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भारत के इतिहास में पहली बार ऐसा आदेश दिया कि अंडमान निकोबार के प्रशासनिक हलके में हड़कंप मच गया. दरअसल गुरुवार को उच्च न्यायालय ने अवमानना के एक मामले में अंडमान निकोबार के मुख्य सचिव को निलंबित करने का आदेश दे दिया. साथ ही उप राज्यपाल पर भी पांच लाख रुपए जुर्माना लगा दिया. हालांकि शुक्रवार को सर्वोच्च न्यायालय ने कलकत्ता हाई कोर्ट की पोर्ट ब्लेयर सर्किट बेंच द्वारा पारित आदेश पर रोक लगा दी. चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ के समक्ष तत्काल आदेश की मांग करते हुए भारत के अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमण ने मामले का उल्लेख किया था.
शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट में मामले की सुनवाई करते हुए सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा, “इसके लिए आपने जज को बहुत परेशान किया होगा.” सीजेआई ने कहा कि मुख्य सचिव के निलंबन का आदेश और एलजी पर 5 लाख रुपये का जुर्माना “थोड़ा ज्यादा” है. अटॉर्नी जनरल ने पीठ कि यह आदेश दैनिक वेतन भोगी कर्मचारियों के नियमितीकरण से संबंधित है. जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा भी इस खंडपीठ में शामिल थे. उन्होंने याचिका पर नोटिस जारी किया और मामले की सुनवाई के लिए 11 अगस्त की तारीख दे दी.
अंडमान सार्वजनिक निर्माण विभाग मजदूर संघ ने कलकत्ता उच्च न्यायालय के एक आदेश के अनुसार दैनिक दर वाले मजदूरों को डीए लाभ के साथ वेतन का 1/30वां अनुदान देने की मांग की थी. अंडमान सार्वजनिक निर्माण विभाग मजदूर संघ ने अंडमान और निकोबार प्रशासन पर आरोप लगाया था कि अंडमान प्रशासन ने अदालत के उस आदेशों का पालन नहीं किया, जिसमे दैनिक डेली-रेटेड मजदूर द्वारा हस्ताक्षरित “उपक्रम” को वापस लेने के संबंध में निर्देश दिए गए थे. इस दौरान दैनिक डेली-रेटेड मजदूरों के स्वीकृत और गैर-स्वीकृत पदों के बीच अंतर को भी हटाया जाना था.
अंडमान प्रशासन ने उच्च न्यायालय के इस आदेश का पालन नहीं किया. जिसके खिलाफ दायर अवमानना याचिका पर सुनवाई के दौरान पोर्ट ब्लेयर स्थित कलकत्ता उच्च न्यायालय की सर्किट बेंच के दो न्यायाधीशों राजशेखर मंथा और विभास रंजन डे की पीठ ने गुरुवार को सुनवाई की. उन्होंने उप राज्यपाल एडमिरल डीके जोशी को वर्चुअल मोड में उपस्थित होने और मुख सचिव केशव चंद्रा को व्यक्तिगत रूप से अदालत में उपस्थित होकर यह बताने के लिए कहा कि अदालत की अवमानना के लिए उन्हें जेल क्यों नहीं भेजा जाना चाहिए.
इस मामले में मुख्य अभियंता, एपीडब्ल्यूडी कार्यालय में कार्यरत एस तेज बहादुर ने अदालत के आदेश के अनुपालन का एक हलफनामा पेश किया. मगर उप राज्यपाल और मुख्य सचिव ने कोई हलफनामा दायर करने की जहमत नहीं उठाई. जिससे नाराज पीठ ने कहा कि उनका यह आचरण प्रथम दृष्टया अपमानजनक है और इसने संविधान के अनुच्छेद 215 के तहत इस न्यायालय की एक डिवीजन बेंच के अवमानना क्षेत्राधिकार को मजाक बना दिया है.
02 अगस्त को अनुपालन का जो हलफनामा दाखिल किया गया है वह भी 19 दिसंबर, 2022 के आदेश को चुनौती देने वाला है. अदालत ने नाराजगी जताते हुए कहा कि आदेश के अनुपालन के हलफनामे में किसी भी योजना को तैयार करने के मामले में कुछ भी नहीं कहा गया है. हलफनामे के द्वारा मामले को अन्य बेंच में चुनौती दिए बिना, एकल पीठ और डिवीजन बेंच द्वारा पुष्टि किए गए मुद्दों को चुनौती देने और उन्हें फिर से खोलने का साहस किया गया है.
बेंच ने कथित अवमाननाकर्ताओं द्वारा दायर अनुपालन के हलफनामे पर गौर करते हुए इस तथ्य पर आपत्ति जताई कि इसमें अदालत के पहले के आदेशों के अनुपालन में किसी भी महत्वपूर्ण कदम का उल्लेख नहीं किया गया है. यह अदालत मानती है कि एडमिरल डीके जोशी और केशव चंद्रा की ओर से अदालत की घोर और निंदनीय अवमानना की गई है. ऐसे में केशव चंद्रा को निलंबित करने का निर्देश देने के अलावा कोई अन्य विकल्प नहीं बचा.
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