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7 साल की मासूम बच्ची का यौन उत्पीड़न करने पर कोर्ट ने आरोपी को 5 साल की सजा और तीन लाख रुपये का लगाया जुर्माना

सात साल की बच्ची पर यौन हमला के आरोपी को 5 साल की सजा और तीन लाख जुर्माना. जबकि बलात्कार के अन्य दोषी को 10 साल की सजा और पांच लाख रुपये का जुर्माना लगाया है.

Sexual assault on a seven year old girl

सात साल की बच्ची पर यौन हमला के आरोपी को 5 साल की सजा

दिल्ली की रोहिणी कोर्ट ने सात साल की बच्ची पर गंभीर यौन हमला के आरोपी को पांच साल की सश्रम कारावास की सजा सुनाई है. कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि सजा घृणित कृत्य की गंभीरता के रूप में होना चाहिए। रोहिणी कोर्ट के अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश सुशील बाला डागर ने दोषी पर तीन लाख रुपये का जुर्माना लगाया है. जुर्माने की यह राशि पीड़िता को दिया जाएगा.

पीड़िता घटना के बारे में अपनी गवाही पर अड़ी रही

सजा पर बहस के दौरान अतिरिक्त लोक अभियोजक योगिता कौशिक दहिया ने कोर्ट को बताया कि पीड़िता घटना के बारे में अपनी गवाही पर अड़ी रही और दोषी अपने घृणित कृत्य के लिए किसी सहानुभूति का हकदार नहीं है. अदालत ने कहा कि दोषी को दी गई सजा घृणित कृत्य की गंभीरता के अनुरूप होनी चाहिए ताकि यह समान विचार धारा वाले व्यक्तियों के लिए एक प्रभावी निवारक के रूप में काम करें.

आरोपी को 5 साल की सजा सुनाई गई

अपराध की गंभीरता, बाल पीड़ित और दोषी की आयु, दोषी और बाल पीड़ित की पारिवारिक स्थिति, उन्हें नियंत्रित करने वाले सामाजिक और आर्थिक कारकों सहित गंभीर और कम करने वाली परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए, दोषी को पॉक्सो अधिनियम की धारा 10 के तहत 5 साल के कठोर कारावास की सजा सुनाई जाती है.

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साल 2018 का है मामला

साथ ही कोर्ट ने 48 वर्षीय दोषी को यौन उत्पीड़न के लिए एक साल के कठोर कारावास की सजा सुनाई और कहा कि दोनों सजाए एक साथ चलेंगी. यह मामला साल 2018 का है. 48 वर्षीय आरोपी को यौन अपराधों से बच्चों के संरक्षण (पॉक्सो) अधिनियम की धारा 10 और 12 के तहत गंभीर यौन उत्पीड़न और यौन उत्पीड़न का दोषी ठहराया था.

कोर्ट ने 12 साल की सश्रम कारावास की सजा सुनाई

वही एक नाबालिग से दुष्कर्म कर उसे गर्भवती करने के दोषी 60 वर्षीय सरकारी कर्मचारी को कोर्ट ने 12 साल की सश्रम कारावास की सजा सुनाई है. कोर्ट ने कहा कि अनुचित नरमी बरतने से पीड़िता का आपराधिक न्याय प्रणाली में विश्वास कम हो जाएगा. कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि पितृसत्तात्मक समाज में हर कोई नाबालिग से यौन उत्पीड़न की घटना में पीड़िता को दोषी ठहराने की जल्दबाजी दिखाता है.

लेकिन इस तरह के मामलों में अपराधी को पूरी तरह से दोषी ठहराया जाना चाहिए. कोर्ट ने कहा कि दंडात्मक सजा की गंभीरता बढ़ाने से इस तरह के अपराधों पर रोक लगने की संभावना नही है, लेकिन इसका मतलब यह नही है कि दोषियों के प्रति अनुचित नरमी बरती जाए, जिससे पीड़ित महिलाओं व नाबालिगों का आपराधिक न्याय प्रशासन में विश्वास कम होगा.

-भारत एक्सप्रेस 



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