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प्लेसेस ऑफ वर्शिप एक्ट को लेकर एनसीपी नेता ने सुप्रीम कोर्ट में दायर की हस्तक्षेप याचिका

प्लेसेस ऑफ वर्शिप एक्ट 1991 की धर्मनिरपेक्षता को संरक्षित करने सांप्रदायिक सद्भाव को बढ़ावा देने और राष्ट्रीय एकता को बाधित करने वाले तनाव को रोकने में महत्वपूर्ण भूमिका है.

Supreme Court

सुप्रीम कोर्ट (फाइल फोटो)

प्लेसेस ऑफ वर्शिप एक्ट 1991 को लेकर एनसीपी (शरद पवार गुट) के विधायक डॉक्टर जितेंद्र आव्हाड ने सुप्रीम कोर्ट में हस्तक्षेप याचिका दायर की है. जितेंद्र आव्हाड से पहले जमीयत उलेमा ए हिंद, ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड और कांग्रेस प्रवक्ता आलोक शर्मा हस्तक्षेप याचिका दायर कर चुके हैं. विधायक डॉक्टर जितेंद्र आव्हाड ने अपनी अर्जी में प्लेसेस ऑफ वर्शिप एक्ट 1991 का बचाव किया है.

अन्य संगठनों का पक्ष

इस एक्ट की धर्मनिरपेक्षता को संरक्षित करने सांप्रदायिक सद्भाव को बढ़ावा देने और राष्ट्रीय एकता को बाधित करने वाले तनाव को रोकने में महत्वपूर्ण भूमिका है. वहीं मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी ने अपनी हस्तक्षेप याचिका में प्लेसेस ऑफ वर्शिप एक्ट 1991 को बनाए रखने की कोर्ट से मांग की है. सीपीएम ने देश भर में मस्जिदों और दरगाहों के हिंदू मंदिर होने का दावा करते हुए दाखिल हो रहे मुकदमों का विरोध किया है. सीपीएम ने इसे धर्मनिरपेक्षता के लिए खतरा बताया है. सीपीएम ने अपनी याचिका में यह भी कहा है कि संविधान से हर नागरिक को समानता, सम्मान से जीवन जीने और धार्मिक स्वतंत्रता का मौलिक अधिकार मिला है. यह कानून ऐसे अधिकारों का संरक्षण करता है. इसमें बदलाव सामाजिक समरसता को नुकसान पहुचाएगा.

2020 से यह मामला कोर्ट में लंबित है. यह याचिका विश्वभद्र पुजारी पुरोहित महासंघ, डॉक्टर सुब्रमण्यम स्वामी, अश्विनी कुमार उपाध्याय, करुणेश कुमार शुक्ला और अनिल त्रिपाठी ने दायर की है. याचिका में प्लेसेस ऑफ वर्शिप एक्ट 1991 को रद्द करने की मांग की गई है. वहीं मुश्लिम पक्ष जमीयत उलेमा ए हिंद की ओर से दायर याचिका में प्लेसेस ऑफ वर्शिप एक्ट 1991 के सपोर्ट में दायर की गई है.

ज्ञानवापी मस्जिद कमिटी का पक्ष

दूसरी ओर ज्ञानवापी मस्जिद मैनेजमेंट कमिटी ने सुप्रीम कोर्ट में हस्तक्षेप याचिका दायर कर कहा है कि याचिकाकर्ता द्वारा प्लेसेस ऑफ वर्शिप एक्ट को असंवैधानिक घोषित करने की मांग के परिणाम गंभीर और दूरगामी होंगे. याचिकाकर्ता ने यह भी कहा है कि वह इस तरह के कई मामलों में दाखिल सूट में पक्षकार है और एक हितधारक है. उनकी ओर से दाखिल याचिका में कहा गया है कि कई मुकदमे दायर किए गए हैं, जो 1991 अधिनियम की धारा 3 और 4 के तहत निषेध के बावजूद मस्जिद को हटाने का दावा करते है और उन तमाम मामलों में वह पक्षकार है.

क्या है प्लेसेस ऑफ वर्शिप एक्ट 1991

एक्ट की धारा -3 के मुताबिक किसी भी पूजा स्थल को किसी अन्य पूजा स्थल में परिवर्तित करने पर प्रतिबंध लगाता है. वहीं धारा-4 कहता है कि 15 अगस्त 1947 को पूजा स्थल का जो धार्मिक स्वरूप जैसा था, वैसा ही बना रहेगा. प्लेसेस ऑफ वर्शिप एक्ट 1991 पीवी नरसिम्हा राव की अगुवाई वाली कांग्रेस सरकार 1991 में लेकर आई थी. इस कानून के जरिए किसी भी धार्मिक स्थल की प्रकृति यानी वहां मस्जिद है मंदिर या फिर चर्च-गुरुद्वारा, यह निर्धारित करने को लेकर नियम बनाए गए हैं.

-भारत एक्सप्रेस



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