
Delhi Assembly Election 2025: अगर आपने कभी भी अपने जीवन में एक बार भी वोट दिया है तो आप चुनावी स्याही के बारे में जरूर जानते होंगे. मतदान के बाद लोग इस स्याही को दिखाकर गर्व से सेल्फी लेते हैं. यह स्याही मतदाता की उंगली पर इसलिए लगाई जाती है ताकि वह दोबारा वोट न डाल सके. चुनाव में निष्पक्षता बनाए रखने के लिए यह एक महत्वपूर्ण उपाय है, जिससे फर्जी मतदान को रोका जाता है. यह स्याही इतनी प्रभावी होती है कि इसे लगाने के बाद कई दिनों तक उंगली से नहीं हटाया जा सकता.
कौन खरीद सकता है चुनावी स्याही? (Delhi Assembly Election 2025)
चुनावी स्याही को भारतीय चुनाव प्रणाली में शामिल करने का श्रेय देश के पहले मुख्य चुनाव आयुक्त सुकुमार सेन को जाता है. यह स्याही ये दर्शाती है कि व्यक्ति ने अपना वोट डाल दिया है. इस स्याही को केवल सरकार और चुनाव से जुड़ी एजेंसियों को ही सप्लाई किया जाता है. इसे आम जनता के लिए थोक में नहीं बेचा जाता. इस स्याही का उत्पादन दक्षिण भारत स्थित मैसूर पेंट्स एंड वार्निश लिमिटेड (MVPL) द्वारा किया जाता है. यह कंपनी वर्ष 1937 में स्थापित की गई थी और तब से ही चुनाव आयोग को इस विशेष स्याही की आपूर्ति कर रही है.
कैसे बनती है चुनावी स्याही?
चुनावी स्याही को इंडेलिबल इंक या इलेक्शन इंक के नाम से भी जाना जाता है. इसे तैयार करने में सिल्वर नाइट्रेट केमिकल का उपयोग किया जाता है. जब यह स्याही त्वचा पर लगती है, तो ये तुरंत असर दिखाना शुरू कर देती है. पानी के संपर्क में आने पर इसमें मौजूद सिल्वर नाइट्रेट काले रंग में बदल जाता है, जिससे ये आसानी से मिट नहीं पाती.
हमारी त्वचा में मौजूद नमक के साथ मिलकर सिल्वर नाइट्रेट, सिल्वर क्लोराइड बनाता है. सिल्वर क्लोराइड न तो पानी में घुलता है न ही इसे किसी साबुन या केमिकल से हटाया जा सकता है. ये त्वचा से चिपक जाता है और तभी उतरता है जब त्वचा की ऊपरी सतह के पुराने सेल गिरने लगते हैं. आमतौर पर इस स्याही को पूरी तरह से मिटने में कम से कम 72 घंटे या उससे अधिक समय लग सकता है.
क्यों महत्वपूर्ण है चुनावी स्याही? (Delhi Assembly Election 2025)
चुनावी स्याही का मुख्य उद्देश्य फर्जी मतदान को रोकना और चुनावी प्रक्रिया को पारदर्शी बनाना है. भारत जैसे विशाल जनसंख्या वाले देश में निष्पक्ष चुनाव कराना एक चुनौती होती है. चुनाव आयोग इस स्याही का उपयोग करके सुनिश्चित करता है कि कोई भी व्यक्ति एक से अधिक बार मतदान न कर सके. इसका उपयोग पहले केवल लोकसभा और विधानसभा चुनावों में किया जाता था, लेकिन बाद में इसे नगर निकाय और सहकारी समितियों के चुनावों में भी अपनाया गया. आज ये स्याही भारतीय लोकतंत्र की एक अनिवार्य पहचान बन चुकी है.
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