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मेरीलैंड की फेडरल जज ने ट्रंप के इस आदेश पर लगाई रोक, शपथ लेने के तुरंत बाद राष्ट्रपति ने जारी किया था आदेश

ट्रंप ने 20 जनवरी को राष्ट्रपति का पदभार ग्रहण करने के कुछ घंटों बाद ही जन्मसिद्ध नागरिकता समाप्त करने वाले आदेश पर हस्ताक्षर किए थे.

Donald Trump

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप.

मेरीलैंड की एक फेडरल जज ने अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के जन्मसिद्ध नागरिकता समाप्त करने वाले कार्यकारी आदेश पर अनिश्चितकाल के लिए रोक लगा दी है. इसका उद्देश्य अवैध अप्रवासियों और अस्थायी वीजा वाले विदेशी विजिटर्स की जन्मसिद्ध नागरिकता को समाप्त करना था.

कोर्ट ने जारी किया आदेश

मैरीलैंड के यूनाइटेड स्टेट्स डिस्ट्रिक्ट कोर्ट की जज डेबोरा एल बोर्डमैन ने बुधवार को सुनवाई के बाद ट्रंप के आदेश को रोकने के लिए नागरिक अधिकार समूहों द्वारा दायर याचिका पर एक अस्थायी निरोधक आदेश जारी किया है. समाचार एजेंसी सिन्हुआ की रिपोर्ट के अनुसार, यह आदेश राष्ट्रीय स्तर पर लागू होता है.

द वॉशिंगटन पोस्ट के अनुसार, मैरीलैंड का मुकदमा ट्रंप के आदेश के खिलाफ कम से कम छह अलग-अलग संघीय मामलों में से एक है, जिसे कुल 22 डेमोक्रेटिक नेतृत्व वाले राज्यों और आधा दर्जन से अधिक नागरिक अधिकार समूहों द्वारा दायर किया गया.

20 जनवरी को आदेश पर किया हस्ताक्षर

ट्रंप ने 20 जनवरी को राष्ट्रपति का पदभार ग्रहण करने के कुछ घंटों बाद ही जन्मसिद्ध नागरिकता समाप्त करने वाले आदेश पर हस्ताक्षर किए थे. उन्होंने फेडरल एजेंसियों को 19 फरवरी के बाद पैदा हुए बच्चों (अगर माता-पिता में से कोई भी अमेरिकी नागरिक या स्थायी निवासी नहीं है) के लिए नागरिकता की मान्यता रोकने का निर्देश दिया था.20 से अधिक राज्यों और नागरिक अधिकार समूहों ने इस आदेश को चुनौती देते हुए मुकदमे दायर किए थे. उन्होंने इस फैसले को असंवैधानिक बताया था.

इससे पहले 23 जनवरी को सीनियर अमेरिकी जिला जज जॉन कफनौर ने अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के जन्मसिद्ध नागरिकता को सीमित करने वाले कार्यकारी आदेश पर रोक लगा दी थी. ट्रंप के कार्यकारी आदेश में तर्क दिया गया कि 14वें संशोधन ने हमेशा उन लोगों को जन्मसिद्ध नागरिकता से बाहर रखा है, जो संयुक्त राज्य अमेरिका में पैदा हुए थे, लेकिन उसके अधिकार क्षेत्र के अधीन नहीं थे.

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ट्रंप ने आदेश पर जब से हस्ताक्षर किए हैं, तब से इसे चुनौती देते हुए कम से कम छह मुकदमे दायर किए गए हैं, जिनमें से अधिकांश नागरिक अधिकार समूहों और 22 राज्यों के डेमोक्रेटिक अटॉर्नी जनरल द्वारा दायर किए गए हैं.

-भारत एक्सप्रेस



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