(फाइल फोटो: IANS)
असम के सोनापुर में बुलडोजर कार्रवाई को लेकर दायर अवमानना याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने संबंधित प्राधिकरण को नोटिस जारी कर तीन सप्ताह में जवाब मांगा है. साथ ही अदालत ने मामले में यथास्थिति बरकरार रखने का आदेश दिया है.
जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस केवी विश्वनाथन की पीठ ने 48 निवासियों की ओर से दायर अवमानना याचिका पर कोर्ट ने यह आदेश दिया है. याचिका में आरोप लगाया गया है कि अधिकारियों ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश का पालन नहीं किया है.
संविधान के अनुच्छेद 14, 15 और 21 का उल्लंघन
याचिकाकर्ताओं ने याचिका में यह भी कहा है कि लोगों को नोटिस जारी नहीं किया गया और न ही लोगों को सुनवाई का मौका दिया गया. यह संविधान के अनुच्छेद 14, 15 और 21 का उल्लंघन है.
बीते 17 सितंबर को कोर्ट ने जमीयत उलेमा-ए-हिंद की ओर से ही दायर याचिका पर पूरे देश में बुलडोजर की कार्रवाई पर रोक लगा दिया था. मामले की सुनवाई के दौरान बुलडोजर की कार्रवाई के महिमामंडन पर कोर्ट ने सवाल खड़े किए थे. अदालत ने कहा था कि यह रुकना चाहिए. कोर्ट ने कहा था कि वह बुलडोजर की कार्रवाई को लेकर दिशा निर्देश जारी करेगा. हालांकि कोर्ट का ये आदेश पब्लिक रोड, गली, वाटर बॉडी, फुटपाथ, रेलवे लाइन, आदि पर किए गए अवैध कब्जे पर लागू नहीं होगा.
समुदाय विशेष के खिलाफ कार्रवाई की बात गलत
मामले की सुनवाई के दौरान सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने आपत्ति जाहिर करते हुए कहा था कि यह कहना कि बुलडोजर कार्रवाई एक ही समुदाय के खिलाफ की जा रही है, यह गलत है. मध्य प्रदेश में 70 दुकानों को तोड़ा गया, जिसमें 50 दुकानें हिंदुओं की है.
सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि सिर्फ आरोपी होने के आधार पर किसी के घर को गिराना उचित नहीं है. सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने सुप्रीम कोर्ट द्वारा उठाए गए सवालों पर सहमति जताई थी और कहा था कि अपराध में दोषी साबित होने पर भी घर नहीं गिराया जा सकता.
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एसजी मेहता ने कहा था कि जिनके खिलाफ कार्रवाई की गई है, वे अवैध कब्जा या निर्माण के कारण निशाने पर हैं, न कि अपराध के आरोपों के चलते. प्रशासन की ओर से की गई कार्रवाई म्युनिसिपल कानून के अनुसार ही थी. उन्होंने कोर्ट को बताया था कि अवैध कब्जे के मामलों में म्युनिसिपल संस्थाओं द्वारा नोटिस दिए जाने के बाद ही आगे की कार्रवाई की गई.
-भारत एक्सप्रेस
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