अरविंद केजरीवाल, मुख्यमंत्री, दिल्ली. (फाइल फोटो)
दिल्ली शराब नीति घोटाला मामले में मनी लॉन्ड्रिंग के आरोप में निचली अदालत से मिली नियमित जमानत पर लगी रोक को दिल्ली हाइकोर्ट ने बरकरार रखा है. दिल्ली हाईकोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि ट्रायल कोर्ट ने केस के तथ्यों पर पूरी तरह से ध्यान दिए बगैर केजरीवाल को जमानत दी है. कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि ट्रॉयल कोर्ट ने PMLA एक्ट के तहत सेक्शन 45 में जमानत की शर्तों को एड्रेस नहीं किया है. अवकाशकालीन जस्टिस सुधीर कुमार जैन ने ईडी की ओर से दायर याचिका पर यह फैसला दिया है.
ट्रायल कोर्ट ने सामग्री पर गौर नहीं किया- HC
कोर्ट ने कहा ट्रायल कोर्ट की यह टिप्पणी कि भारी भरकम सामग्री पर विचार नहीं किया जा सकता, पूरी तरह से अनुचित है और यह दर्शाता है कि ट्रायल कोर्ट ने सामग्री पर गौर नहीं किया है. साथ ही कोर्ट ने कहा अवकाशकालीन अदालत को जमानत अर्जी पर बहस के लिए ईडी को पर्याप्त अवसर देना चाहिए था. कोर्ट ने कहा एक मजबूत तर्क था कि पीएमएलए की धारा 45 पीएमएलए की दोहरी शर्त पर अवकाश न्यायाधीश द्वारा विचार-विमर्श नहीं किया गया था.
हाईकोर्ट ने पहले मिली जमानत का क्यों किया जिक्र?
इस अदालत की राय है कि ट्रायल कोर्ट द्वारा धारा 45 पीएमएलए पर ठीक से चर्चा नहीं की गई है. सबसे महत्वपूर्ण एएसजी ने ट्रायल कोर्ट के आदेश के पैरा 27 का हवाला दिया जहां न्यायाधीश ईडी द्वारा दुर्भावना के बारे में बात करते हैं. लेकिन इस अदालत की राय है कि इस अदालत की एक समन्वय पीठ ने कहा है कि ईडी की ओर से कोई दुर्भावना नहीं थी. ट्रायल कोर्ट को ऐसा कोई निष्कर्ष नहीं देना चाहिए था जो हाईकोर्ट के निष्कर्ष के विपरीत हो.
ट्रायल कोर्ट ने धारा 70- पीएमएलए के तर्क पर भी विचार नहीं किया है. हाईकोर्ट ने कहा कि हमारा भी मानना है कि सुप्रीम कोर्ट ने केजरीवाल को लोकसभा के लिए जमानत दे दी थी. एक बार गिरफ्तारी को चुनौती देने वाली उनकी याचिका हाईकोर्ट द्वारा खारिज कर दिए जाने के बाद यह नहीं कहा जा सकता है कि कानून का उल्लंघन करके उनकी व्यक्तिगत स्वतंत्रता में कटौती की गई थी.
अन्य दलीलों पर रोस्टर बेंच करेगी विचार
हाईकोर्ट का कहना है कि अन्य दलीलों पर रोस्टर बेंच द्वारा विचार किया जाएगा. हाई कोर्ट ने कहा कि दस्तावेज़ों और तर्कों की उचित सराहना नहीं की गई. इसलिए, विवादित आदेश पर रोक लगाई जाती है. कोर्ट ने कहा कि ASG एसवी राजू ने ट्रायल कोर्ट की टिप्पणी का हवाला दिया कि वेकेशन जज ने रिकॉर्ड पर विचार नहीं किया. इस तरह की टिप्पणी पूरी तरह से अनुचित थी और यह दर्शाती है कि ट्रायल कोर्ट ने रिकॉर्ड पर अपना ध्यान नहीं लगाया. कोर्ट ने कहा कि ASG द्वारा उठाया गया एक और महत्वपूर्ण तर्क यह था कि वेकेशन जज ने ईडी को अर्जी पर बहस करने का उचित अवसर नहीं दिया. कोर्ट ने कहा मुख्य याचिका में दिए गए कथनों और आरोपों पर कोर्ट द्वारा उचित विचार किए जाने की आवश्यकता है.
जमानत पर रोक अभूतपूर्व- केजरीवाल के वकील
बता दें कि सुप्रीम कोर्ट में केजरीवाल की ओर से दायर याचिका पर सुनवाई के दौरान केजरीवाल की ओर से पेश वरिष्ठ वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा था कि जमानत पर रोक अभूतपूर्व है. सिंघवी ने कहा कि अगर जमानत रद्द होती है, तो वह निश्चित रूप से जेल वापस चले जायेंगे. जैसा कि सुप्रीम कोर्ट की अंतरिम जमानत के बाद हुआ था और उनके भागने का खतरा नहीं है. वही सिंघवी की दलीलों के बाद सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस मनोज मिश्रा ने कहा था कि आमतौर पर जमानत अर्जियों पर रोक नहीं लगता है. यह असामान्य है और वो उसी समय पारित होते है. कोर्ट ने कहा कि यहां जो हुआ वह असामान्य है.
सिंघवी ने कहा था कि केजरीवाल अंतरिम तौर पर क्यों नही रिहा हो सकते है? निचली अदालत से मेरे पक्ष में फैसला आ चुका है. जिसपर जस्टिस मनोज मिश्रा ने कहा था कि अगर हम अभी कोई आदेश पारित करते हैं तो हम मामले पर हाइकोर्ट से भी पहले फैसला सुना देंगे. जबकि केजरीवाल की ओर से पेश अन्य वकील विक्रम चौधरी ने कहा था कि सुप्रीम कोर्ट ने 10 मई को अंतरिम आदेश दिया था. जिसमें केजरीवाल को अंतरिम जमानत दी गई थी. सुप्रीम कोर्ट ने टिप्पणी की थी और कहा था कि केजरीवाल दिल्ली के मुख्यमंत्री है. उनका कोई आपराधिक रिकॉर्ड नही है. उन्हें गिरफ्तार किए जाने का कोई खतरा नही है.
सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने पेश की ये दलील
अगस्त 2022 से जांच लंबित है और उन्हें मार्च 2024 में ही गिरफ्तार किया गया. सिंघवी ने कहा था कि हाइकोर्ट ने मामले में 10:30 ही रिहाई पर स्थगन का फैसला सुना दिया. क्योंकि बिना कारण बताए ही स्थगन आदेश पारित कर दिया. हमने हाइकोर्ट में 10 फैसलों को रखा, जिसमें एक बार जमानत दिए जाने के बाद उसे विशेष कारणों के बिना रोक नही जा सकता है. ईडी की तरफ से सुप्रीम कोर्ट में पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि निचली अदालत ने यह कहा है कि यह एक हाई प्रोफाइल केस है, जो कि ऐसा नही है. कोर्ट के सामने हर व्यक्ति एक आम आदमी है. यहां तक कि निचली अदालत ने कहा था कि केस के रिकॉर्ड देखने के लिए किसके पास समय है?
कोर्ट ने ईडी से क्या पूछा?
कोर्ट ने ईडी से पूछा था कि क्या ट्रायल कोर्ट के जज ने पीएमएलए की धारा 45 में जमानत के लिए दिए गए शर्ते के बारे में अपने फैसले में लिखा है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि हाइकोर्ट का आदेश रिकॉर्ड पर आने दे. रिकॉर्ड पर आदेश के बिना कैसे सुन सकते है. बतादें कि ट्रायल कोर्ट से अनुरोध किया था कि आदेश की घोषणा के बाद जमानत बॉन्ड पर हस्ताक्षर करने के लिए 48 घंटे की मोहलत दी जाए लेकिन ट्रायल कोर्ट ने जमानत देने के अपने आदेश पर रोक लगाने की ईडी की याचिका को खारिज कर दिया था.
-भारत एक्सप्रेस