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छोटी उम्र में स्‍क्रीन पर ज्‍यादा समय बिताने से समय से पहले आ सकती हैं Puberty, रिसर्च में हुए ये बड़े खुलासे

Early Puberty: प्यूबर्टी एक ऐसी प्रोसेस है जिसमें लड़के और लड़कियों के शरीर में बदलाव आने लगते हैं, उनके प्राइवेट पार्ट्स का डेवलपमेंट होने लगता है.

Early Puberty:

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Early Puberty: हम देख रहे हैं आजकल के बच्चे जल्दी बड़े हो रहे हैं. कम उम्र में लड़के और लड़कियों का शारीरिक विकास हो रहा है, जिसे मेडिकल की भाषा मेंअर्ली प्यूबर्टी (Puberty) कहा जाता है. हर माता-पिता को अपने बच्‍चे के शुरुआती यौवन के संकेतों पर ध्यान देना चाहिए. पिछले कुछ समय में बच्‍चों में समय से पहले प्‍यूबर्टी के मामले बढ़े हैं. डॉक्टर बताते हैं कि अर्ली प्यूबर्टी के कई कारण बच्चों को कई समस्याएं होती हैं.ऐसे में आज हम आपको बताते हैं कि आजकल बच्चों में अर्ली प्यूबर्टी क्यों होती है और इससे उनकी सेहत को क्या नुकसान होता है.

क्या होता है प्यूबर्टी?

प्यूबर्टी एक ऐसी प्रोसेस है जिसमें लड़के और लड़कियों के शरीर में बदलाव आने लगते हैं, उनके प्राइवेट पार्ट्स का डेवलपमेंट होने लगता है. लड़कियों में प्यूबर्टी की एज 8 से 13 साल और लड़कों में 9 से 14 साल के बीच में शुरू होती है. लड़कियों में आजकल समय से पहले प्यूबर्टी आने के मामले बढ़ रहे हैं, इसमें बच्चों में शारीरिक और भावनात्मक बदलाव होता है. बच्चियां अपनी उम्र से ज्यादा बड़ी दिखने लगती हैं और शरीर में बदलाव के कारण तनाव भी बढ़ने लगता है.

इस तरह से पहचानें प्यूबर्टी

पीरियड्स शुरू होने को लोग कई बार प्यूबर्टी समझते हैं. लेकिन ब्रेस्ट और प्यूबिक हेयर्स (प्राइवेट पार्ट के पास हेयर) का विकास प्यूबर्टी का पहला संकेत होता है. आर्मपिट से आने वाली स्मेल, आर्म्स के बाल, मुंहासे और यहां तक कि मूडीनेस प्यूबर्टी के मेडिकल लक्षण नहीं हैं लेकिन इन्हें इसके साथ जोड़ा जाता है. इनसे आप इसे पहचान सकते हैं.

बच्चियों को कम उम्र में क्यों हो रही प्यूबर्टी

दरअसल, चूहों पर किए गए एक नए रिसर्च से यह बात सामने आई है कि जो बच्चे छोटी उम्र में स्‍क्रीन पर ज्यादा समय बिताते हैं, उनमें समय से पहले वयस्‍क होने की संभावना बनी रहती है क्योंकि स्मार्टफोन या टैबलेट से निकलने वाली नीली रोशनी सेहत के लिए हानिकारक हो होती है. रिसर्च में यह भी बताया कि स्मार्टफोन या टैबलेट से निकलने वाली नीली रोशनी का संबंध तेजी से हड्डी विकास और हड्डी की उम्र में वृद्धि से जुड़ा हुआ है. आपको बता दें लिवरपूल में 62वीं वार्षिक European Society for Paediatric Endocrinology Meeting में प्रस्तुत यह रिसर्च हड्डियों की वृद्धि और यौवन विकास के बीच संबंध का पता लगाने वाला पहला रिसर्च है.

नीली रोशनी के लंबे समय तक संपर्क में रहने से शारीरिक विकास

तुर्की के गाजी विश्वविद्यालय के प्रमुख शोधकर्ता डॉ. आयलिन किलिंक उगुरलू ने कहा, “यह पहला अध्ययन है जो दर्शाता है कि नीली रोशनी शारीरिक वृद्धि और विकास को कैसे प्रभावित कर सकती है, जिससे बच्चों के विकास पर आधुनिक स्क्रीन के प्रभाव पर आगे और शोध करने की आवश्यकता है.” उगुरलू ने कहा, ”चूंकि यह अध्ययन चूहों पर किया गया था, इसलिए हम यह सुनिश्चित नहीं कर सकते कि ये निष्कर्ष बच्चों पर भी लागू होंगे, लेकिन हमारे आंकड़े बताते हैं कि नीली रोशनी के लंबे समय तक संपर्क में रहने से शारीरिक विकास और ग्रोथ प्लेट की परिपक्वता दोनों में तेजी आती है, जिससे समय से पहले यौवन आ जाता है.”

लड़कियों और लड़कों दोनों में समय से पहले यौवन में वृद्धि

जब बच्चे बड़े होते हैं तो उनमें फीमर जैसी लंबी हड्डियां विकसित होती हैं. जहां लड़कियां 14 से 16 वर्ष की आयु के बीच अपनी अधिकतम ऊंचाई तक पहुंचती हैं, वहीं लड़के 16 से 18 वर्ष की आयु के बीच अपनी वृद्धि पूरी कर लेते हैं. हालांकि हाल के अध्ययनों ने लड़कियों और लड़कों दोनों में समय से पहले यौवन में वृद्धि की ओर संकेत किया है. अध्ययनों से पता चलता है कि बच्चे पहले तो तेजी से बढ़ सकते हैं, लेकिन अक्सर सामान्य से पहले बढ़ना बंद कर देते हैं. उगुरलू ने कहा कि एक कारण नीली रोशनी उत्सर्जित करने वाले उपकरणों का बढ़ता उपयोग हो सकता है.

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इस तरह से रिसर्च में हुआ बड़ा खुलासा

यह अध्ययन 21 दिन की उम्र वाले 18 नर और 18 मादा चूहों पर किया गया था. इन्हें छह के तीन समूहों में विभाजित किया गया और यौवन के पहले लक्षणों तक या तो छह घंटे सामान्य प्रकाश चक्र या 12 घंटे नीली रोशनी के संपर्क में रखा गया. टीम ने चूहों की लम्बाई और फीमर को मापा और पाया कि नीली रोशनी के संपर्क में आने वाले चूहों की हड्डियों में वृद्धि तेजी से हुई है. इसका मतलब यह है कि उनकी हड्डियां बहुत जल्दी परिपक्व हो गई, जिसके कारण वयस्कों के रूप में उनकी लंबाई औसत से कम हो सकती है. उगुरलू ने इस संबंध में और अधिक अध्ययन की आवश्यकता पर बल दिया.

-भारत एक्सप्रेस 



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