
भूमि अधिग्रहण से जुड़े 2013 के केंद्रीय कानून में संशोधन को लेकर दायर याचिका पर सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता की ओर से पेश वकील प्रशांत भूषण ने कोर्ट को बताया कि सुप्रीम कोर्ट के नोटिस के बावजूद अभी तक राज्य सरकार ने जवाब दाखिल नही किया है. जिसके बाद कोर्ट ने सुनवाई को टाल दिया है. यह याचिका सामाजिक कार्यकर्ता मेधा पाटकर सहित अन्य की ओर से दायर की गई है.
भूमि अधिग्रहण, पुनर्वास और पुनस्थापना में उचित मुआवजा और पारदर्शिता अधिकार अधिनियम, 2013 में गुजरात, आन्ध्र प्रदेश, तेलंगाना, तमिलनाडु और झारखंड ने विरोधाभासी संशोधन किए है. दायर याचिका में कहा गया है कि इन राज्यों में किए गए संशोधनों से भू-स्वामियों और किसानों की जीविका के अधिकार पर विपरीत प्रभाव पड़ा है.
याचिका में कहा गया है कि राज्यों द्वारा किया गया संशोधन नागरिकों के संवैधानिक अधिकारों नक उल्लंघन भी है क्योंकि इसके जरिए सहमति के प्रावधान, सामाजिक प्रभाव का आकलन, भूमि अधिग्रहण में स्थानीय निकायों के प्रतिनिधियों की भागीदारी जैसे मुख्य पहलुओं को हटा दिया गया है. पिछली सुनवाई में भूषण ने कहा था कि भूमि अधिग्रहण में लोगों की सहमति सुनिश्चित करना कानून का मूल्य तत्व था, लेकिन इन राज्यों ने संशोधन के जरिये अहम पहलुओं को खत्म कर दिया है. जिसपर कोर्ट ने कहा था कि राज्य सरकारों को कानून में संशोधन का अधिकार है.
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-भारत एक्सप्रेस
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