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SC-ST के कोटे में कोटा देने का मामला, सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ दायर पुनर्विचार याचिका खारिज

पीठ ने कहा था कि अनुसूचित जातियां एक समरूप समूह नहीं है और सरकार पीड़ित लोगों को 15% आरक्षण में अधिक महत्व देने के लिए उन्हें उप-वर्गीकृत कर सकती है.

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सुप्रीम कोर्ट.

सुप्रीम कोर्ट के एससी/एसटी (SC-ST) के कोटे में कोटा देने के फैसले के खिलाफ दाखिल पुनर्विचार याचिका को कोर्ट ने खारिज कर दिया है. आरक्षण के भीतर आरक्षण पर सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने मुहर लगाई थी. इतना ही नहीं, कोर्ट ने एससी, एसटी वर्ग आरक्षण में क्रीमीलेयर को चिन्हित कर बाहर किए जाने की जरूरत पर बल दिया था. सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली 7 जजों की संविधान पीठ ने 6-1 के बहुमत से यह फैसला दिया था.

कोर्ट ने क्या कहा था?

पीठ ने कहा था कि अनुसूचित जातियां एक समरूप समूह नहीं है और सरकार पीड़ित लोगों को 15% आरक्षण में अधिक महत्व देने के लिए उन्हें उप-वर्गीकृत कर सकती है. सुप्रीम कोर्ट ने चिन्नैया मामले में 2004 के सुप्रीम कोर्ट के फैसले को पलट दिया था. जिसमें अनुसूचित जाति और जनजाति के उप-वर्गीकरण के खिलाफ फैसला सुनाया गया था. सुप्रीम कोर्ट ने तब यह भी कहा था कि राज्यों के पास यह करने का अधिकार नहीं है, क्योंकि अनुसूचित जाति की सूची राष्ट्रपति की ओर से बनाई जाती है,

2004 के अपने फैसले को पलटा

लेकिन हाल ही में सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने 2004 के अपने फैसले को पलटते हुए कहा था कि राज्यों को आरक्षण के लिए कोटा के भीतर कोटा बनाने का अधिकार है. ताकि सबसे जरूरतमंद को आरक्षण में प्राथमिकता मिल सके. राज्य विधानसभाएं इसे लेकर कानून बनाने में समक्ष होगी. कोर्ट का यह भी कहना था कि सब कैटेगरी का आधार उचित होना चाहिए.

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कोर्ट का कहना था कि ऐसा करना संविधान के आर्टिकल 341 के खिलाफ नहीं है. कोर्ट ने क्रीमीलेयर को लेकर भी संभावना व्यक्त की थी. अब सवाल यह है कि क्रीमीलेयर की संभावना व्यक्त करने पर क्यों विरोध किया जा रहा है. ओबीसी में क्रीमीलेयर और एससी/एसटी में अगर क्रीमीलेयर शामिल किया जाता है तो दोनों में क्या अंतर है. एससी/एसटी में क्रीमीलेयर शामिल करने पर इसका क्या असर होगा.

-भारत एक्सप्रेस

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