

जस्टिस विक्रम नाथ, जस्टिस संजय करोल और जस्टिस संदीप मेहता ने यह फैसला दिया है. पीठ ने अपने फैसले में कहा कि आपराधिक न्यायशास्त्र इसकी अनुमति देता है. कोर्ट ने यह भी कहा कि एक बार संज्ञेय अपराध के बारे में सूचना मिलने के बाद, पुलिस अधिकारी कानून के तहत आगे बढ़ने के लिए बाध्य है.
मलयालम फिल्म इंडस्ट्री में यौन शोषण की जांच
केरल हाई कोर्ट ने हेमा कमेटी की रिपोर्ट पढ़ने के बाद कहा था कि समिति द्वारा दर्ज किए गए कई गवाहों के बयान संज्ञेय अपराधों के होने का खुलासा करते है. इसलिए समिति के समक्ष दिए गए बयानों को धारा 173 के तहत सूचना के रूप में माना जाएगा. भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 (BNSS) और एसआईटी की धारा173 (3) बीएनएसएस के अधीन आवश्यक कार्रवाई करेगी. कोर्ट ने एसआईटी को यह सुनिश्चित करने के लिए सभी सावधानी बरतने का निर्देश दिया कि पीड़ित और गवाहों बक नाम उजागर या सार्वजनिक न हो. यह देखते हुए कि एसआईटी ने अपनी कार्रवाई रिपोर्ट में कहा है कि समिति के सामने बयान देने वाले गवाहों में से कोई भी पुलिस को सहयोग करने और बयान देने के लिए तैयार नही है.
हेमा कमेटी की रिपोर्ट में कहा गया है कि कैसे दशकों से महिला कलाकारों को काम के बदले यौन शोषण, धमकियां और भेदभाव का सामना करना पड़ रहा है. रिपोर्ट में इस बात पर भी जोर डाला गया है कि इंडस्ट्री में कुछ ताकतवर लोग माफिया की तरह काम करते हैं और विरोध करने वाली महिलाओं को बैन तक कर देते है. नवंबर 2017 में जस्टिस हेमा, अभिनेत्री सारदा और नौकरशाह केबी वलसाला कुमारी वाली हेमा कमेटी ने जांच शुरू की थी. उन्होंने एक बयान जारी कर महिलाओं को आगे आने को कहा और वादा किया कि गोपनीयता बनाये रखी जायेगी. जिसके बाद 80 से ज्यादा महिलाओं ने कमेटी के सामने गवाही दी और मलयालम इंडस्ट्री के माहौल के बारे में बताया था.
-भारत एक्सप्रेस
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