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सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला, सरकारी अस्थायी कर्मचारियों को समान वेतन का हक

सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाया कि सरकारी विभागों और संस्थानों में लंबे समय से कार्यरत अस्थायी कर्मचारी समान वेतन के हकदार हैं. गाजियाबाद नगर निगम के माली की सेवाएं समाप्त करने के आदेश को रद्द कर, सेवा नियमित करने और 50% पिछला वेतन देने का निर्देश दिया गया.

Supreme Court

सुप्रीम कोर्ट ने एक कर्मचारी की याचिका पर बड़ा फैसला दिया है, कोर्ट ने अपने फैसले में कहा है कि सरकारी विभागों और संस्थानों में स्वीकृत पदों पर लंबे समय से काम कर रहे अस्थायी कर्मचारी लंबे समय तक काम करता है तो वह समान वेतन पाने के हकदार है. यह फैसला जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस प्रसन्ना बी. वराले की बेंच ने दिया है.

कोर्ट ने गाजियाबाद नगर निगम की ओर से 2005 में माली की सेवाएं समाप्त करने के आदेश को रद्द कर दिया है. बागवानी विभाग के जरिये 1998 से सेवाएं दे रहे इन कर्मियों को बिना किसी नोटिस, लिखित आदेश हटा दिया गया था, यहां तक कि मुआवजा भी नही दिया गया था. सुप्रीम कोर्ट ने उनकी नियुक्ति के छह महीने के भीतर सेवाओं को नियमित करने का निर्देश दिया है, और नगर निगम को उन्हें 50% पिछला वेतन देने का आदेश दिया है.

कोर्ट ने कहा कि नौकरशाही की सीमाएं उन कामगारों के वैध अधिकारों को प्रभावित नही कर सकती, जिन्होंने लंबे समय तक वास्तविक नियमित भूमिकाओं में लगातार काम किया है. हालांकि कि नगर निगम के बजट व भर्ती नियमों के अनुपालन की चिंताओं पर विचार होना चाहिए, लेकिन इससे नियोक्ता को वैधानिक दायित्वों से मुक्त नहीं किया जा सकता या न्यायसंगत अधिकारों को नकारा नही जा सकता है.

कोर्ट ने कहा है कि नैतिक व कानूनी रूप से, जो कर्मचारी साल दर-साल नगरपालिका की जरूरतों को पूरा करते हैं, उन्हें अनावश्यक नहीं माना जा सकता. बता दें कि सुप्रीम कोर्ट ने 2006 में उमा देवी के मामले में फैसला था कि दैनिक वेतन भोगी कर्मचारी स्वीकृत पदों और जरूरी संवैधानिक औपचारिकताओं को पूरा किए बिना स्थायी रोजगार का दावा नहीं कर सकते.

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-भारत एक्सप्रेस 



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