Bharat Express

Holi 2024: काशी में मणिकर्णिका घाट पर खेली गई चिता-भस्म की होली, भोले के भक्तों में दिखा ऐसा गजब का उत्साह

भोले बाबा की नगरी काशी में रंगभरी एकादशी के बाद लोग बड़ी संख्या में महाश्मशान मणिकर्णिका घाट पर एकत्रित हुए. वहां वे मसाने की होली खेलने की परंपरा का हिस्सा बने. इस दौरान लोगों का उत्साह चरम पर रहा.

kashi holi 2024

Masan Holi 2024 : रंगभरी एकादशी के अगले दिन (21 मार्च) गुरुवार को काशी के मणिकर्णिका घाट पर चिता भस्म की होली खेली गई. घाट पर धधकती चिताओं के बीच सैकड़ों काशीवासियों ने हर-हर महादेव के उद्घोष से महाश्मशान को गुंजायमान कर दिया.बाबा की नगरी काशी में रंगभरी एकादशी के ठीक एक दिन बाद (21 मार्च) गुरुवार को महाश्मशान मणिकर्णिका घाट पर मसाने की होली खेलने की परंपरा का हिस्सा बनने के लिए लोगों का उत्साह चरम पर रहा. महाश्मशान मणिकर्णिका घाट पर लाखों लोगों ने भस्म की होली खेली. इस दौरान लोगों में गजब का उत्साह देखने को मिला. बनारस के लोगो के अनुसार माना जाता है कि मसाने की होली को काशी (Varanasi) की शाम मानी जाती है. इसमें भगवान भोलेनाथ शंकर खुद भस्मा से होली खेलते हैं.  मान्यता के अनुसार इसे फाल्गुन माह की रंगभरी एकादशी (Rangbhari Ekadashi 2024) के ठीक एक दिन बाद यानि आज (21 मार्च) को मनाया जाता है.

मणिकर्णिका घाट

पौराणिक कथाओं के अनुसार मान्यतायें

पौराणिक कथाओं के अनुसार मसान की होली की शुरूआत भगवान शिव शंकर ने की थी. ऐसा माना जाता है रंगभरी एकादशी के एक दिन बाबा विश्वनाथ पहली बार माता पार्वती के साथ विवाह के बाद पहली बार काशी आए थे. उस दिन मां का स्वागत गुलाल के रंग से किया था. इसीलिए रंगभरी एकादशी का भी यंहा विशेष महत्व है. इस दिन शिव जी और माता पार्वती जी की विशेष पूजा का भी विधान है.

Capture

काशी के मर्णिकर्णिका घाट पर खेली जाती है ये होली

काशी के मर्णिकर्णिका घाट पर भोलेनाथ ने भूत-प्रेत, यक्ष, गंधर्व और प्रेत के साथ चिता की राख से भस्म होली खेली थी. मान्यता है कि बाबा विश्वनाथ के ससुराल पक्ष के अनुरोध पर रंगभरी एकादशी के दिन उनके गौने में पिशाच, भूत-प्रेत, चुड़ैल, डाकिनी-शाकिनी, औघड़, अघोरी, संन्यासी व अन्य गण शामिल नहीं हो पाये थे. इसलिये रगभरी एकादशी के अगले दिन भगवान शिव शंकर पिशाच, भूत-प्रेत, चुड़ैल, डाकिनी-शाकिनी, औघड़, अघोरी, संन्यासी के साथ खेलते है .इसलिऐ ये चिता होली रंगभरी एकादशी के दूसरे दिन मसाने की होली के नाम से खेली जाती है. और तभी से मसाने की होली की यह परंपरा सदियों से चली आ रही है.

-भारत एक्सप्रेस



इस तरह की अन्य खबरें पढ़ने के लिए भारत एक्सप्रेस न्यूज़ ऐप डाउनलोड करें.

Also Read