सुप्रीम कोर्ट (फाइल फोटो)
30 साल के बेटे के लिए इच्छामृत्यु (Euthanasia) की मांग वाली बुजुर्ग माता-पिता की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है. मामले की सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने मानवीय आधार पर एडिशनल सॉलिसिटर जनरल ऐश्वर्या भाटी से 30 साल के युवक को समुचित सुविधाजनक जगह में रखने के इंतजाम तलाशने को कहा है.
सुनवाई के दौरान सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि चूंकि युवक 2013 से बिना किसी बाहरी जीवन रक्षक मशीनों के जी रहा है, लिहाजा हाईकोर्ट के उस आदेश में हमें कोई खामी नजर नहीं आती जिसमें इच्छामृत्यु दिए जाने से इंकार किया था. यह याचिका अशोक राणा और उनकी पत्नी निर्मला देवी ने अपने बेटे हरीश के लिए लगाई है. जिसकी याचिका को दिल्ली हाईकोर्ट ने खारिज कर दिया था. हरीश जिंदा है उसकी अभी सांसे चल रही है लेकिन वो 11 साल से बिस्तर पर पड़ा हुआ है. क्वाड्रिप्लेजिया से पीड़ित, यानी 100 फीसदी विकलांगता से ग्रसित है.
याचिका में कहा गया है कि हरीश एक जिंदा कंकाल की तरह 2013 से उसी बिस्तर पर यू ही पड़ा हुआ है. माता-पिता का कहना है कि हम हमेशा उसके पास नही रहेंगे, तो फिर उसका देखभाल कौन करेगा. राज सैट एयर कैटरिंग लिमिटेड में काम करने वाले राणा ने बताया हमने एक साल तक हरीश की देखभाल के लिए 27000 रुपये प्रति माह के हिसाब से एक नर्स को रखा था. यह रकम उस समय मेरे 28000 रुपये के मासिक वेतन के लगभग बराबर थी.
राणा आगे कहते है, इसके अलावा हमे एक फिजियोथेरेपिस्ट के लिए 14000 रुपये देने पड़े. खर्च वहन करने लायक नहीं थे, इसलिए हमें सेवाएं बंद करनी पड़ी और मजबूरन हमने खुद ही देखभाल करने का विकल्प चुना. फिलहाल हरीश का हर महीने का मेडिकल खर्च 20000-25000 रुपये है, जिसमें दवाइयां, खाना और बेडसोर के ईलाज जैसी दूसरी जरूरी चीजें शामिल है.
राणा कहते हैं, सरकार से कोई मदद नही मिल रही है और हम उसके मेडिकल खर्च वहन नहीं कर सकते है. हम ही जानते हैं कि हम कैसे काम चला रहे हैं. हालांकि हरीश के अस्पताल में भर्ती होने पर परिवार को एक बार केंद्र सरकार की योजना से 50000 रुपये की आर्थिक मदद मिली थी. वह कहते है हम कुछ अन्य लोगों की जिंदगी बचाने के लिए उसके अंग दान करेंगे. हमें यह जानकर सांत्वना मिलेगी कि वह किसी और के शरीर में एक सही जीवन जी रहा है.
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-भारत एक्सप्रेस
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