बिजु जनता दल बनाम भारतीय जनता पार्टी (फोटो- सोशल मीडिया)
सियासत में ना कोई स्थाई दोस्त होता है और ना ही कोई स्थाई दुश्मन, इस बात को ओड़िशा में दुहराते नजर आ रहे हैं दो सियासी दल. दोनों दलों का अपना सियासी प्रभाव है और अपनी विचारधारा है और इनमें एक राष्ट्रीय तो एक क्षेत्रीय है. हम बात ओड़िशा की कर रहे हैं और सियासी दलों के तौर पर जिक्र भारतीय जनता पार्टी (BJP) और बीजू जनता दल (BJD) का कर रहे हैं. ओडिशा प्रमुख रूप से 4 भौगोलिक क्षेत्रों (उत्तरी पठार, मध्य नदी घाटियां, पूर्वी पहाड़ियां और तटीय मैदान) में बंटा हुआ है. हिंदुओं का अहम तीर्थ स्थलों में शुमार जगन्नाथ पुरी मंदिर दुनियाभर में प्रसिद्ध है.
देश में लोकसभा चुनाव के साथ – साथ ओड़िशा में विधानसभा के भी चुनाव हो रहे हैं. चुनाव की तारीखों के ऐलान से पहले ओड़िशा के सियासत में सरगर्मी तब और बढ़ गई थी जब चर्चा शुरु हुआ कि बीजेपी और बीजद का गठबंधन हो जाएगा लेकिन ऐसा नही हुआ और लोकसभा चुनाव के साथ – साथ ओड़िशा के विधानसभा चुनाव में बीजेपी और बीजद के बीच सीधी लड़ाई देखने को मिल रही है.
राज्य की सियासी गणित
ओड़िशा में विधानसभा की 147 तो वहीं लोकसभा की 21 सीटें हैं, जबकि राज्यसभा की 10 सीटें हैं. वर्तमान समय में ओड़िशा की 111 विधानसभा सीटों पर बीजद, 23 पर भाजपा एवं 9 विधानसभा सीट पर कांग्रेस के विधायक हैं. ओडिशा में लोकसभा की 21 सीटें आती हैं और 2019 के संसदीय चुनाव में बीजू जनता दल ने 12 सीटों पर जीत हासिल की थी जबकि बीजेपी के खाते में 8 सीटें आई थीं. वहीं कांग्रेस को महज एक सीट पर जीत मिली थी.
केंद्र की बीजेपी सरकार को बीजद का समर्थन हासिल है. वहीं राज्य की सत्ताधारी बीजद को अब तक बीजेपी का समर्थन हासिल था. लेकिन फिलहाल यहां दोनों प्रतिद्वंद्वी बने हुए हैं.
बीजेडी नेता पूर्व IAS अधिकारी पांडियन ने झारसुगुड़ा जिले के ब्रजराजनगर में एक रैली को संबोधित करते हुए कहा, “बीजेपी कहती है कि ओडिशा में बीजेपी की लहर है और बदलाव की लहर है, लेकिन मैं दृढ़ता से कहता हूं कि अगर मुख्यमंत्री नवीन पटनायक दोबारा सीएम नहीं बने तो मैं राजनीति से संन्यास ले लूंगा.”
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उड़िया अस्मिता और विकास को लेकर पटनायक सरकार पर हमला बोला तो इसके जवाब में नवीन पटनायक ने कहा कि “बीजेपी उड़ीसा के किसानों का एमएसपी दोगुना करना क्यों भूल गई. पटनायक ने यह भी दावा किया कि अगले 10 वर्षों में बीजेपी ओडिया लोगों का दिल नहीं जीत पाएगी.”
वर्तमान समय में लोकसभा एवं विधानसभा चुनाव में ओड़िशा में मुख्य मुकाबला बीजू जनता दल और भारतीय जनता पार्टी के बीच देखने को मिल रहा है.
नवीन पटनायक का सियासी सफर
देश में सबसे लंबे अरसे तक मुख्यमंत्री बने रहने वाले नेताओं की सूची में नवीन पटनायक का नाम दूसरे नंबर पर हैं. पवन कुमार चामलिंग के बाद लगातार 24 साल से अधिक समय तक राज्य की कमान संभालने वाले नवीन पटनायक महज दूसरे मुख्यमंत्री रहे हैं. पश्चिम बंगाल में 23 साल से ज़्यादा समय तक मुख्यमंत्री रहने वाले ज्योति बसु का रिकॉर्ड हाल ही में नवीन पटनायक ने तोड़ा था.
ओडिशा के मुख्यमंत्री और बीजू जनता दल नेता नवीन पटनायक लगातार पांच बार गंजाम ज़िले की हिंजिली विधानसभा सीट से विधायक हैं. इससे पहले वो यहीं की आस्का लोकसभा सीट से लोकसभा का चुनाव जीत चुके हैं. नवीन पटनायक के पिता बीजू पटनायक 1996 में आस्का लोकसभा सीट से जीते थे. उनके बाद नवीन ने भी इस सीट से उपचुनाव जीता. साल 2000 से वो हिंजिली विधानसभा सीट से लगातार जीत रहे हैं.
नवीन पटनायक के पिता बिजयानंद पटनायक उर्फ बीजू पटनायक दो बार 1961 से 1963 और 1990 से 1995 तक ओडिशा के मुख्यमंत्री रहे और केंद्रीय मंत्री भी रहे. साल 1997 में बीजू पटनायक के निधन के बाद ओडिशा से दूर रहकर पढ़ाई पूरी करने वाले नवीन पटनायक सियासत में सक्रिय हुए.
राज्य की उड़िया भाषा ठीक से न बोल पाने वाले नवीन ने आस्का से उपचुनाव जीता और फिर लोकसभा चुनाव जीतकर सांसद बने. साल 2000 में पद से इस्तीफ़ा देकर हिंजिली से विधानसभा चुनाव लड़ने का फैसला किया.
साल 2000 में बाढ़, साइक्लोन, सूखा, ग़रीबी और बच्चा बिक्री करने जैसी समस्याएं थी. इसके अलावा सरकार के सामने ओवरड्राफ्ट की भी मुश्किल थी. ऐसे में नवीन पटनायक को आमजन का अपार जनसमर्थन मिला. 54 साल की उम्र में इस सीट से जीतकर पहली बार मुख्यमंत्री बने नवीन पटनायक अब 78 साल के हो चुके हैं.
पांच बार हिंजिली के विधायक रहने और बीते 24 सालों से प्रदेश का मुख्यमंत्री रहने के बाद भी नवीन पटनायक को लेकर एंटी इनकंबेंसी का बहुत असर नहीं दिखता है. नवीन पटनायक की एक ख़ासियत ये भी है कि वे बिना किसी आक्रामकता के सहजता से अपनी सियासी जमीन को बचाये हुए हैं.
हिंजिली विधानसभा क्षेत्र?
ओडिशा की राजधानी भुवनेश्वर से तकरीबन 170 किलोमीटर दूर हिंजिली के एक तरफ़ ऋषिकुल्या नदी और दूसरी तरफ़ घोड़ाहाड़ नदी बहती है. ये विधानसभा क्षेत्र गंजाम ज़िले और आस्का लोकसभा क्षेत्र के अन्तर्गत आता है.
हिंजिली कृषि प्रधान इलाक़ा है, साल 2019 के आंकड़ों के अनुसार, यहां वोटरों की संख्या तकरीबन 22 लाख है लेकिन रोजगार ना होने की वजह से लगभग आधी आबादी पलायन कर या तो महाराष्ट्र या फिर सूरत में बसी हुई है.
पटनायक के सामने चुनौतियां
नवीन पटनायक की उम्र उनके लिए सबसे बड़ी चुनौती है. लोगों का ये मानना है कि स्वाथ्यगत समस्या के कारण वो लोगों से अब पहले की तरह मुलाक़ात नहीं कर पा रहे हैं. हालांकि, स्थानीय लोगों का कहना है की नवीन पटनायक ओडिशा के बेहतरी के लिए काम करते दिखते हैं. ऐसे में अगर वह पूरे प्रदेश में प्रचार करते हैं तो बीजद के लिए काफ़ी फायदेमंद साबित होगा.
स्थानीय लोगों का कहना है की बीजद में वन मैन शो है यानी जो कुछ हैं वह नवीन पटनायक ही हैं, बीजद के सामने पार्टी की दूसरी पंक्ति का नेतृत्व तैयार न कर पाना बड़ी चुनौती है.
कब है मतदान
ओडिशा में लोकसभा के साथ-साथ विधानसभा चुनाव भी हो रहे हैं. ओडिशा में कुल चार चरणों में लोकसभा चुनाव हो रहा है. जिसमें पहले चरण के लिए 13 मई को मतदान हुआ है तो वहीं दूसरे चरण के लिए 20 मई को मतदान होगा. तीसरे चरण के लिए 25 और चौथे चरण के लिए 1 जून को मतदान होगा.
विधानसभा चुनाव में 13 मई को पहले चरण की 28 विधानसभा सीटों पर वोटिंग हुई है तो वहीं 20 मई को दूसरे चरण में 35 विधानसभा सीटों पर वोटिंग होगी. 25 मई को जब ओडिशा में तीसरे चरण का मतदान होगा, तब राज्य की 42 विधानसभा सीटों के लिए भी वोटिंग होगी. वहीं 1 जून को चौथे चरण के दौरान राज्य की 42 विधानसभा सीटों के लिए वोटिंग होगी.
प्रमुख मुद्दा पलायन और बेरोजगारी
ओड़िशा समेत उन सभी राज्यों के लिए पलायन और बेरोजगारी प्रमुख मुद्दा है जहां पर्याप्त संख्या में उद्योग एवं रोजगार के संसाधन नही मौजूद हैं. ओड़िशा भी इससे अछूता नही है. भारतीय जनता पार्टी ओड़िशा सरकार को पलायन एवं रोजगार के मुद्दे पर घेरने का प्रयास करते दिख रही है वहीं यह भी कहते नज़र आ रही है कि भाजपा ही विकल्प है.
हालांकि, जो हालात हैं उसे देखकर यह कहा जा सकता है की ओड़िशा में भाजपा पहले से बेहतर प्रदर्शन कर सकती है लेकिन अभी राज्य में सरकार बनाने की स्थिति में कहीं भी नजर नही आती है. अब ओड़िशा में किसकी सरकार बनेगी और लोकसभा चुनाव में ओड़िशा में कौन कमाल दिखा पाएगा यह तो मतगणना के बाद ही साफ होगा लेकिन सरकार चाहे जिसकी भी बने उसके सामने रोजगार और पलायन को रोकना एक बहुत बड़ी चुनौती होगी.
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-भारत एक्सप्रेस
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