सुप्रीम कोर्ट.
सुप्रीम कोर्ट ने मनी लॉन्ड्रिंग रोकथाम अधिनियम (PMLA), 2002 की संशोधित धारा 45 के तहत जमानत के लिए दो शर्तों को लेकर अपने फैसले में साफ किया है कि अगर मनी लॉन्ड्रिंग मामले में आरोपी शख्स को प्रवर्तन निदेशालय (ED) ने जांच के दौरान गिरफ्तार नहीं किया है और पीएमएलए कोर्ट चार्जशीट पर संज्ञान लेकर उसे समन जारी करता है तो उसे अदालत में पेश होने के बाद पीएमएलए के तहत जमानत की दोहरी शर्त को पूरा करने की जरूरत नहीं होगी.
मनी लॉन्ड्रिंग केस में SC की अहम टिप्पणी
बता दें कि PMLA की धारा 45 में जमानत की दोहरी शर्त का प्रावधान है, जिसके चलते आरोपी को जमानत मिलना मुश्किल हो जाता है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि ऐसी सूरत में अगर ईडी को उस आरोपी की हिरासत चाहिए तो उन्हें कोर्ट से ही कस्टडी की मांग करनी होगी. कोर्ट तभी आरोपी की कस्टडी ईडी को देगा जब एजेंसी के पास पूछताछ की जरूरत को साबित करने के लिए पुख्ता कारण होंगे.
अदालत ने अपने फैसले में यह भी साफ कर दिया कि ईडी और उसके अधिकारी PMLA की धारा 19 के अनुसार स्पेशल कोर्ट द्वारा शिकायत का संज्ञान लेने के बाद किसी आरोपी को गिरफ्तार नहीं कर सकते. जस्टिस अभय ओका और जस्टिस उज्ज्वल भुइयां की पीठ ने यह फैसला दिया है. पीठ ने यह भी कहा कि अगर ईडी ऐसे आरोपी की हिरासत चाहता है, तो उसे हिरासत के लिए अदालत में अर्जी दाखिल करनी होगी.
पहले सुप्रीम कोर्ट ने दो शर्तों को रखा था बरकरार
इससे पहले जस्टिस एएम खानविलकर की अध्यक्षता वाली पीठ ने मनी लॉन्ड्रिंग रोकथाम अधिनियम, 2002 की संशोधित धारा 45 के तहत जमानत के लिए दो शर्तों को बरकरार रखा था. अदालत ने कहा था कि मनी लॉन्ड्रिंग एक जघन्य अपराध है, जो न केवल राष्ट्र के सामाजिक और आर्थिक ताने-बाने को प्रभावित करता है, बल्कि अन्य जघन्य अपराधों को बढ़ावा देता है.
पीठ ने अपने फैसले में कहा था कि दो शर्तें हालांकि आरोपी के जमानत देने के अधिकार को सीमित करती हैं, लेकिन पूरी रोक नहीं लगाती हैं. प्रावधान, जैसा कि 2018 में संशोधन के बाद लागू है, उचित है और इसमें मनमानी या अनुचितता नही है.
मनी लॉन्ड्रिंग का मुकाबला
कोर्ट ने कहा था कि हम मानते हैं कि 2002 अधिनियम की धारा 45 के रूप में प्रावधान, 2018 के लागू होने के बाद संशोधन के रूप में उचित है. वित्तीय प्रणालियों और देशों की संप्रभुता और अखंडता को प्रभावित करने सहित अंतरराष्ट्रीय परिणामों वाले मनी लॉन्ड्रिंग के खतरे का मुकाबला करने के लिए 2002 के अधिनियम के उद्देश्यों के साथ सीधा संबंध है. अदालत आरोपी को जमानत देने के लिए कानून के तहत आवश्यक कठोर दोहरी जमानत शर्तों को भी बरकरार रखा था.
जमानत याचिका के खिलाफ लोक अभियोजक को सुनने के लिए अदालत के लिए दो शर्तों की आवश्यकता होती है कि उसके पास यह मानने के लिए उचित आधार हो कि आरोपी अपराध का दोषी नहीं है और जमानत पर रहने के दौरान उसके द्वारा कोई अपराध करने की आशंका नहीं है.
-भारत एक्सप्रेस
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