देश की सेवा में समर्पित भारतीय सशस्त्र बलों में सिख युवाओं ने बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया है.हिमालय के पहाड़ों से लेकर, घने जंगलों, तपती गर्मी के बीच झिलमिलाती रेत तक वर्दी में सिख युवाओं ने देश की सीमा की सुरक्षा का जिम्मा अपने कंधों पर उठाया है. उनका साहस कभी डगमगाता नहीं और उनका हौसला कभी कम नहीं होता. भारतीय सेना में सिख समुदाय का योगदान महाराजा रणजीत सिंह के समय से है. जब उन्होंने ‘खालसा’ को खड़ा किया था. जिसे उस समय के सबसे अजेय और अनुशासित सेनाओं में से एक माना जाता था.
1947 में आजादी के बाद भी सिख सैनिक भारतीय सेना में सेवा करते रहे. पंजाब को आज भी ‘राष्ट्र की तलवार भुजा’ के रूप में जाना जाता है. उन्होंने न केवल विभिन्न रैंकों पर बड़ी संख्या में भारतीय सेना में योगदान दिया है, बल्कि इसमें सिखों के लिए विशेष रेजिमेंट भी है. और इस समुदाय के अधिकारियों ने सेवा के रूप में भारतीय सेना, भारतीय नौसेना और भारतीय वायु सेना (आईएएफ) का नेतृत्व किया है और अभी भी कर रहे हैं. वीरता पुरस्कारों और अच्छी सेवा पदकों के मामले में सिख रेजिमेंट भारतीय सेना की सबसे सुशोभित रेजिमेंट है. 10 विक्टोरिया क्रॉस, 2 परमवीर चक्र (लांस नायक करम सिंह, कश्मीर ऑपरेशंस, 1948 और सूबेदार जोगिंदर सिंह, चीनी आक्रमण, 1962) 14 महावीर चक्र और 68 वीर चक्र. सिख रेजिमेंट की बटालियनों ने हमेशा स्वतंत्र भारतीय युद्धों में अपनी अलग पहचान बनाई है. इस रेजीमेंट का आदर्श वाक्य है ‘निश्चय कर अपनी जीत करो’ और सिख लाइट इन्फैंट्री का आदर्श वाक्य ‘देग तेग फतेह’ है, जिसका अर्थ है समृद्धि, शांति और युद्ध में विजय.
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सूबेदार जोगिंदर सिंह, जो अब तक चीनी से लड़ने वाले व्यक्ति के रूप में जाने जाते हैं, ने अक्टूबर 1962 के भारत-चीन युद्ध में घायल होने के बावजूद निकासी से इनकार कर दिया. उनका युद्ध नारा ‘वाहे गुरुजी दा खालसा, वाहे गुरुजी दी फतेह’ था. बाद में वह गंभीर रूप से घायल हो गए. और चीनी सैनिकों द्वारा कब्जा कर लिया गया. लेकिन कई सैनिकों को अकेले मार गिराया. उन्हें मरणोपरांत परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया.
-भारत एक्सप्रेस