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वैश्विक विकास के लिए भारत के विजन के मूल में शांति, सस्टेनिबिलिटी और पारस्परिक सहयोग

भारतीय उपमहाद्वीप में बदलते भूराजनैतिक परिदृश्य के बीच भारत का वैश्विक विकास दृष्टिकोण सततता, पारस्परिक सहयोग और महासागर आधारित समृद्धि पर आधारित है. प्रो. चिंतामणि महापात्रा ने महासागर की भूमिका और भारत के ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ दर्शन के महत्व पर प्रकाश डाला.

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भारतीय उपमहाद्वीप में पिछले महीने तेजी से बदले भूराजनैतिक समीकरणों के बीच विशेषज्ञों ने शुक्रवार को कहा कि वैश्विक विकास के लिए भारत के विजन के मूल में सस्टेनेबिलिटी, पारस्परिक सहयोग और महासागर आधारित समृद्धि है.

कलिंगा इंस्टीट्यूट ऑफ इंडो-पैसिफिक स्टडीज के संस्थापक और मानद अध्यक्ष प्रोफेसर चिंतामणि महापात्रा ने “महासागर (क्षेत्रों में सुरक्षा और विकास के लिए पारस्परिक और समग्र उन्नति) पहल” पर एक दिवसीय सम्मेलन से इतर कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ‘महासागर’ अवधारणा हिंद महासागर से कहीं आगे तक फैली हुई है.

उन्होंने कहा कि “यह एक शांतिपूर्ण और समृद्ध दुनिया के लिए एक दृष्टिकोण का प्रतिनिधित्व करती है, जहां सभी महासागर साझा करने वाले देश एक साथ मिलकर विकास कर सकें.” उन्होंने कहा, “भारत का वैश्विक विकास विजन स्थिरता, पारस्परिक सहयोग और महासागर आधारित समृद्धि में निहित है.”

सतत विकास में विश्वास करता है भारत

प्रोफेसर महापात्रा ने कहा, “भारत सतत विकास में विश्वास करता है और यह प्रस्ताव कर रहा है कि अंतर्राष्ट्रीय सहयोग बढ़ाकर और संघर्ष को कम करके सभी बड़े या छोटे देशों को वैश्विक स्तर पर विकास को बढ़ावा देने के लिए मिलकर काम करना चाहिए.”

उन्होंने समतावादी विकास के मार्गदर्शक सिद्धांत के रूप में भारत के गहरे निहित दर्शन ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ को रेखांकित किया, जो पूरी दुनिया को एक परिवार मानने की सोच है. उन्होंने कहा, “कोई भी देश पीछे नहीं छूटना चाहिए.”

पृथ्वी की सतह का 70% हिस्सा समुद्र से ढंका

महासागर की महत्वपूर्ण भूमिका की ओर ध्यान आकर्षित करते हुए, प्रो. महापात्रा ने कहा, “जिस तरह मानव शरीर का 70 प्रतिशत हिस्सा पानी से बना है, उसी तरह पृथ्वी की सतह का भी लगभग 70 प्रतिशत हिस्सा महासागरों से ढंका हुआ है.”

उन्होंने विकास, पर्यावरण की देखभाल और सभी के कल्याण को बढ़ावा देने के लिए समुद्री संसाधनों का बुद्धिमानी से उपयोग करने की आवश्यकता पर बल देते हुए कहा, “यह ब्लू इकोनॉमी को बेहद महत्वपूर्ण बनाता है.”

भारत के दृष्टिकोण की तुलना ‘समुद्र मंथन’ से

भारतीय पौराणिक कथाओं का हवाला देते हुए, उन्होंने विकास के लिए भारत के दृष्टिकोण की तुलना ‘समुद्र मंथन’ से की और कहा कि देश समुद्र से ज्ञान और समृद्धि दोनों निकालना चाहता है. उन्होंने कहा कि “भारत मानवता को मां महासागर द्वारा दी जा सकने वाली हर चीज का दोहन करने में विश्वास करता है.”

क्षेत्रीय सुरक्षा पर बात करते हुए, महापात्रा ने भारतीय उपमहाद्वीप में आतंकवाद, विशेष रूप से पाकिस्तान द्वारा कथित रूप से इसे राष्ट्रीय नीति के रूप में इस्तेमाल करने पर चिंता व्यक्त की.उन्होंने पाकिस्तान के प्रति चीन के समर्थन के बारे में कहा कि यह अक्सर संयुक्त राष्ट्र जैसे वैश्विक मंचों पर भारत की कार्य करने की क्षमता में बाधा डालता है.

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-भारत एक्सप्रेस 



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