
बिहार की सियासत एक बार फिर से चुनावी रंग में रंगने लगी है. कांग्रेस ने विधानसभा चुनाव से पहले खुद को मजबूत करने की प्रक्रिया शुरू कर दी है और अब आरजेडी के साथ मिलकर गठबंधन के तहत चुनाव लड़ने की घोषणा भी कर दी है. हालांकि, सीट बंटवारे को लेकर तस्वीर अभी साफ नहीं है, लेकिन कांग्रेस इस बार किसी भी कीमत पर 2020 जैसी गलती नहीं दोहराना चाहती.
कांग्रेस के रणनीतिकारों ने साफ कर दिया है कि इस बार पार्टी सिर्फ नंबर गेम में फंसने के बजाय सम्मानजनक और जीत की गारंटी वाली सीटों पर ही चुनाव लड़ेगी. कांग्रेस की नजर खासतौर पर उन सीटों पर है, जहां मुस्लिम-यादव (एम-वाई) समीकरण मजबूत है. यही नहीं, कांग्रेस इस बार दलित वोटरों पर भी फोकस कर रही है और दलित, मुस्लिम और यादव बहुल सीटों को अपनी पहली प्राथमिकता बना चुकी है.
2020 विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने आरजेडी के साथ गठबंधन में 70 सीटों पर चुनाव लड़ा था, लेकिन उसे सिर्फ 19 सीटों पर जीत मिली थी. पार्टी को जिन सीटों पर लड़ना पड़ा, उनमें से 45 सीटें एनडीए के मजबूत गढ़ में थीं, जिन्हें कांग्रेस लगातार चार चुनावों से नहीं जीत पा रही थी, जबकि आरजेडी ने अपने लिए उन सीटों का चयन किया था, जहां एम-वाई समीकरण प्रभावी था. यही वजह रही कि आरजेडी ने 144 सीटों पर लड़कर 75 सीटें जीतीं, जबकि कांग्रेस पिछड़ गई.
कांग्रेस की नजर अपनी पसंद की सीटों पर
कांग्रेस इस बार रणनीति बदल चुकी है. पार्टी ने तय किया है कि वह आरजेडी की मर्जी की मुश्किल सीटें लेने के बजाय अपनी पसंद की सीटें ही लेगी. इसके लिए कांग्रेस पदयात्रा और जनसंपर्क अभियान के जरिए उन सीटों की पहचान कर रही है, जहां पर उसका पारंपरिक वोट बैंक यानी मुस्लिम, यादव और दलित प्रभावी है. कांग्रेस की मंशा यह है कि भले ही सीटों की संख्या कुछ कम हो जाए, लेकिन जितनी भी सीटें मिले वे जीतने लायक हों.
दलित वोटों पर भी कांग्रेस की नजर कांग्रेस का मानना है कि यदि वह एम-वाई समीकरण के साथ दलित वोटरों को भी जोड़ सके, तो वह विधानसभा चुनाव में बेहतर प्रदर्शन कर सकती है.
गठबंधन जरूरी, लेकिन शर्तों के साथ
कांग्रेस ने 2010 में आरजेडी से अलग होकर चुनाव लड़ा था, लेकिन सिर्फ चार सीटों पर सिमट गई थी, जबकि 2015 में जब उसने आरजेडी के साथ मिलकर चुनाव लड़ा तो 27 सीटों पर जीत हासिल की. 2020 में भी गठबंधन में रही लेकिन सीटों की गुणवत्ता कमजोर रहने से सिर्फ 19 सीटें ही मिल सकी. इस बार कांग्रेस गठबंधन में रहना तो चाहती है, लेकिन सम्मानजनक सीटों और बेहतर सौदेबाजी के साथ.
बिहार में कांग्रेस का यह बदला हुआ रुख उसे चुनाव में किस हद तक फायदा पहुंचा पाएगा, यह तो समय बताएगा, लेकिन इतना तय है कि कांग्रेस अब सिर्फ गठबंधन में बने रहने के लिए सीटें नहीं लेगी, बल्कि जीत की संभावना वाली सीटों की ही मांग करेगी. पार्टी की नजर इस बार मुस्लिम, यादव और दलित बहुल सीटों पर है.
ये भी पढ़ें: भारत सरकार ने 15,000 जन औषधि केंद्रों का लक्ष्य दो महीने पहले पूरा किया, 20,000 तक विस्तार की योजना
-भारत एक्सप्रेस
इस तरह की अन्य खबरें पढ़ने के लिए भारत एक्सप्रेस न्यूज़ ऐप डाउनलोड करें.