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Delhi: अप्राकृतिक दुराचार से संबंधित प्रावधान को BNS से बाहर करने का मामला, हाई कोर्ट ने केंद्र सरकार को जारी किया नोटिस

नए कानून BNS में पुरुष या स्त्री, किसी के साथ भी अप्राकृतिक यौन संबंध के तहत गैर-सहमति वाले कृत्यों को अपराध की श्रेणी में रखने का कोई प्रावधान नहीं है.

Delhi Highcourt

दिल्ली हाई कोर्ट.

नए दंड कानून भारतीय न्याय संहिता में अप्राकृतिक यौनाचार और दुराचार के अपराध से संबंधित प्रावधान को बाहर करने को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई के बाद दिल्ली हाई कोर्ट ने केंद्र सरकार को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है. 27 अगस्त को कोर्ट इस मामले में अगली सुनवाई करेगा. कार्यवाहक चीफ जस्टिस मनमोहन और जस्टिस तुषार राव गेडला की पीठ याचिका पर सुनवाई कर रही है.

धारा 377 के समतुल्य कोई प्रावधान नहीं

याचिकाकर्ता ने कहा कि बीएनएस में भारतीय दंड संहिता की धारा 377 के समतुल्य प्रावधान को नहीं रखा गया है, जिसके कारण हर व्यक्ति, विशेषकर LGBTQ समुदाय प्रभावित होगा.

आईपीसी में था सजा का प्रावधान

दरअसल, नए कानून BNS में पुरुष या स्त्री, किसी के साथ भी अप्राकृतिक यौन संबंध के तहत गैर-सहमति वाले कृत्यों को अपराध की श्रेणी में रखने का कोई प्रावधान नहीं है. जबकि समाप्त हो चुकी IPC की धारा 377 के तहत किसी भी पुरुष या महिला या पशु के साथ अप्राकृतिक यौन संबंध बनाने के लिए उम्रकैद या 10 साल की जेल की सज़ा का प्रावधान था.

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आईपीसी की धारा 377 में दो वयस्कों के बीच बिना सहमति के अप्राकृतिक यौनाचार और नाबलिंगो के खिलाफ यौन गतिविधियों के मामलों में दंड का प्रावधान है. बता दें कि आईपीसी की जगह बीएनएस एक जुलाई, 2024 से प्रभाव में आया है.

-भारत एक्सप्रेस

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