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ब्रिटिश शासन के खिलाफ अभियान चलाने वाले कवि और पत्रकार माखनलाल चतुर्वेदी

माखनलाल चतुर्वेदी का जन्म 4 अप्रैल 1889 को हुआ था. वह भारत के प्रख्यात कवि, लेखक और पत्रकार थे. भारत के स्वतंत्रता संग्राम में उनकी भागीदारी और छायावाद में उनके योगदान के लिए याद किया जाता है.

माखनलाल चतुवेर्दी जयंती विशेष

माखनलाल चतुवेर्दी जयंती विशेष

माखनलाल चतुवेर्दी जयंती विशेष:महान कवि, कलम के योद्धा व स्वतंत्रता संग्राम सेनानी पंडित माखनलाल चतुर्वेदी की आज (4 अप्रैल) को जयंती है, जिन्हें साहित्य के साथ पत्रकारिता के क्षेत्र में भी उल्लेखनीय योगदान के लिए याद किया जाता है.

माखनलाल चतुर्वेदी का जन्म 4 अप्रैल 1889 को मध्य प्रदेश के होशंगाबाद जिले में बाबई नामक स्थान पर हुआ था. बाबई को अब माखन नगर के नाम से जाना जाता है और होशंगाबाद अब नर्मदापुरम कहलाता है. माखनलाल ने प्राथमिक शिक्षा के बाद घर पर ही उन्होंने संस्कृत, बांग्ला, अंग्रेजी, गुजराती आदि भाषाओं की जानकारी हासिल कर ली थी. कहा जाता है कि मात्र 16 वर्ष की आयु में वह शिक्षक बन गए थे.

जीवन परिचय

वह भारत के प्रख्यात कवि, लेखक और पत्रकार थे, जिनकी रचनाएं काफी लोकप्रिय हुई थीं. वे एक सरल भाषा और भावपूर्ण भावनाओं के अनूठे हिंदी रचनाकार थे, जिन्हें विशेष रूप से भारत के स्वतंत्रता संग्राम में उनकी भागीदारी और छायावाद में उनके योगदान के लिए याद किया जाता है.

प्रभा और कर्मवीर जैसे प्रतिष्ठित पत्रों के संपादक के रूप में उन्होंने ब्रिटिश शासन के खिलाफ जोरदार अभियान चलाया और नई पीढ़ी से गुलामी की जंजीरों को तोड़कर बाहर आने का आह्वान किया.

वह एक सच्चे देशभक्त थे और 1921-22 के असहयोग आंदोलन में भाग लेने के दौरान जेल भी गए. उनकी कविताओं में देशभक्ति के साथ-साथ प्रकृति और प्रेम का भी चित्रण हुआ है. उनका निधन 30 जनवरी 1968 को हुआ था.

प्रसिद्ध रचनाएं

माखनलाल चतुर्वेदी की प्रसिद्ध रचनाओं में हिमकिरीटिनी, हिम तरंगिणी, युग चारण, वेणु लो गूंजे धरा, दीप से दीप जले और पुष्य की अभिलाषा शामिल हैं. उनकी याद में मध्य प्रदेश साहित्य अकादमी 1987 से वार्षिक ‘माखनलाल चतुर्वेदी समारोह’ का आयोजन करती है.

इसके अलावा एक भारतीय कवि द्वारा वार्षिक ‘कविता में उत्कृष्टता के लिए माखनलाल चतुर्वेदी पुरस्कार’ भी दिया जाता है. उनके सम्मान में मध्य प्रदेश के भोपाल में माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता विश्वविद्यालय की स्थाप​ना की गई थी.

उनकी प्रसिद्ध रचना ‘पुष्प की अभिलाषा’

चाह नहीं मैं सुरबाला के
गहनों में गूंथा जाऊं,

चाह नहीं, प्रेमी-माला में
बिंध प्यारी को ललचाऊं,

चाह नहीं, सम्राटों के शव
पर हे हरि, डाला जाऊं,

चाह नहीं, देवों के सिर पर
चढ़ूं भाग्य पर इठलाऊं,

मुझे तोड़ लेना वनमाली!
उस पथ पर देना तुम फेंक,

मातृभूमि पर शीश चढ़ाने
जिस पथ जावें वीर अनेक.

-भारत एक्सप्रेस

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