
सुप्रीम कोर्ट.
Supreme Court on Sharia Law: अगर कोई मुस्लिम परिवार में पैदा होने के बावजूद इस्लाम पर यकीन नही रखता है तो वह शरीयत कानून मानने के लिए बाध्य होगा या फिर देश का सेकुलर सामान्य सिविल कानून उसपर लागू होना चाहिए. इसको लेकर दाखिल याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार और केरल सरकार को नोटिस जारी कर, जवाब मांगा है. सीजेआई संजीव खन्ना की अध्यक्षता वाली बेंच ने इस याचिका को मूल याचिका के साथ टैग कर दिया है. कोर्ट 5 मई को इस मामले में अगली सुनवाई करेगा.
यह याचिका नौशाद के के नामक व्यक्ति ने दायर की है. याचिकाकर्ता की ओर से पेश वकील ने कोर्ट को बताया कि सुप्रीम कोर्ट में पहले से लंबित याचिका और इस याचिका में अंतर है. पहले की याचिका में धर्म को त्याग नही किया है. जबकि दूसरे याचिकाकर्ता ने धर्म को नही छोड़ा है. पिछली सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार की ओर से पेश एडिशनल सॉलिसिटर जनरल ऐश्वर्या भाटी ने कहा था कि कानून में इसको लेकर प्रावधान है. जहां तक समान नागरिक संहिता का सवाल है तो, सरकार इस पर विचार कर रही हैं.
याचिकाकर्ता की दलील
एएसजी भाटी ने कहा था कि यूसीसी आएगा या नहीं अभी कुछ नही कह सकते. यह याचिका केरल की सफिया पीएम नाम की एक महिला की ओर से दायर की गई है. सफिया ने याचिका में मांग की गई है कि मुस्लिम परिवार में जन्म लेने के बावजूद, जो मुस्लिम पर्सनल लॉ का पालन नहीं करना चाहते, उनपर भारतीय उत्तराधिकार एक्ट 1925 लागू होना चाहिए. सफिया ने याचिका में कहा है कि वह और उनके पिता दोनों ही आस्तिक मुस्लिम नहीं है, इसलिए पर्सनल लॉ का पालन नहीं करना चाहते. लेकिन चूंकि वो जन्म से मुस्लिम है, इसलिए शरीयत कानून के मुताबिक उनके पिता चाहकर भी उन्हें एक तिहाई से ज्यादा संपत्ति नहीं दे सकते है. बाकी दो तिहाई संपत्ति याचिकाकर्ता के भाई को मिलेगी.
सफिया का कहना है कि उनका भाई डाउन सिंड्रोम से पीड़ित होने के चलते असहाय है. वो इसकी भी देखभाल करती है. पिछली सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता की ओर से पेश वकील ने कहा था कि संविधान का अनुच्छेद लोगों को अपने धर्म का पालन करने का मौलिक अधिकार देता है. यही अनुच्छेद इस बात का भी अधिकार देता है कि कोई चाहे तो नास्तिक हो सकता है. इसके बावजूद सिर्फ किसी विशेष मजहब को मानने वाले परिवार में जन्म लेने के चलते उसे उस मजहब का पर्सनल लॉ मानने के लिए बाध्य नही किया जाना चाहिए.
कानून में खामी या अस्पष्टता?
वकील ने यह भी कहा था कि अगर याचिकाकर्ता और उसके पिता लिखित में यह कह देते है कि वह मुस्लिम नहीं है, तब भी उनकी संपत्ति पर उनके रिश्तेदारों के दावा बन सकता है. याचिकाकर्ता का कहना था कि सबरीमाला मामले में दिए गए फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने यह साफ कर चुका है कि संविधान के अनुच्छेद 25 जहां लोगों को धर्म के पालन करने की आजादी देता है, वही इस बात का भी अधिकार देता है कि अगर वो चाहे तो नास्तिक हो सकते है.
ऐसे में सिर्फ किसी विशेष मजहब में जन्म लेने के चलते उसे उस मजहब के पर्सनल लॉ को मानने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता. शरीयत कानून के अनुसार जिसने इस्लाम छोड़ दिया है, वह विरासत का अधिकार खो देगा. धर्म छोड़ने के बाद विरासत के अधिकार के लिए कोई प्रावधान नही होने से खतरनाक स्थिति हो जाएगी, क्योंकि न तो भारतीय उत्तराधिकार अधिनियम और न ही शरिया कानून उसकी रक्षा कर सकेंगे.
-भारत एक्सप्रेस
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