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कांवड़ यात्रा
Kanwar Yatra: हिंदू धर्म में सावन मास को सबसे पवित्र मास में से एक माना जाता है. यह पूरा माह भगवान शिव को समर्पित माना जाता है. कहा जाता है कि जो व्यक्ति सावन के सोमवार का व्रत करता है भगवान भोलेनाथ उसकी सभी मुरादें पूरी करते हैं. वहीं भोलेनाथ की कृपा से उसके वैवाहिक जीवन में खुशहाली बनी रहती है. पवित्र श्रावण मास की शुरुआत कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा तिथि से होती है. वहीं सावन की शुरुआत होते ही शिव भक्त कांवड़ उठा चल पड़ते हैं भोलेनाथ को जल चढ़ाने. लेकिन क्या आप जानते हैं कि इस पवित्र यात्रा की शुरुआत कब हुई थी ?
त्रेतायुग से कांवड़ यात्रा
कांवड़ यात्रा को लेकर कई सारी मान्यताएं प्रचलित हैं जिनमें एक मान्यता के अनुसार संपूर्ण जगत में सबसे पहली कांवड़ यात्रा त्रेतायुग में श्रवण कुमार ने की थी. अपने माता-पिता की इच्छा की पूर्ति के लिए श्रवण कुमार कांवड़ लाए थे. जिसमें अपने माता-पिता को बिठाकर वे पदयात्रा करते हुए हरिद्वार गंगा स्नान के लिए ले गए. वापसी में अपने साथ में गंगाजल भी लेकर आए. कहा जाता है कि इसी गंगाजल से उन्होंने अपने माता-पिता के हाथों शिवलिंग पर अभिषेक करवाया. उसके बाद से ही कांवड़ यात्रा की शुरुआत हुई जिसमें आज लाखों नहीं बल्कि करोड़ों की संख्या में शिव भक्त शामिल होते हैं.
सावन में ही क्यों कांवड़ यात्रा?
सावन के शुरू होते ही कांवड़ियों की भीड़ शिवालयों में बढ़ने लगती है. बम-बम भोले और बोल बम के जयकारों से पूरा वातावरण भक्तिमय हो जाता है. दूर दराज गंगा जी के पवित्र जल को कांवड़ भरकर शिवभक्त शिवलिंग का जलाभिषेक करते हैं. इसके बाद अपनी मनोकामना पूर्ति की कामना करते हैं. सनातन धर्म में कांवड़ यात्रा का विशेष महत्व बताया गया है. कांवड़ उठाने वाले इंसान की हर मनोकामना भगवान शिव शीघ्र पूरी कर देते हैं.
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सावन में माह में कांवड़ यात्रा को लेकर धार्मिक मान्यता है कि सावन में ही भगवान शिव ने विषपान किया था. जिसके बाद विष की अग्नि को शांत करने के लिए भक्त भगवान को जल अर्पित करते हैं. कहते हैं कि सावन में भगवान शंकर का जलाभिषेक करने से साधक को भगवान शंकर की कृपा अति शीघ्र प्राप्त होती है.