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UP BJP: घोसी विधानसभा उपचुनाव में बड़े अंतर से हार के बाद भाजपा ने बिगड़े माहौल को दुरुस्त करने पर मंथन शुरू कर दिया है. साथ ही जातीय और क्षेत्रीय समीकरण पर फिर कील कांटे दुरुस्त करने में लग गया है. उपचुनाव में भाजपा प्रत्याशी को 37.54 फिसदी ही वोट मिला. इतने कम वोट मिलने के पीछे मतो का बिखराव था. सपा और विपक्षी दल इस बिखराव को मुद्दा बनाएंगे और लोकसभा चुनाव में बड़ा संदेश देने की तैयारी है कि पीडीए का फार्मूला सफल रहा. अब भाजपा के सामने चुनौती है कि इस माहौल का कैसे जवाब दिया जाये. लोकसभा चुनाव में वोटो का बिखराव हुआ तो भाजपा को बड़ी चुनौती का सामना करना पड़ सकता है.
भाजपा के शीर्ष नेतृत्व ने काUPर्यक्रम और अभियान की ऐसी रुपरेखा बनाई थी जिस पर 80 सीटों को जीतने का संकल्प लिया गया था. वजह थी कि पिछड़ा और दलित वर्ग को भाजपा की विचारधारा से जोड़ा जाये और केंद्र और राज्य सरकार की योजनाओं को उन तक पहुंचाया जाये.
लाभार्थियों से संवाद और युवाओं को जोड़ने की मुहीम तेज की जाये. अब भाजपा के बनाये कार्यक्रम और अभियान की परीक्षा घोसी विधानसभा उप चुनाव थी जहां 24 मंत्री और 60 से ज्यादा पदाधिकारी लगाए गए ताकि भाजपा की विचारधारा और काम को बताया जा सके. इस मुहीम में सहयोगी दल निषाद पार्टी और सुभासपा को भी अपने वर्ग को साधने और एकजुट करने की जिम्मेदारी दी गई लेकिन यह सभी समीकरण फेल साबित हो गए.
भाजपा और सहयोगी दल वोटो के बिखराव को रोक नहीं सके. दलित और पिछड़ा वोट बिखर गया नतीजा यह रहा कि समाजवादी पार्टी की बड़ी जीत हुई. यूपी में सबसे ज्यादा पिछड़ा वोट बैंक 52 फिसदी है. पिछड़ा वर्ग में यादव और गैर यादव धड़ों में बंटा हुआ है. जहां यादव 11 फीसदी हैं तो वही गैर यादव 43 फ़ीसदी हैं. यादव जाति के बाद सबसे ज्यादा कुर्मी मतदाताओं की संख्या है. इस जाति के मतदाता दर्जनभर जनपदों में 12 फ़ीसदी तक हैं. वहीं वर्तमान में अपना दल कि इस जाति पर मजबूत पकड़ है जो भाजपा की सहयोगी पार्टी है. पिछड़ा वर्ग में मौर्य और कुशवाहा जाति की संख्या प्रदेश के 13 जिलों में सबसे ज्यादा है. लोध, मल्लाह और निषाद समेत राजभर जाति का अलग अलग हिस्सों में प्रभाव है.
भाजपा ने पिछडो को साधने के लिए उनके नेता संजय निषाद, ओम प्रकाश राजभर और अनुप्रिया पटेल की पार्टी को सहयोगी दल के रूप में अपने साथ रखा है. यह नेता अपने वर्ग में प्रभाव भी रखते हैं और पिछले चुनाव मेँ भाजपा को इस वर्ग का समर्थन मिला. अब उसी को बरकरार रखने की चुनौती है. लोकसभा चुनाव में एनडीए और इंडिया के बीच सीधी टक्कर है. सपा-कांग्रेस और बसपा इसमें सेंधमारी के लिए हर प्रयास में जुटी है. सपा और सहयोगी दल को घोसी उप चुनाव मेँ इसमें कामयाबी भी मिली और इसी संदेश को वह लेकर चलने की रणनीति बना चुके हैं. सपा के राष्ट्रीय महासचिव शिवपाल यादव के प्रबंधन ने फिर साबित किया कि मुश्किल हालात में संघर्ष कर जीत सकते हैं.
इसी तरह यूपी की आबादी का 20 फिसदी हिस्सा मुसलमान का है. भाजपा इसमें पसमंदा मुसलमानो को साथ लेने की मुहीम छेड़ चूका है और कुछ हद तक कामयाब भी है लेकिन अभी भी बड़ा हिस्सा सपा और बसपा की ओर झुकाव रख रहा है. घोसी मेँ मुस्लिम मतदाताओं का 90 फिसदी वोट समाजवादी पार्टी को मिला. अब भाजपा को लोकसभा चुनाव मेँ मुस्लिम मतो मेँ बिखराव के लिए बड़ी रणनीति पर काम करना होगा. उत्तर प्रदेश में सवर्ण मतदाता की आबादी 23 फ़ीसदी है, जिसमें सबसे ज्यादा 11 फ़ीसदी ब्राम्हण, 8 फ़ीसदी राजपूत और 2 फ़ीसदी कायस्थ हैं. इस जाति के वोट बैंक पर किसी राजनीतिक दल का कब्जा नहीं रहा है. बल्कि ये जातियां खुद राजनीतिक पार्टियों में अपनी दावेदारी को दर्ज कराती रही हैं.
दलित वोट बैंक जाटव और गैर जाटव में बटा हुआ है. जाटव जाति की जनसंख्या सबसे ज्यादा है जो 54 फीसदी है. हालांकि दलित समुदाय में उप जातियों की संख्या 70 से ज्यादा है. इनमे 16 फ़ीसदी पासी और 15 फ़ीसदी बाल्मीकि जाति का हिस्सा है. दलित वोटर किसी की भी सरकार बनाने मेँ निर्णायक भूमिका अदा करते हैं और इनका झुकाव जहाँ गया उस दल को उम्मीद से बढ़कर नतीजे मिलते हैं. 2014 और 2019 के लोकसभा चुनाव मेँ भाजपा ने सेंधमारी की और बड़ी कामयाबी हासिल की. अब उसको बरकरार रखने की चुनौती है इसमें अगर इंडिया गठबंधन ने बिखराव किया तो भाजपा के लिए 80 सीटें जीतने का संकल्प अधूरा रह सकता है. भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष भूपेंद्र चौधरी और प्रदेश महामंत्री संगठन धर्मपाल सिंह को कार्यक्रम और अभियान को और मजबूती से आगे बढ़ाएंगे. घोसी मेँ हार के कारणों पर मंथन शुरू हो चूका है.
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