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दारुल उलूम की निष्ठा पर सवाल उठाना, सूरज को दीया दिखाने जैसा- मदरसा बोर्ड

दारुल उलूम देवबंद को मदरसा बोर्ड से मान्यता की जरूरत नहीं-मदरसा बोर्ड

उत्तर-प्रदेश की योगी सरकार प्रदेश के हर मदरसों का सर्वे करा रही है. इस दौरान दारुल उलूम देवबंद  मदरसे में जांच के दौरान यह पाया गया था कि, इसे सरकार के द्वारा किसी भी प्रकार की कोई आर्थकि सहायता नहीं मिलती है और यह गैर-मान्यता प्राप्त मदरसा की श्रेणी में आता है. जिसके बाद  उत्तर प्रदेश मदरसा शिक्षा परिषद ने कहा है कि दारुल उलूम देवबंद को मदरसा बोर्ड से मान्यता की जरूरत नहीं है.

बता दें यूपी में  गैर मान्‍यता प्राप्‍त मदरसों के सर्वे में करीब 7500 मदरसे म‍िले हैं. जिसमें 156 साल पुराना देवबंद का दारुल उलूम भी शाम‍िल है. बताया जा रहा है कि इसने मदरसा बोर्ड से मान्यता नहीं ली थी.  जिसके बाद बोर्ड ने अपनी प्रतिक्रिया दी है.  बोर्ड के चेयरमैन डा. इफ्तिखार अहमद जावेद ने कहा है कि, दारुल उलूम जैसे मदरसों को बोर्ड से मान्यता लेने की कोई जरूरत नहीं है.

क्या कहना है मदरसा बोर्ड का ?

यूपी में सर्वे के दौरान दारुल उलूम देवबंद  के गैर-मान्यता प्राप्त की खबरे आने के बाद बोर्ड ने अपना बयान जारी किया.  बोर्ड के चेयरमैन डा. इफ्तिखार अहमद जावेद ने बयान जारी कर कहा कि दारुल उलूम देवबंद जो खुद देश भर में 4500 से ज्यादा मदरसों को मान्यता दे चुका  हो उसकी निष्ठा व शिक्षा के ऊपर बहस करना सूरज को दीया दिखाने जैसा है. उन्होंने कहा कि 1857 में जब आजादी की पहली लड़ाई लड़ी गई और अंग्रेजों ने शिक्षा के तमाम केंद्रों को बंद किया उसी के बाद दारुल उलूम, देवबंद की स्थापना हुई थी.

इफ्तिखार अहमद जावेद ने कहा कि यूपी सरकार उतर-प्रदेश में जो नए मदरसे खुले हो उसकी सही जानकारी प्राप्त करने के लिए राज्य में सर्वे करा रही है. इस सर्वे के माध्यम से सरकार इन मदरसों में दी जाने वाली शिक्षा की गुणवत्ता को जांच करके इसे मुख्यधारा में ला सकेगी. उन्होंने बोर्ड के द्वारा किसी नए मदरसे को मान्यता देने की बात पर कहा कि, मदरसा बोर्ड ने पिछले 7 सालों से किसी भी नए मदरसे को मान्यता नहीं दी है.

-भारत एक्सप्रेस

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