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दिल्ली हाईकोर्ट 1 अक्टूबर को रानी झांसी रोड पर महारानी झांसी की प्रतिमा मामले में सुनवाई करेगा

इससे पहले कोर्ट ने कहा था कि याचिकाकर्ता शाही ईदगाह के आसपास के पार्क के रखरखाव का विरोध करने के लिए कोई कानूनी या मौलिक अधिकार नहीं है.

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दिल्ली हाईकोर्ट

सदर बाजार में मोतिया खान और रानी झांसी रोड़ को आपस में जोड़ने वाली सड़क पर झांसी की महारानी की प्रतिमा लगाने के मामले में दिल्ली हाईकोर्ट एक अक्टूबर को सुनवाई करेगा. दिल्ली हाईकोर्ट में मुस्लिम पक्ष की तरफ से कहा गया कि हमने कल माफीनामा रजिस्ट्री में जमा करा दिया गया है. 25 सितंबर को मामले पर सुनवाई के दौरान मुस्लिम पक्ष की तरफ से कहा गया कि वो याचिका दाखिल करने के लिए वह बिना शर्त माफी मांगते है. मामले की सुनवाई के दौरान शाही ईदगाह मैनेजिंग कमिटी द्वारा की गई अपील में इस्तेमाल किए गए शब्द पर कोर्ट से लिखित माफी मांग ली है.

पिछली सुनवाई में कोर्ट ने वकील को लिखित में माफीनामा देने को कहा था. कोर्ट ने कहा था कि कृपया साम्प्रदायिक राजनीति बको अदालत की चौखट से बाहर रखें. अपील में इस्तेमाल भाषा को अपमानजनक मानते हुए हाई कोर्ट ने कहा था कि साफ तौर पर यहां अदालत के जरिए साम्प्रदायिक राजनीति करने की कोशिश हो रही है. यहां अदालत को संबोधित नही किया जा रहा है. बल्कि अदालत के जरिए किसी और को संबोधित किया जा रहा है.

कोर्ट ने कहा था कि यह वही इलाका है, जिसके सौन्दर्यकरण का हाई कोर्ट ने स्थानीय पुलिस, डीडीए ओर एमसीडी को निर्देश दिया था. वह भी आपके ही लोगों के अनुरोध पर. पार्क से अतिक्रमण हटाकर जब ऑथोरिटीज ने काम करना शुरू किया तो आप प्रतिमा को मुद्दा बनाकर यहां आ गए. झांसी की रानी की प्रतिमा लगाने से इलाके में कानून व्यवस्था बिगड़ने की दलील पर नाराजगी भी जाहिर किया था. कोर्ट ने कहा था वह नेशनल हीरो है. यह गर्व की बात है.

इससे पहले कोर्ट ने कहा था कि याचिकाकर्ता शाही ईदगाह के आसपास के पार्क के रखरखाव का विरोध करने के लिए कोई कानूनी या मौलिक अधिकार नहीं है. समिति ने 1970 में प्रकाशित एक गजट अधिसूचना के हवाला दिया जिसमें कहा गया था कि शाही ईदगाह पार्क मुगल काल के दौरान निर्मित एक प्राचीन संपत्ति है, जिसका उपयोग नमाज अदा करने के लिए किया जा रहा है. यह कहा गया था कि इतने बड़े परिसर में एक समय में 50000 से अधिक लोग नमाज अदा कर सकते है.


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-भारत एक्सप्रेस



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