

वक्फ बोर्ड संशोधन कानून को लेकर केंद्र सरकार भी अब सुप्रीम कोर्ट पहुच गई है. केंद्र सरकार की ओर से कैवीएट दायर की गई है. सरकार की ओर से दायर कैवीएट में कहा गया है कि वक्फ बोर्ड संशोधन कानून के खिलाफ दायर याचिकाओं पर सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार के बिना पक्ष सुने कोई एकतरफा आदेश पारित ना किया जाए. अब तक इस कानून के खिलाफ 15 याचिकाएं दायर की जा चुकी है. जिसमें इसे संविधान के खिलाफ और धार्मिक स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार का उल्लंघन बताते हुए चुनौती दी गई है.
कोर्ट में दाखिल याचिकाओं में मुख्य आधार यही है कि यह कानून मुसलमानों के संवैधानिक अधिकारों और धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार का उल्लंघन करता है. वक्फ उन संपत्तियों को संदर्भित करता है जिन्हें इस्लामी कानून के लिए समर्पित किया जाता है. इनका उपयोग मस्जिदों और कब्रिस्तानों के रखरखाव, शैक्षिक संस्थानों और स्वास्थ्य सुविधाओं की स्थापना, या गरीबों और विकलांगों को वित्तीय सहायता प्रदान करने के लिए किया जा सकता है.
इस्लाम अपनाने वाले दे सकते है अपनी संपत्ति वक्फ को
वक्फ अधिनियम 1995 को भारत में वक्फ संपत्तियों के प्रबंधन को विनियमित करने के लिए लागू किया गया था. याचिका में कहा गया है कि यह कानून संविधान के अनुच्छेद 14 (समानता का अधिकार), अनुच्छेद 24 (धर्म का पालन करने की स्वतंत्रता), अनुच्छेद 26 (धार्मिक मामलों के प्रबंधन की स्वतंत्रता), अनुच्छेद 29 (अल्पसंख्यक अधिकार) और अनुच्छेद 300 ए (संपत्ति का अधिकार) का उल्लंघन करता है. याचिका में यह भी कहा गया है कि जब हिंदू और सिख ट्रस्टों को स्व- नियमन की छूट प्राप्त है, तो केवल वक्फ संपत्तियों के मामलों में सरकारी हस्तक्षेप बढ़ाना असमान और अनुचित है.
जावेद ने इस संशोधन के उस प्रावधान पर भी आपत्ति जाहिर की है, जिसमें कहा गया है कि वक्फ संपत्ति केवल उसी व्यक्ति द्वारा दी जा सकती है, जो कम से कम पांच वर्षों से इस्लामिक प्रैक्टिस कर रहा हो. यह प्रावधान उन लोगों के साथ भेदभाव करता है, जिन्होंने हाल ही में इस्लाम अपनाया है और अपनी संपत्ति वक्फ को देना चाहते है.
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-भारत एक्सप्रेस
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