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सुप्रीम कोर्ट ने ओटीटी और सोशल मीडिया पर अश्लील कंटेंट पर रोक लगाने की याचिका पर सरकार से जवाब मांगा

सुप्रीम कोर्ट ने ओटीटी और सोशल मीडिया पर अश्लील कंटेंट पर रोक लगाने की मांग वाली याचिका पर केंद्र से जवाब मांगा, कहा – बच्चों के सामने अश्लील सामग्री का प्रभाव चिंताजनक है.

Supreme Court
Aarika Singh Edited by Aarika Singh

OTT Platforms: ओटीटी और सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म (OTT platforms) पर खुले तौर पर अश्लील कंटेंट की स्ट्रीमिंग पर रोक लगाने की मांग वाली याचिका पर सुप्रीम कोर्ट केंद्र सरकार सहित अन्य पक्षकारों को नोटिस जारी कर चार सप्ताह में जवाब मांगा है. जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ ने कहा कि आज समय में माता-पिता बच्चों को व्यस्त रखने के लिए मोबाइल दे देते है.

कोर्ट ने यह टिप्पणी तब की जब सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि मैं इस मामले को किसी भी प्रतिकूल तरीके से नहीं ले रहा हूं. मेरी चिंता यह है कि बच्चों के सामने यह सब है. कुछ नियमित कार्यक्रमों में भाषा आदि ऐसी होती है कि यह अश्लील ही नही विकृत होती है और दो आदमी एक साथ बैठकर इसे देख भी नहीं सकते. उनके पास एकमात्र मानदंड यह है कि यह 18 वर्ष से अधिक आयु के लोगों के लिए है.

याचिकाकर्ता की ओर से पेश वकील विष्णु शंकर जैन ने सरकार को इस मसले पर निर्देश जारी करने की मांग की. विष्णु ने कहा कि यह सब बिना किसी जांच के हो रहा है. मैंने पूरी सूची भी दी है कि सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर बिना किसी जांच के क्या दिखाया जा रहा है? दायर याचिका में ओटीटी प्लेटफॉर्म पर अश्लील कंटेंट के खुलेआम स्ट्रीमिंग पर प्रतिबंध लगाने के लिए नेशनल कंटेंट कंट्रोल ऑथोरिटी के गठन के लिए दिशा निर्देश तय करने की मांग की गई है.

OTT प्लेटफॉर्म भी कर रहे हैं कंटेंट स्ट्रीम

याचिका में दावा किया गया है कि सोशल मीडिया साइट्स पर ऐसे पेज या प्रोफाइल हैं जो बिना किसी फिल्टर के अश्लील सामग्री दिखा रहे हैं. जबकि विभिन्न ओटीटी प्लेटफॉर्म भी ऐसा कंटेंट स्ट्रीम कर रहे हैं, जिसमें बच्चों से.संबंधित अश्लील कंटेंट भी शामिल है. इसमें कहा गया है कि इस तरह का अश्लील कंटेंट युवाओं, बच्चों और लोगों के दिमाग पर गलत असर डालता है, जिससे अपराध में भी बढ़ोतरी होती है.

अगर इसपर कोई नियंत्रण नहीं किया गया तो इसके परिणाम और भी गंभीर हो सकते है. इसमें दावा किया गया कि याचिकाकर्ता ने सक्षम अधिकारियों को अभ्यावेदन या शिकायतें भेजकर कई कदम उठाए हैं. हालांकि इसका कोई प्रभावी परिणाम नहीं निकला है. याचिका में कहा गया है कि समय की मांग है कि राज्य सार्वजनिक नैतिकता की रक्षा करने, कमजोर आबादी की रक्षा करने के अपने संवैधानिक कर्तव्यों को निभाए.

याचिका में सुप्रीम कोर्ट के रिटायर्ड जज की अध्यक्षता में एक कमेटी गठित करने और क्षेत्र के प्रतिष्ठित विशेषज्ञों को शामिल करने का आग्रह किया गया है, जो केंद्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड की तर्ज पर ओटीटी और सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर.सामग्री के प्रकाशन या स्ट्रीमिंग की देखरेख और प्रमाणन करें, जब तक कि इसे विनियमित करने के लिए एक कानून नहीं बन जाता.

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-भारत एक्सप्रेस



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