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Siyasi Kissa: जब किराया न चुका पाने के कारण मकान मालिक ने पूर्व प्रधानमंत्री का सामान घर के बाहर फिंकवा दिया था

उस जमाने में तमाम ऐसे नेता रहे हैं, जिनके राजनीति में आने की बाद उनकी संपत्ति नहीं बढ़ी, न ही उन्होंने अपने परिवार के सदस्यों के लिए राजनीति तक पहुंच को आसान बनाया. यही नहीं तमाम ऐसे भी रहे, जिनके पास अपना कोई घर नहीं रहा, बल्कि वे ताउम्र किराये के मकानों में गुजर-बसर करते रहे.

गुलजारी लाल नंदा.

राजनीति में गिनती के ऐसे नेता हैं, जो अपनी सादगी और ईमानदारी के लिए विख्यात रहे हैं. ये दोनों गुण राजनीति में कभी एक स्थापित परंपरा हुआ करती थी, हालांकि समय के साथ हर क्षेत्र के लोगों में इन गुणों इसका अभाव देखने को मिल रहा है. बहरहाल, हम आपको एक ऐसे राजनेता से रूबरू कराने जा रहे हैं, जिनकी चर्चा आज भी उनकी सादगी और ईमानदारी के लिए की जाती है.

उस जमाने में तमाम ऐसे नेता रहे हैं, जिनके राजनीति में आने की बाद उनकी संपत्ति नहीं बढ़ी, न ही उन्होंने अपने परिवार के सदस्यों के लिए राजनीति तक पहुंच को आसान बनाया. यही नहीं तमाम ऐसे भी रहे, जिनके पास अपना कोई घर नहीं रहा, बल्कि वे ताउम्र किराये के मकानों में गुजर-बसर करते रहे. ऐसे ही एक राजनेता का नाम गुलजारी लाल नंदा था और एक जमाने में ये हमारे देश के प्रधानमंत्री रहे थे.

2 बार सिर्फ 13 दिन के लिए प्रधानमंत्री रहे

गुलजारी लाल नंदा देश के पहले कार्यवाहक प्रधानमंत्री रहे थे और देश के प्रधानमंत्रियों की सूची में उनका स्थान दूसरे नंबर पर आता है. पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू के निधन के बाद वह इस पद पर आसीन हुए थे. इतना ही नहीं नंदा देश के सबसे कम समय तक रहने वाले प्रधानमंत्री भी रहे हैं. वह दो बार (27 मई 1964 से 9 जून 1964 तक और 11 जनवरी 1966 से 24 जनवरी 1966) प्रधानमंत्री बने, लेकिन उनका दोनों कार्यकाल में मात्र 13 का रहा.


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गुजरात की साबरकांठा लोकसभा सीट का प्रतिनिधित्व करने वाले नंदा ने देश में अचानक आए संकट के बाद प्रधानमंत्री पद संभाला था. 27 मई 1964 को पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के निधन के बाद उन्होंने पहली बार प्रधानमंत्री के रूप में शपथ ली थी. वह नेहरू मंत्रिमंडल में श्रम और रोजगार मंत्री थे. पंडित नेहरू के निधन के समय वह गृह मंत्री पद पर थे. मंत्रिमंडल में दूसरे नंबर के नेता होने के नाते वह प्रधानमंत्री पद के लिए स्वाभाविक पसंद थे. हालांकि, उन्हें सिर्फ 13 दिन यानी 9 जून 1964 तक ही यह पद संभालने का सौभाग्य मिला, क्योंकि इसी दिन लाल बहादुर शास्त्री ने प्रधानमंत्री के रूप में पदभार संभाल लिया था.

फिर लगभग डेढ़ साल बाद जब 11 जनवरी 1966 को ताशकंद (उज्बेकिस्तान) में लाल बहादुर शास्त्री का अचानक निधन हो गया तो नंदा को दोबारा प्रधानमंत्री पद की शपथ दिलाई गई, लेकिन उनका यह कार्यकाल भी सिर्फ 13 दिन का ही रहा, क्योंकि 24 जनवरी 1966 को इंदिरा गांधी नई प्रधानमंत्री बन गई थीं. दोनों बार सत्तारूढ़ कांग्रेस के संसदीय दल द्वारा अपना नया नेता चुने जाने के कारण नंदा का प्रधानमंत्री के रूप में कार्यकाल समाप्त हुआ था.

जब किराये के मकान में रहे थे

बताया जाता है कि गुलजारी लाल नंदा जीवन भर किराये के मकान में रहे थे. गांधी के अनन्य समर्थकों में शुमार नंदा आजादी की लड़ाई में भी शामिल रहे थे. तब उन्हें स्वतंत्रता सेनानी के रूप में 500 रुपये की पेंशन दी जाती थी. हालांकि उन्होंने इसे लेने से इनकार कर दिया था, उनका तर्क था कि वह पेंशन के लिए स्वतंत्रता आंदोलन में शामिल नहीं हुए थे. बाद में कुछ लोगों ने जब उन्हें समझाया वह किराये के मकान में रहते हैं तो कम से कम किराया देने के लिए इसे स्वीकार कर लें, तब जाकर वह पेंशन लेने के लिए मान गए थे.


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इतना ही नहीं एक बार वह किसी वजह से किराया नहीं दे पाए थे तो मकान मालिक ने उनका सामान घर के बाहर फिंकवा दिया था. उस समय वह प्रधानमंत्री नहीं थे और 94 साल के हो गए थे. उन्होंने मकान मालिक से अनुरोध किया कि उन्हें किराया देने के लिए कुछ समय दिया जाए. पड़ोसियों के कहने पर मकान मालिक ने अनिच्छा से उन्हें किराया चुकाने के लिए कुछ समय दे दिया था.

जब यह घटना हुई, तब एक पत्रकार वहां से गुजर रहे थे, जिन्होंने इस मामले को अपने अखबार में जगह दी. यह खबर आने के बाद सरकारी अमला पहुंचा और तब मकान मालिक को एहसास हुआ कि उसने बड़ी भूल कर दी है. इसके अलावा गुलजारी लाल नंदा बैंक में भी सिर्फ 2,475 रुपये छोड़ गए थे. ऐसा कहा जाता है कि उनके निधन के समय उनके पास कोई निजी संपत्ति नहीं थी. उन्होंने कभी भी अपने परिवार को अपने आधिकारिक वाहन का उपयोग करने की अनुमति नहीं दी थी.

विधायक से लेकर सांसद तक का सफर

राजनीति में गुलजारी लाल नंदा का अनुभव काफी लंबा था. इस दौरान वह विभिन्न पदों पर रहे थे. उन्होंने विधायक के रूप में शुरुआत की थी और फिर सांसद भी रहे थे. पीएमओ की वेबसाइट पर उपलब्ध जानकारी के अनुसार, वह 1937 में बॉम्बे विधानसभा के लिए चुने गए और 1937 से 1939 तक बॉम्बे सरकार के संसदीय सचिव (श्रम और उत्पाद शुल्क) रहे थे. जब देश आजाद हुआ, तब भारत सरकार ने तत्कालीन प्रधानमंत्री नेहरू के कार्यकाल में योजना आयोग की स्थापना की. मार्च 1950 में नंदा ने इसके उपाध्यक्ष के रूप में भी काम किया था.

सितंबर 1951 में उन्हें केंद्र सरकार में योजना मंत्री नियुक्त किया गया. इसके अलावा उन्हें सिंचाई और बिजली विभाग का भी प्रभार दिया गया. 1952 के आम चुनाव में वह बंबई से लोकसभा के लिए चुने गए और उन्हें सिंचाई और बिजली योजना मंत्री फिर से नियुक्त किया गया. नंदा ने पहली, दूसरी और तीसरी लोकसभा में साबरकांठा निर्वाचन क्षेत्र का प्रतिनिधित्व किया था. वह 2 बार हरियाणा के कैथल से सांसद रहे थे.

इलाहाबाद विश्वविद्यालय से पढ़ाई

4 जुलाई 1898 को सियालकोट (पंजाब) में जन्मे गुलजारी लाल नंदा की शिक्षा लाहौर, आगरा और इलाहाबाद में हुई थी. उन्होंने इलाहाबाद विश्वविद्यालय (1920-1921) में श्रम समस्याओं पर शोध किया था और 1921 में नेशनल कॉलेज (बॉम्बे) में अर्थशास्त्र के प्रोफेसर बन गए.

1921 में ही उनकी मुलाकात महात्मा गांधी से हुई, जिनके कहने पर वे गुजरात में बस गए थे. उसी वर्ष वह असहयोग आंदोलन में शामिल हो गए थे. 1922 में वह अहमदाबाद टेक्सटाइल लेबर एसोसिएशन के सचिव बने, जिसमें उन्होंने 1946 तक काम किया. उन्हें 1932 में और फिर 1942 से 44 तक सत्याग्रह के लिए जेल में रखा गया था. उन्हें 1997 में भारत के सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार ‘भारत रत्न’ से सम्मानित किया गया था. 15 जनवरी 1998 को उनका निधन हो गया था.

-भारत एक्सप्रेस



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