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Delhi Election: केजरीवाल बनाम संदीप दीक्षित, AAP-Congress में कांटे की टक्कर, किसे मिलेगा जनता का आशीर्वाद

49 दिन….आम आदमी की पार्टी और केजरीवाल के लिए बेहद खास रहे. केजरीवाल सरकार ने इन 49 दिनों में अपने किए वादों में से कई को जमीन पर उतारकर दिखा दिया.

Kejriwal vs Sandeep Dixit

पूर्व सीएम अरविंद केजरीवाल और कांग्रेस नेता संदीर दीक्षित.

Delhi Assembly Election: दिल्ली के चुनावों की घोषणा नहीं हुई है, लेकिन राजनीतिक पारा कंपकंपाती सर्दी में भी हाई लेवल पर है. कांग्रेस और आम आदमी पार्टी एक्शन मोड में नजर आ रही हैं, जबकि बीजेपी कछुए वाली फॉर्म में दिखाई दे रही है. हालंकि ये चाल उसे जीत की दहलीज तक लेकर जाएगी या नहीं ये आने वाला वक्त तय करेगा. बहरहाल सबका फोकस सबसे ज्यादा हॉट बन चुकी नई दिल्ली विधानसभा सीट पर है. आम आदमी पार्टी के संयोजक अरविंद केजरीवाल यहां से चुनावी मैदान में हैं. कांग्रेस ने दिल्ली की पूर्व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित के बेटे संदीप दीक्षित को उनके समकक्ष खड़ा किया है, जबकि बीजेपी ने अभी तक अपने उम्मीदवार के नाम का ऐलान नहीं किया, हालंकि साहिब सिंह वर्मा के बेटे प्रवेश वर्मा का नाम इस दौड़ में सबसे आगे चल रहा है.

सीट दिलाती है दिल्ली का ताज!

ऐसा माना जाता है कि नई दिल्ली विधानसभा सीट पर जीतने वाले कैंडिडेट के सिर पर ही मुख्यमंत्री का ताज सजता है. बता दें कि साल 1998, 2003 और 2008 में कांग्रेस से शीला दीक्षित जीतीं थीं. वहीं 2013 में केजरीवाल ने शीला दीक्षित को उनके गढ़ में मात दी. 2013 के बाद 2015 में केजरीवाल ने कांग्रेस की किरण वालिया और बीजेपी की नुपूर शर्मा को पटनखनी देते हुए जीत का परचम लहराया. साल 2020 में केजरीवाल नई दिल्ली से ही चुनाव लड़े इस बार उन्होंने कांग्रेस के रोमेश सभरवाल और बीजेपी के सुनील यादव को हार का स्वाद चखाते हुए फिर बाजी मारी. 1993 ही ऐसा साल था जब बीजेपी ने इस सीट पर जीत दर्ज की थी. उस वक्त इसे गोल मार्केट विधानसभा के नाम से जाना जाता था. परिसीमन के बाद इस सीट का नाम नई दिल्ली विधानसभा कर दिया गया.

केजरीवाल पर डगमगाया भरोसा

नई दिल्ली विधानसभा सीट पर इस बार कांटे का मुकाबला देखने को मिल सकता है. दरअसल केजरीवाल के प्रति जनता में भरोसा थोड़ा कम हुआ है. उनपर लगे आरोपों से पार्टी की साख के साथ-साथ उनकी छवि को भी नुकसान पहुंचा है. वहीं डीटीसी और जल विभाग के घाटे में जाने का मसला भी उनके गले की फांस बनता दिख रहा है. केजरीवाल जनता के बीच जाकर अगर स्थिति को संभाल नहीं पाएं तो AAP और केजरीवाल के लिए ये घाटे का सौदा साबित हो सकता है.

संदीप दीक्षित की छवि का मिलेगा फायदा ?

वहीं बात संदीप दीक्षित की करें तो उनकी छवि जनता के बीच साफ है, लेकिन इसका फायदा कांग्रेस को मिलेगा ये कहना थोड़ा जल्दबाजी होगा. दरअसल शीला दीक्षित के निधन के बाद अगर कांग्रेस उन्हें चुनाव लड़ने के लिए यहां से उतारती तो शायद उन्हें थोड़े सिम्पेथी वोट मिल जाते. लेकिन कांग्रेस ने ऐसा नहीं किया और किरण वालिया को टिकट देकर रिस्क उठाया.

AAP बनी गेम चेंजर

बात आम आदमी पार्टी की करें तो 2013 में AAP ने दिल्ली में पहली बार चुनाव लड़ा और 28 सीटों पर जीत दर्ज की. वहीं बीजेपी ने सबसे ज्यादा 31 सीटें जीतीं लेकिन स्थानीय स्तर पर सहमति नहीं बनने के कारण सरकार बनाने का दावा पेश नहीं किया. उधर आम आदमी पार्टी, कांग्रेस के समर्थन से सत्ता पर काबिज हो गई. ऐसा माना जाता है कि अगर बीजेपी उस वक्त सरकार बनाने का फैसला ले लेती तो दिल्ली की राजनीति की दिशा और दशा कुछ ओर हो सकती थी. बीजेपी के पीछे हटने का फायदा कहीं ना कहीं AAP को मिलता दिखा. ये बात इसलिए कहा जा सकता है क्योंकि 2015 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस का खाता भी नहीं खुल पाया. मतलब कांग्रेस का वोट ट्रांसफर होकर AAP के साथ जुड़ गया.

49 दिन की सरकार

49 दिन सरकार में रहने के बाद अचानक कांग्रेस ने आम आदमी पार्टी से अपना समर्थन वापस ले लिया और सरकार गिर गई. दिल्ली में राष्ट्रपति शासन लग गया. साल 2015 में चुनाव हुए और ‘झाड़ू’ ने सब साफ कर दिया. 31 सीटों से बीजेपी तीन सीटों पर सिमटकर रह गई. कांग्रेस के तो ‘हाथ’ खाली रह गए.

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कांग्रेस ने गंवाया, AAP ने पाया

ऐसा नहीं है कि बीजेपी या कांग्रेस ने इस चुनाव में मेहनत नहीं की. कांग्रेस ने खुब दम लगाया लेकिन बाकी वोटर्स तो छोड़े अपने दलित और मुस्लिम वोट भी पार्टी नहीं बचा पाई. बीजेपी ने मोदी लहर के बीच पूर्व IPS अधिकारी किरण बेदी के नेतृत्व में चुनाव लड़ा नतीजा ढाक के तीन पात ही रहा. बीजेपी को तीन सीटों से ही संतोष करना पड़ा. किरण बेदी बीजेपी की सुरक्षित मानी जाने वाली सीट कृष्णानगर से ही चुनाव हार गई. मतलब दिल्ली में ना तो मोदी मैजिक कोई चमत्कार दिखा सका ना गोद लिये नेताओं का वर्चस्व काम आया. केजरीवाल की आंधी ने सबको उड़ा दिया.

केजरीवाल ने खेला मास्टर स्ट्रोक

49 दिन….आम आदमी की पार्टी और केजरीवाल के लिए बेहद खास रहे. केजरीवाल सरकार ने इन 49 दिनों में अपने किए वादों में से कई को जमीन पर उतारकर दिखा दिया. उनके इस एक्शन से दिल्लीवासी इतने प्रभावित हुए कि 2015 में उनपर दिल खोलकर प्यार लुटाया. 400 यूनिट बिजली फ्री करने के साथ पानी और शिक्षा के क्षेत्र में केजरीवाल ने जो किया देश ही नहीं विदेश में भी उसकी चर्चा देखी गई.

पांच साल में दो मुख्यमंत्री

साल 2020 भी केजरीवाल सरकार के नाम रहा. विधानसभा चुनाव में AAP ने फिर बाजी मारी और सत्ता पर आसीन हुई. हालांकि पांच साल की सरकार के दौरान में दिल्ली ने दो मुख्यमंत्री देखे. केजरीवाल शराब नीति घोटाला मामले में मनी लॉन्ड्रिग के आरोप में जेल पहुंच गए. फिलहाल वो जेल से बाहर है और केस लड़ने के साथ-साथ 2025 विधानसभा चुनाव भी लड़ रहे हैं.

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बदलेगा दिल्ली का मूड

दिल्ली का मिजाज अगर गौर से देखा जाएं तो पता चलता है कि लोकसभा चुनाव में यहां भारतीय जनता पार्टी का ढंका बजता है. साल 2014, 2019 या फिर 2024 की बात करें तो बीजेपी ने सातों सीटों पर क्लीन स्वीप किया. जबकि विधानसभा चुनाव पिछले तीन बार से AAP के नाम रहा है. अबकी बार देखना होगा कि केजरीवाल और AAP इतिहास दोहरा पाते हैं या नहीं.

-भारत एक्सप्रेस



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