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बार काउंसिल ऑफ इंडिया ने सभी बार एसोसिएशनों से किया अनुरोध, कहा- नए आपराधिक कानूनों के खिलाफ विरोध प्रदर्शन से रहें दूर

बार एसोसिएशनों ने अनिश्चितकालीन आंदोलन और विरोध प्रदर्शन में शामिल होने का संकेत दिया है, जब तक कि इन कानूनों को निलंबित नहीं किया जाता और संसद द्वारा व्यापक समीक्षा सहित देशव्यापी चर्चा के अधीन नहीं किया जाता.

Bar Council of India

बार काउंसिल ऑफ इंडिया

बार काउंसिल ऑफ इंडिया ने सभी बार एसोसिएशनों से अनुरोध किया है कि वह नए आपराधिक कानूनों के खिलाफ विरोध प्रदर्शन से दूर रहें. बार एसोसिएशन ने कहा कि वह नए आपराधिक कानूनों में आवश्यक संशोधन प्रस्तावित करने के लिए एक समिति का गठन करेगी. साथ ही कहा कि वह कानूनी बिरादरी को आश्वासन देती है कि नए कानूनों के बारे में उठाए गए मुद्दों को गंभीरता से लिया जाएगा. गौरतलब है कि एक जुलाई से देश में तीन नए आपराधिक कानून लागू हो रहे हैं.

बार काउंसिल ऑफ इंडिया ने गुरुवार (26 जून) को पारित एक प्रस्ताव के माध्यम से देश भर के बार एसोसिएशनों और राज्य बार काउंसिलों से प्राप्त कई अभ्यावेदनों को स्वीकार किया है, जिसमें नए पेश किए गए आपराधिक कानूनों यानी भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस), भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (बीएनएसएस) और भारतीय साक्ष्य अधिनियम (बीएसए) के खिलाफ कड़ा विरोध व्यक्त किया गया है. इन बार एसोसिएशनों ने अनिश्चितकालीन आंदोलन और विरोध प्रदर्शन में शामिल होने का संकेत दिया है, जब तक कि इन कानूनों को निलंबित नहीं किया जाता और संसद द्वारा व्यापक समीक्षा सहित देशव्यापी चर्चा के अधीन नहीं किया जाता.

इस बात पर चिंता जताई गई है कि इन नए कानूनों के कई प्रावधान जनविरोधी माने जा रहे हैं, औपनिवेशिक युग के उन कानूनों से भी अधिक कठोर हैं, जिन्हें वे बदलने का इरादा रखते हैं, और नागरिकों के मौलिक अधिकारों के लिए गंभीर खतरा पैदा करते हैं. कपिल सिब्बल (अध्यक्ष, एससीबीए और संसद सदस्य), अभिषेक मनु सिंघवी, मुकुल रोहतगी, विवेक तन्खा, पी. विल्सन (वरिष्ठ अधिवक्ता और संसद सदस्य), श्री दुष्यंत दवे (वरिष्ठ अधिवक्ता और पूर्व अध्यक्ष, एससीबीए), श्रीमती इंदिरा जयसिंह (वरिष्ठ अधिवक्ता) जैसे उल्लेखनीय कानूनी दिग्गजों के साथ-साथ कई उच्च न्यायालयों और ट्रायल कोर्ट के कई वरिष्ठ अधिवक्ताओं और अन्य अधिवक्ताओं ने इन कानूनों का कड़ा विरोध किया है.

कई बार एसोसिएशनों ने धन शोधन निवारण अधिनियम (पीएमएलए) और गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम (यूएपीए) के प्रावधानों की नए सिरे से जांच करने की मांग की है. इसके अलावा भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस), भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (बीएनएसएस) और भारतीय साक्ष्य अधिनियम (बीएसए) पर भी पुनर्विचार करने की मांग की है. उनका कहना है कि ये कानून मौलिक अधिकारों और प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का उल्लंघन करते हैं.

इन मांगों और चिंताओं पर सावधानीपूर्वक विचार करने के बाद, बार काउंसिल ऑफ इंडिया सभी बार एसोसिएशनों से अनुरोध करती है कि वे इस समय किसी भी प्रकार के आंदोलन या विरोध प्रदर्शन से बचें. बीसीआई विधिक समुदाय की चिंताओं से अवगत कराने के लिए केंद्र सरकार, जिसका प्रतिनिधित्व माननीय केंद्रीय गृह मंत्री और माननीय केंद्रीय विधि मंत्री करेंगे, के साथ चर्चा आरंभ करेगी. बीसीआई इस मामले में मध्यस्थता के लिए माननीय केंद्रीय पर्यावरण मंत्री श्री भूपेंद्र यादव, जो एक वकील हैं, से भी हस्तक्षेप की मांग करेगी.

इसके अतिरिक्त, बीसीआई सभी बार एसोसिएशनों और वरिष्ठ अधिवक्ताओं से अनुरोध करती है कि वे नए कानूनों के उन विशिष्ट प्रावधानों को प्रस्तुत करें जिन्हें वे असंवैधानिक या हानिकारक मानते हैं, ताकि सरकार के साथ सार्थक बातचीत हो सके. बार काउंसिल ऑफ इंडिया, माननीय केंद्रीय गृह मंत्री द्वारा सितंबर 2023 में बीसीआई द्वारा आयोजित अंतर्राष्ट्रीय वकीलों के सम्मेलन में दिए गए आश्वासन को याद करता है, जहां यह कहा गया था कि सरकार इन कानूनों के किसी भी प्रावधान में संशोधन करने के लिए तैयार है, बशर्ते वैध कारण और उचित सुझाव प्रस्तुत किए जाएं.

बार एसोसिएशनों से विशिष्ट सुझाव प्राप्त होने पर, बीसीआई इन नए कानूनों में आवश्यक संशोधनों का प्रस्ताव करने के लिए विख्यात वरिष्ठ अधिवक्ताओं, पूर्व न्यायाधीशों, निष्पक्ष सामाजिक कार्यकर्ताओं और पत्रकारों की एक समिति का गठन करेगी. बार काउंसिल ऑफ इंडिया बार एसोसिएशनों और कानूनी बिरादरी को आश्वस्त करता है कि इन मुद्दों को गंभीरता से लिया जा रहा है और तत्काल चिंता का कोई कारण नहीं है. परिणामस्वरूप, इस मुद्दे के संबंध में आंदोलन, विरोध या हड़ताल की तत्काल कोई आवश्यकता नहीं है.

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-भारत एक्सप्रेस



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