहाँ की महिलाएँ घर और खेती के दूसरे सब काम करने के अलावा ईंधन के लिए लकड़ी बीन कर भी लाती हैं।

विपक्ष का कहना है कि भाजपा ने लंबे अरसे से एनडीटीवी चैनल का बहिष्कार किया हुआ था। जब तक कि उसे अडानी समूह ने ख़रीद नहीं लिया.

बीजेपी के राजनैतिक प्रतिद्वंद्वी इसे विपक्ष के ताज़ा गठबंधन ‘आई एन डी आई ए’ के ख़ौफ़ से लिया गया कदम बताते हैं। ऐसे में इस फ़ैसले के क्या राजनीतिक, आर्थिक और भावनात्मक परिणाम होंगे वो तो समय ही बतायेगा।

चिंता की बात यह है कि हमारे नीति निर्धारक और सत्ताधीश इन त्रासदियों के बाद भी पहाड़ों पर इस तरह के विनाशकारी निर्माण को पूरी तरह प्रतिबंधित करने को तैयार नहीं हैं।

Mathura: आज से 2 वर्ष पहले तक मथुरा, वृन्दावन, गोवर्धन व बरसाना आना-जाना काफ़ी सुगम था। जो आज असंभव जैसा हो गया है। कोविड के बाद से तीर्थाटन के प्रति भी एक नया ज्वार पैदा हो गया है।

Election Commission: पिछले कुछ वर्षों में चुनाव आयोग की निष्पक्षता पर लगातार सवाल खड़े हो रहे हैं। आरोप है कि मौजूदा चुनाव आयोग केंद्र सरकार के इशारों पर काम कर रहा है।

बहुत से लोग मानते हैं कि जिस तरह की अभद्रता, अश्लीलता, कामुकता व हिंसा टी.वी. और सिनेमा के परदे पर दिखायी जा रही है, उससे समाज का तेजी से पतन हो रहा है.

असल में भाजपा और एनडीए को जिस बात से अधिक परेशानी है, वो विपक्षी दलों का एक ऐसा ऐलान है जिसका सामना भाजपा को आने वाले लोकसभा चुनावों में करना पड़ेगा।

आज से 32 वर्ष पूर्व 1991 में अपने इसी मध्य प्रदेश के सागर जिले के एक छोटे से गांव में एक आदिवासी दलित के मंदिर प्रवेश करने पर गांव के सवर्ण ने उसके मुंह पर पेशाब कर दिया था।