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‘इसलिए लोग सेना में शामिल होना पसंद नहीं करते…’ जानें सुप्रीम कोर्ट ने आखिर क्यों की ऐसी टिप्पणी

पीठ ने कहा, ‘पहली नजर में ऐसा लगता है कि उन्होंने (चयन बोर्ड) उनके खिलाफ पूर्वाग्रही मानसिकता से काम किया. हम इस मुद्दे की जांच करना चाहेंगे. हम किसी अधिकारी का इस तरह शोषण नहीं होने दे सकते.

Supreme Court

सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने शॉर्ट सर्विस कमीशन अधिकारी को स्थायी कमीशन के लिए विचार ना करने पर सेना को आड़े हाथ लिया है. कोर्ट ने टिप्पणी करते हुए कहा कि सेना के इसी मानसिकता के चलते लोग सेना में शामिल होना पसंद नही करते है. कोर्ट 4 फरवरी को इस मामले में अगली सुनवाई करेगा.

जैसे ही आप सलाम करना रुकेंगे, वे आपके खिलाफ हो जाएंगे

जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस कोटिश्वर सिंह की पीठ ने मामले की सुनवाई के दौरान कहा कि हम जानते है कि ये चीजें कैसे काम करती है. अगर आप दिन-रात उन्हें सलाम करते रहेंगे तो सब कुछ ठीक है, लेकिन जैसे ही आप सलाम करना छोड़ देते हैं तो वे आपके खिलाफ हो जाएंगे.

कोर्ट मेजर रविंदर सिंह की ओर से दायर याचिका पर सुनवाई कर रहा है. मामले की सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता की ओर से पेश वकील ने कहा कि सशस्त्र बल न्यायाधिकरण का दरवाजा खटखटाने के बाद उनका एसीआर असंतोषजनक हो गया और सेवा 10 वर्षो में से उन्हें उनकी वार्षिक गोपनीय रिपोर्ट में उत्कृष्ट अंक दिए गए.

ऐसे व्यवहार पर लोग सेना में क्यों शामिल होंगे?

सेना की ओर से पेश एडिशनल सॉलिसिटर से जस्टिस सूर्यकांत ने कहा कि जब वह सेवा से बाहर जाना चाहते थे, तो आपने उन्हें ऐसा करने की अनुमति नहीं दी. जब उन्होंने स्थायी कमीशन के लिए आवेदन किया तो आपने उसपर विचार नही किया. अगर आप इस तरह का व्यवहार करते हैं तो लोग सेना में क्यों शामिल होंगे.

एएसजी ने कहा कि चयन बोर्ड ने 183 अधिकारियों पर विचार किया, जिनमें से 103 को स्थायी कमीशन के लिए चुना गया. उन्होंने दलील दी कि मेजर रविंदर सिंह को 80 अंकों की कट ऑफ में से केवल 58 अंक मिले और यही कारण था कि उन्हें स्थायी कमीशन के लिए विचार नही किया गया.

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एक अन्य याचिका पर कोर्ट सेना को लगा चुका है फटकार

बता दें कि इससे पहले एक अन्य याचिका पर कोर्ट सेना को फटकार लगा चुका है. कोर्ट ने महिला अधिकारियों के उचित अधिकारों को खत्म करने का रास्ता खोजने के लिए सेना के रवैये पर नाराजगी जाहिर कर चुका है. कोर्ट ने कहा था इस तरह का नजरिया उन महिला अधिकारियों को न्याय देने की जरूरत पर प्रतिकूल प्रभाव डालता है, जिन्होंने उचित अधिकार प्राप्त करने के लिए लंबी और कठिन लड़ाई लड़ी है.

-भारत एक्सप्रेस 



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