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देश की 22 क्षेत्रीय भाषाओं में तैयार की जाएंगी पाठ्य-पुस्तकें, शिक्षा मंत्रालय करेगा ये महत्‍वपूर्ण बदलाव

देश में हजारों पाठ्यपुस्तकें 22 क्षेत्रीय भाषाओं में तैयार की जाएंगी. प्रमुख भाषाओं में पंजाबी, हिन्दी, संस्कृत, बंगाली, उर्दू, गुजराती, कन्नड़, मलयालम, मराठी, तमिल, तेलुगु और ओडिया शामिल हैं, अब अन्‍य भाषाओं को भी जगह मिलेगी.

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प्रतीकात्मक तस्वीर—भारतीय भाषाएं।

Education Ministry News: विद्यालय की पाठ्य-पुस्तकों को अब 22 क्षेत्रीय भाषाओं में तैयार किया जाएगा. केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय पुस्तकों में कई बदलाव कराने जा रहा है. इसके लिए यूजीसी के नेतृत्व में भारतीय भाषा समिति के सहयोग से ‘अस्मिता’ की शुरुआत की गई है.

केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय के मुताबिक, ‘अस्मिता’ का उद्देश्य अगले पांच वर्षों में 22 अनुसूचित भाषाओं में 22000 पुस्तकें तैयार करना है. इसके साथ ही बहुभाषा शब्दकोष का एक विशाल भंडार बनाने की एक व्यापक पहल भी की गई है. वहीं, तत्काल अनुवाद के उपाय, भारतीय भाषा में तत्काल अनुवाद क्षमताओं को बढ़ाने के लिए एक तकनीकी ढांचे के निर्माण की सुविधा भी प्रदान की जा रही है. केंद्रीय शिक्षा सचिव के. संजय मूर्ति ने मंगलवार को इन तीन महत्वपूर्ण परियोजनाओं की शुरुआत की.

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उपरोक्त तीन महत्वपूर्ण परियोजनाएं अस्मिता (अनुवाद और अकादमिक लेखन के माध्यम से भारतीय भाषाओं में अध्ययन सामग्री का संवर्धन), बहुभाषा शब्दकोष और तत्काल अनुवाद के उपाय हैं. केंद्रीय शिक्षा सचिव के मुताबिक इन सभी परियोजनाओं को आकार देने में प्रमुख भूमिका प्रौद्योगिकी की होगी, और एनईटीएफ और बीबीएस की इसमें बहुत बड़ी भूमिका होगी. मंगलवार को शिक्षा मंत्रालय ने एक महत्वपूर्ण कार्यशाला का आयोजन किया. इसमें देश भर से 150 से अधिक कुलपतियों ने भाग लिया.

हिन्दी, संस्कृत, बंगाली, उर्दू, गुजराती भाषाएं शामिल

कुलपतियों को 12 मंथन सत्रों में बांटा गया था, इनमें से प्रत्येक 12 क्षेत्रीय भाषाओं में पाठ्य पुस्तकों की योजना बनाने और विकसित करने के लिए समर्पित था. प्रारंभिक फोकस भाषाओं में पंजाबी, हिन्दी, संस्कृत, बंगाली, उर्दू, गुजराती, कन्नड़, मलयालम, मराठी, तमिल, तेलुगु और ओडिया शामिल थीं. समूहों की अध्यक्षता नोडल विश्वविद्यालयों के संबंधित कुलपतियों द्वारा की गई और उनके विचार-विमर्श से बहुमूल्य परिणाम सामने आए. चर्चाओं से मुख्य निष्कर्ष भारतीय भाषा में नई पाठ्य पुस्तकों के निर्माण को परिभाषित करना, पुस्तकों के लिए 22 भारतीय भाषाओं में मानक शब्दावली स्थापित करना और वर्तमान पाठ्यपुस्तकों के लिए संभावित सुधारों की पहचान करना, घटकों में से एक के रूप में भारतीय ज्ञान प्रणाली (आईकेएस) पर जोर देना, व्यावहारिक और सैद्धांतिक ज्ञान को जोड़ना शामिल था.

Dr Sukanta Majumdar

 

शिक्षा राज्य मंत्री ने कराया कार्यशाला का आयोजन

शिक्षा राज्य मंत्री डॉ. सुकांत मजूमदार ने नई दिल्ली में उच्च शिक्षा के लिए भारतीय भाषा में पाठ्यपुस्तकों के लेखन पर कुलपतियों के लिए इस एक दिवसीय कार्यशाला का उद्घाटन किया. कार्यशाला का आयोजन विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) और भारतीय भाषा समिति (बीबीएस) द्वारा संयुक्त रूप से किया गया था. इस अवसर पर शिक्षा मंत्रालय के उच्च शिक्षा विभाग के सचिव के. संजय मूर्ति, भारतीय भाषा समिति के अध्यक्ष प्रो. चामू कृष्ण शास्त्री, विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के अध्यक्ष प्रो. एम. जगदीश कुमार, 150 से अधिक विश्वविद्यालयों के कुलपति, प्रख्यात शिक्षाविद् और अन्य गणमान्य व्यक्ति भी उपस्थित थे.

भाषाएं पीढ़ियों से चली आ रही बुद्धिमत्ता का प्रमाण

सुकांत मजूमदार ने विभिन्न उच्च शिक्षा पाठ्यक्रमों के लिए भारतीय भाषाओं में अध्ययन सामग्री तैयार करने के महत्व पर प्रकाश डाला. उन्होंने कहा कि शिक्षा प्रणाली को देश की विशाल भाषायी विविधता को प्रतिबिंबित करना चाहिए और यह सुनिश्चित करना चाहिए कि छात्रों को उनकी मातृभाषा में ज्ञान प्राप्त हो. डॉ. मजूमदार ने कहा कि भारतीय भाषाएं राष्ट्र के प्राचीन इतिहास और पीढ़ियों से चली आ रही बुद्धिमत्ता का प्रमाण हैं. उन्होंने कहा कि युवा पीढ़ियों का पोषण किया जाना चाहिए और समृद्ध सांस्कृतिक और भाषाई विरासत में उनके विश्वास को मजबूत किया जाना चाहिए.

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– भारत एक्‍सप्रेस



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