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वक्फ का अर्थ और भारत में इसकी शुरुआत: क्या मुगलों का था इसका विवादित इतिहास?

केंद्र सरकार 2 अप्रैल 2025 को वक्फ बोर्ड संशोधन विधेयक लोकसभा में पेश करेगी, जिसे पहले जेपीसी को भेजा गया था. वक्फ इस्लाम में जनकल्याण के लिए दान की गई संपत्ति है, जिसकी शुरुआत भारत में 12वीं सदी से मानी जाती है.

History of Waqf

History of Waqf: केंद्र सरकार ने तमाम विवादों के बावजूद वक्फ बोर्ड संशोधन विधेयक को लोकसभा में पेश करने का निर्णय लिया है. यह विधेयक 2 अप्रैल 2025, यानी बुधवार को संसद में प्रस्तुत किया जाएगा. इससे पहले, 8 अगस्त 2024 को संसदीय कार्य और अल्पसंख्यक कल्याण मंत्री किरेन रिजिजू ने इस विधेयक को लोकसभा में पेश किया था, लेकिन विपक्ष के जोरदार विरोध के कारण इसे संयुक्त संसदीय समिति (JPC) के पास भेज दिया गया.

जेपीसी में कुल 44 संशोधन सुझाए गए, जिनमें से लगभग 14 को समिति ने स्वीकार कर लिया. संशोधित विधेयक को केंद्रीय मंत्रिमंडल ने पहले ही हरी झंडी दे दी है और अब यह मंगलवार को संसद के पटल पर आने वाला है. इस मौके पर वक्फ से जुड़े कुछ अहम सवालों और उनके जवाबों को समझना जरूरी है, जो इसके इतिहास और महत्व को उजागर करते हैं.

…’वक्फ’ से ‘वाकिफ’ तक

वक्फ शब्द अरबी भाषा से लिया गया है और इसका मूल ‘वकुफा’ से जुड़ा है, जिसका अर्थ है रोकना या ठहरना. वक्फ का मतलब होता है किसी चीज को संरक्षित करना. इस्लाम में वक्फ उस संपत्ति को कहते हैं जो लोगों के कल्याण के लिए दान की जाती है. यह एक तरह का दान ही है, जिसमें दान देने वाला अपनी चल या अचल संपत्ति को समाज के हित के लिए समर्पित कर देता है. इसमें न सिर्फ जमीन, खेत या मकान शामिल हो सकते हैं, बल्कि रोजमर्रा की चीजें जैसे पंखा, कूलर, साइकिल या टीवी भी दान की जा सकती हैं. शर्त बस इतनी है कि यह दान जनकल्याण के उद्देश्य से किया जाए.

दान देने वाले को ‘वाकिफ’ कहा जाता है और वह यह भी तय कर सकता है कि दान की गई संपत्ति या उससे होने वाली आय का उपयोग किस तरह होगा. मिसाल के तौर पर, अगर वाकिफ कहे कि उसकी संपत्ति से होने वाली कमाई सिर्फ अनाथ बच्चों की मदद के लिए खर्च हो, तो वैसा ही किया जाएगा.

वक्फ की एक मिसाल

वक्फ से जुड़ी एक मशहूर कहानी खलीफा उमर के समय की है. कहा जाता है कि खलीफा उमर ने खैबर में एक जमीन हासिल की और पैगंबर मोहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) से सलाह मांगी कि इसका सबसे अच्छा इस्तेमाल कैसे हो सकता है. पैगंबर ने कहा कि इस जमीन को बांधकर रखो, इसे न बेचा जाए, न उपहार में दिया जाए और न ही किसी को विरासत में सौंपा जाए. इसके फायदे को लोगों की भलाई के लिए इस्तेमाल करो.

इस तरह वह जमीन वक्फ में बदल गई. एक और उदाहरण पैगंबर के समय का है, जब 600 खजूर के पेड़ों वाला एक बाग वक्फ किया गया और उसकी आय से मदीना के गरीबों की सहायता की जाती थी. यह वक्फ के शुरुआती उदाहरणों में से एक माना जाता है. इसी तरह, मिस्र की राजधानी काहिरा में 10वीं सदी में बनी अल अजहर यूनिवर्सिटी भी वक्फ का एक रूप है, जो आज भी अरबी भाषा और संस्कृति की शिक्षा के लिए मशहूर है.


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भारत में वक्फ की शुरुआत

भारत में वक्फ की शुरुआत इस्लाम के आगमन के साथ मानी जा सकती है, लेकिन इतिहास में इसकी सटीक तारीख या पहला शासक स्पष्ट नहीं है. यह सवाल वैसा ही है जैसे यह पूछना कि दान की परंपरा कब शुरू हुई. फिर भी, कुछ इतिहासकार मानते हैं कि वक्फ की शुरुआत 12वीं सदी के अंत में मोहम्मद गोरी के समय से हुई. गोरी ने पृथ्वीराज चौहान को हराने के बाद अपनी सत्ता मजबूत करने के लिए इस्लामी संस्थानों को बढ़ावा दिया. उसने मुल्तान की जामा मस्जिद के लिए दो गांव दान किए, जिन्हें भारत में वक्फ के पहले उदाहरणों में गिना जाता है.

कहा जाता है कि भारतीय रेलवे और सेना के बाद वक्फ बोर्ड देश का तीसरा सबसे बड़ा जमीन मालिक है. इसकी जड़ें 12वीं सदी के अंत में अविभाजित भारत के पंजाब के मुल्तान से शुरू हुईं और दिल्ली सल्तनत के शासकों के दौर में यह फैलता गया. कुछ लोग मानते हैं कि 7वीं सदी में अरब व्यापारियों के साथ दक्षिण भारत, खासकर मालाबार क्षेत्र में वक्फ की शुरुआत हुई, लेकिन इसे शासकीय स्तर पर लागू करने का श्रेय दिल्ली सल्तनत को दिया जाता है.

दिल्ली की सल्तनत और वक्फ

दिल्ली सल्तनत के दौर से वक्फ संपत्तियों का जिक्र मिलने लगता है. उस समय ज्यादातर जमीनें शासकों के पास होती थीं, जो खुद वाकिफ बनकर मस्जिदों, मदरसों और अन्य कल्याणकारी कार्यों के लिए संपत्ति दान करते थे. कुतुबुद्दीन ऐबक (1206-1210) ने भारत में इस्लामी शासन की नींव रखी, लेकिन इल्तुतमिश (1211-1236) के समय वक्फ जैसी परंपराओं को व्यवस्थित रूप मिला. इल्तुतमिश ने इस्लामी कानूनों को लागू करने में अहम भूमिका निभाई, जिसमें वक्फ भी शामिल था.


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मुगल काल में वक्फ

मुगल शासकों ने वक्फ को और मजबूत किया. बाबर (1526-1530) और अकबर (1556-1605) ने इसे संगठित रूप दिया. अकबर ने अपने शासन में धर्मार्थ कार्यों के लिए जमीनें दान कीं, जिससे वक्फ की प्रथा और फैली. इस तरह, इल्तुतमिश को वक्फ की शुरुआती नींव रखने वाला माना जा सकता है, लेकिन यह प्रथा धीरे-धीरे विकसित हुई.

ब्रिटिश काल में वक्फ

ब्रिटिश शासन में वक्फ को औपचारिक रूप मिला. 1913 में वक्फ बोर्ड की स्थापना हुई और 1923 में वक्फ एक्ट बना, जिसने इसे कानूनी आधार दिया. उससे पहले यह व्यक्तिगत स्तर पर चलता था, जहां लोग अपनी संपत्ति गरीबों, शिक्षा और धार्मिक कार्यों के लिए दान करते थे. इतिहासकारों का कहना है कि उस समय जमींदार और नवाब अपनी अतिरिक्त जमीनें समाज के लिए समर्पित कर देते थे.

वक्फ की मौजूदा चुनौतियां

आज वक्फ संपत्तियों की स्थिति चिंताजनक है. कई जगहों पर इनका गलत इस्तेमाल हुआ और सरकारें इसे नियंत्रित करने में नाकाम रहीं. कुछ जानकार मानते हैं कि इसमें पारदर्शिता की जरूरत है, लेकिन इसका नियंत्रण समुदाय के पास रहना चाहिए. अगर सरकार या बाहरी लोग हस्तक्षेप करेंगे, तो वक्फ का मूल मकसद खत्म हो सकता है.

वक्फ का महत्व

इस्लाम में वक्फ को नमाज और हज जितना ही अहम माना जाता है. यह परंपरा भारत में करीब 1400 सालों से चली आ रही है. इसका मतलब है कि कोई व्यक्ति अपनी संपत्ति को अपने मालिकाना हक से हटाकर लोगों की भलाई के लिए समर्पित कर दे. यह पूरी तरह व्यक्तिगत पहल पर आधारित है और ज्यादातर वक्फ संपत्तियां मस्जिदों, कब्रिस्तानों और दरगाहों के रूप में हैं.

कुल मिलाकर, वक्फ एक धार्मिक और सामाजिक परंपरा है, लेकिन आज इसमें सुधार की जरूरत महसूस की जा रही है. केंद्र सरकार का यह संशोधन विधेयक कितना कारगर होगा, यह आने वाला वक्त बताएगा.


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-भारत एक्सप्रेस



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