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Holi in Vrindavan: वृंदावन में विधवा माताओं ने खेली फूल और अबीर की होली, कभी बेरंग थी इनकी जिंदगी, सुप्रीम कोर्ट ने दिया हक

Holi: वृंदावन में कभी भीख मांगकर अपना जीवन यापन करने को ये माताएं मजबूर थीं. इनकी दुर्दशा सामने आने के बाद सुप्रीम कोर्ट ने बड़ा फैसला सुनाया था.

holi in Vrindavan

विधवा माताओं में छाया रंगों का उल्लास

अमित भार्गव

Holi in Vrindavan: होली के मौके पर मथुरा-वृंदावन में लगातार होली के कार्यक्रमों का आयोजन किया जा रहा है. वृंदावन में सोमवार को मनाई गई होली कुछ खास रही, क्योंकि इस दिन बड़ी संख्या में विधवा माताओं ने फूलों की होली का जश्न मनाया और जमकर एक-दूसरे पर फूल बरसा कर होली खेली और एक-दूसरे के माथे पर अबीर-गुलाल का टीका भी लगाया.

बुरी दशा थी विधवा माताओं की, समाज से रहती थीं दूर

घरों से तिरस्कृत की गईं देश भर से विधवा माताएं वृंदावन में भगवान भजन को आती थीं और फिर सड़कों पर भीख मांगकर अपना जीवन यापन करती थीं, लेकिन कुछ साल पहले वृंदावन की इन्ही विधवा माताओं की दुर्दशा जब मीडिया के माध्यम से सामने आई, तो सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले को स्वत: संज्ञान लेते हुए इनकी जिम्मेदारी सामाजिक संस्थाओं को दे दी थी. इसके बाद से सामाजिक संस्थाओं ने इनकी देखभाल शुरू कर दी और इनको समाज की मुख्य धारा से जोड़ने का काम किया.

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वर्तमान में सुलभ इंटरनेशनल संस्था हजारों विधवा माताओं की जिम्मेदारी उठा रही है और उनकी बेरंग जिंदगी में रंग भरने का काम कर रही है. इसी के साथ समाज की तमाम बंदिशों को तोड़कर उनके सपनों को साकार कर रही है. अब ये माताएं समाज में रहकर हर तीज त्योहार को खुशियों के साथ मनाती हैं और हंसती हैं, गाती हैं. जीवन की खुशियां मनाती हैं. सोमवार को वृंदावन के गोपीनाथ मंदिर में संस्था के सहयोग से आयोजित होली के उत्सव के कार्यक्रम में बढ़चढ़ कर हिस्सा लिया और फूलों के साथ गुलाल की भी होली खेली.

नहीं मनातीं थीं त्योहार

सुलभ इंटरनेशनल संस्था की संस्थापक विंदेस्वरी पाठक बताती हैं कि समाज की तमाम बंदिशों के चलते ये माताएं सड़कों पर अपनी जिंदगी बिताने को मजबूर थीं और इनको त्योहार भी मनाने की मनाही थी. इनकी दुनिया बेरंग थी. इनको समाज से अलग कर दिया गया था. मगर संस्था ने नौ साल के अंदर इनको समाज की मुख्य धारा से जोड़ा और इनके जीवन में फिर से रंग घोलने का काम किया है, जो कि अनवरत जारी है.

-भारत एक्सप्रेस

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