बाबा रामदेव
इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (आईएमए) के अध्यक्ष डॉ. आर वी अशोकन ने सोमवार को कहा कि बाबा रामदेव ने उस समय हद पार कर दी जब उन्होंने दावा किया कि उनके पास कोविड-19 का उपचार है और उन्होंने आधुनिक चिकित्सा पद्धति को ‘मूर्खतापूर्ण एवं दिवालिया विज्ञान’ कहकर बदनाम किया’ .
भ्रामक विज्ञापनों को लेकर पिछले महीने उच्चतम न्यायालय द्वारा रामदेव और उनकी औषधि कंपनी पतंजलि आयुर्वेद को फटकार लगाए जाने के बाद आईएमए की यह पहली टिप्पणी है. उच्चतम न्यायालय में 30 अप्रैल को मामले की सुनवाई होने वाली है.
अशोकन ने पीटीआई को बताया
‘पीटीआई’ के संपादकों के साथ बातचीत में अशोकन ने यह भी कहा कि यह ”दुर्भाग्यपूर्ण” है कि सुप्रीम कोर्ट ने आईएमए और निजी तौर पर वकालत की भी आलोचना की है- उन्होंने कहा कि ”अस्पष्ट और अति सामान्य पुस्तकालय” ने निजी वकीलों को हतोत्साहित किया है.
उन्होंने कहा, ”हम ईमानदारी से मानते हैं कि उन्हें यह देखने की जरूरत है कि उनके सामने क्या सामग्री डाली गई है. उन्होंने शायद इस बात पर विचार नहीं किया कि उन्होंने यह नहीं कहा कि कौन सी अदालत उनके सामने खड़ी थी.”
अशोकन ने कहा, ”आप कुछ भी कह सकते हैं, लेकिन ज्यादातर डॉक्टर कर्तव्यनिष्ठ हैं. नैतिकता और सिद्धांतों के अनुसार काम करते हैं. देश के चिकित्सा संकट के खिलाफ तल्ख रुख अपनाना कोर्ट को शोभा नहीं देता, जिसने कोविड युद्ध में इतनी कुर्बानी दी.”
सार्वजनिक माफी पर सवाल उठाया
अशोकन 23 अप्रैल की सुनवाई में उच्चतम न्यायालय द्वारा की गई उन टिप्पणियों के बारे में एक सवाल का जवाब दे रहे थे कि जब आप (आईएमए) एक उंगली किसी (पतंजलि) पर उठा रहे हैं, तो बाकी चार उंगलियां आपकी ओर उठती हैं.
उसी सुनवाई के दौरान, शीर्ष अदालत ने पतंजलि की सार्वजनिक माफी पर सवाल उठाया और पूछा कि क्या यह कंपनी द्वारा उसके उत्पादों के लिए प्रकाशित विज्ञापनों के आकार के समान है- रामदेव और उनके सहयोगी आचार्य बालकृष्ण द्वारा प्रकाशित माफीनामे से जुड़े मामले पर 30 अप्रैल को विचार किया जाएगा.
कहा ये मूर्खतापूर्ण और दिवालिया विज्ञान है
अशोकन ने कहा कि रामदेव ने आधुनिक चिकित्सा पद्धति की यह कहते हुए खिलाफत की कि यह एक ‘‘मूर्खतापूर्ण और दिवालिया विज्ञान है।’’
आईएमए प्रमुख ने कहा, ‘‘जब सरकार टीकाकरण कार्यक्रम चला रही थी तो उन्होंने (रामदेव) राष्ट्रीय हित के खिलाफ बात कही. उन्होंने कहा कि कोविड रोधी टीके की दो खुराक लेने के बाद 20,000 डॉक्टरों की मृत्यु हो गई. उनका कद इतना ऊंचा है कि आप जानते हैं कि लोगों ने उनकी बातों पर विश्वास किया. यह दुर्भाग्यपूर्ण था.’’
यह पूछे जाने पर कि बड़ा नाम होने और राजनीतिक जुड़ाव होने के बावजूद रामदेव से आईएमए क्यों भिड़ी, इस पर अशोकन ने कहा, ‘‘उन्होंने हद कर दी. हम इस देश में बहुत लंबे समय से फालतू चीजों को बर्दाश्त करते रहे हैं- हमारा पेशा भी इसे बर्दाश्त कर रहा है और हमने कभी ऐसा नहीं चाहा.’’
आईएमए प्रमुख ने कहा, ‘‘उन्होंने हद पार कर दी जब उन्होंने कोरोनिल (पतंजलि टैबलेट) के बारे में विज्ञापन दिया और कहा कि डब्ल्यूएचओ (विश्व स्वास्थ्य संगठन) ने इसे मंजूरी दे दी है जो कि एक गलत बयान था.’’
उन्होंने कहा, ‘‘हमारे नेतृत्व ने सोचा कि उन्हें चुनौती देनी होगी. यह 2022 का साल था तथा हमें औषधि और जादुई उपचार (आपत्तिजनक विज्ञापन) अधिनियम के माध्यम से इस पर आगे बढ़ना था. न्यायालय में जो हुआ वह दो-तीन साल की कड़ी मेहनत है.’’
आईएमए के पास एक मजबूत नेतृत्व
अशोकन ने कहा कि आईएमए के पास एक मजबूत नेतृत्व है जो चिकित्सा पेशे और एसोसिएशन द्वारा उठाए जाने वाले कदमों पर विचार करता है. उन्होंने कहा कि यह निर्णय आईएमए के वरिष्ठ सदस्य डॉ. केतन देसाई की अध्यक्षता में एक आंतरिक बैठक में लिया गया और इसमें पूर्व अध्यक्षों तथा उस समय के वर्तमान पदाधिकारियों ने भाग लिया.
अशोकन ने कहा, ‘‘मैं उस समय पूर्व महासचिव था. उस समय (आईएमए के) महासचिव डॉ. जयेश लेले थे. इसलिए यह एक साझा निर्णय था. हम एक टीम हैं और हम देखते हैं कि पेशे के लिए क्या अच्छा है. डॉक्टरों के संगठन के लिए नहीं देश के लिए क्या अच्छा है, हम इस परिप्रेक्ष्य में देखते हैं.’’
उन्होंने कहा, ‘‘आईएमए का इतिहास यह है कि हम भारतीय स्वतंत्रता संग्राम से निकले हैं. हम स्वतंत्रता-पूर्व कांग्रेस आंदोलन का हिस्सा रहे हैं. आज भी हमारे सम्मेलन 27 दिसंबर को होते हैं जिस तारीख को कांग्रेस का सम्मेलन होता था.’’
यह पूछे जाने पर कि क्या कोई आंतरिक या बाहरी दबाव था, उन्होंने कहा, ‘‘किसी भी तरफ से कोई दबाव नहीं था. लेकिन सोशल मीडिया पर भारी प्रतिक्रिया आई और हमले किए गए क्योंकि उन्हें समझ नहीं आया कि क्या हो रहा था.’’
आईएमए पारंपरिक चिकित्सा पद्धतियों के खिलाफ नहीं
अशोकन ने कहा कि आई एम् एम् पारंपरिक चिकित्सा पद्धतियों के विरुद्ध नहीं है। उन्होंने कहा, ”हम सब तीन दशकों से साथ रह रहे हैं. हम एक-दूसरे का सम्मान करते हैं। लेकिन जहां समाज के कुछ कलाकारों ने सोचा कि हम पारंपरिक पद्धतियों के विरोधी हैं और सार्वजनिक माफ़ी की बात करते हैं, तो यह कोर्ट के समर्थकों के बारे में है.”
आईएमए प्रमुखों ने कहा, ”अदालत ने अपना अंतिम निर्णय नहीं लिया इक्कीस है. हमें इंतज़ार करने की ज़रूरत है। हम विश्वास करते हैं या नहीं, यह निर्णय पर अनिच्छुक है. यह माफ़ीनामा के बारे में नहीं है जो उन्होंने किया है. इस अदालत को हमें बताना है कि उन्होंने आधुनिक चिकित्सा को किस तरह से अपमानित किया है.’
‘ अंतिम कार्य समय और स्थान के साथ सुरक्षित रहता है। आज आप जो सही मानते हैं वह 10 साल बाद भी सही नहीं हो सकता। इसलिए यह एक सतत प्रक्रिया है और हम ऐसा ही करते हैं.”
आईएमए की स्थापना
आईएमए की स्थापना 1928 में ‘ऑल इंडिया मेडिकल एसोसिएशन’ के रूप में हुई थी। वर्ष 1930 में इसका नाम मयंक ‘इंडियन मेडिकल एसोसिएशन’ रखा गया। 29 राज्यों और केंद्र अल्ट्रासाउंड के 1,800 स्थानीय वास्तुशिल्प में लगभग 3,85,000 सदस्य डॉक्टर जुड़े हुए हैं.
-भारत एक्सप्रेस