इकलौता ऐसा देश जहां नहीं मिलेगा कोई बेघर और न मिलेगा भिखारी, जानें कारण
Assembly elections 2023: पांच राज्यों में विधान सभा चुनावों की गर्मी चरम पर है। कहां सत्ता परिवर्तन होगा या नहीं होगा यह तो नतीजों के बाद ही पता चलेगा। बीते कुछ चुनावों में यह देखा गया है कि इलाक़े की जनता की नाराज़गी के बावजूद वहाँ के मौजूदा विधायक या सांसद ने पिछले चुनावों के मुक़ाबले काफ़ी अधिक संख्या से जीत हासिल की। ऐसे में चुनावी मशीनरी पर सवाल खड़े होना ज़ाहिर सी बात है। जो भी नेता हारता है वो इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (ईवीएम) या चुनावी मशीनरी को दोषी ठहराता है। ताज़ा मामला मध्य प्रदेश का है जहां ईवीएम के ट्रायल के दौरान गड़बड़ पाई गई। इस पर वरिष्ठ कांग्रेसी नेता और मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्य मंत्री दिग्विजय सिंह ने चुनाव आयोग को एक सुझाव दिया है जिससे ऐसी गड़बड़ी पर कुछ हद तक लगाम लगाई जा सकती है।
ऐसा नहीं है कि किसी एक दल के नेता ही ईवीएम की गड़बड़ी या उससे छेड़-छाड़ का आरोप लगाते आए हैं। इस बात के अनेकों उदाहरण हैं जहां हर प्रमुख दलों के नेताओं ने कई चुनावों के बाद ईवीएम में गड़बड़ी का आरोप लगाया है। चुनाव आयोग की बात करें तो वो इन आरोपों का शुरू से ही खंडन कर रहा है। आयोग के अनुसार ईवीएम में गड़बड़ी की कोई गुंजाइश ही नहीं है। 1998 में दिल्ली, राजस्थान और मध्य प्रदेश के विधान सभा की कुछ सीटों पर ईवीएम का इस्तेमाल हुआ था। परंतु 2004 के आम चुनावों में पहली बार हर संसदीय क्षेत्र में ईवीएम का पूरी तरह से इस्तेमाल हुआ। 2009 के चुनावी नतीजों के बाद इसमें गड़बड़ी का आरोप भाजपा द्वारा लगा। ग़ौरतलब है कि दुनिया के 31 देशों में ईवीएम का इस्तेमाल हुआ परंतु ख़ास बात यह है कि अधिकतर देशों ने इसमें गड़बड़ी कि शिकायत के बाद वापस बैलट पेपर के ज़रिये ही चुनाव किये जाने लगे।
किसी भी समस्या की शिकायत करने से उसका हल नहीं खोजा जाता। परंतु जब शिकायत के साथ समाधान का सुझाव भी दिया जाए तो उस पर गौर करना चाहिए। हाल ही में मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्य मंत्री और वरिष्ठ कांग्रेसी नेता दिग्विजय सिंह ने आगामी विधान सभा चुनावों में ईवीएम की गड़बड़ी पर आरोप लगाए और उन्हें रोकने के लिए सुझाव भी दिया। सिंह ने आरोप लगाया कि मध्य प्रदेश में ईवीएम के ट्रायल के दौरान इसमें गड़बड़ी पायी गई। उन्होंने चुनाव आयो को सुझाव दिया कि यदि ईवीएम से निकलने वाली VVPAT की पर्ची को मतदाता को दे दिया जाए। इन पर्चियों को अलग से रखी मतपेटी में डाल दिया जाए। मतगणना के पहले ऐसी किसी भी दस पेटियों के वोट गिन लिए जाएँ और बाद में उनका मिलान काउंटिंग यूनिट के साथ कर लिया जाए। यदि नतीजे मेल खाते हैं तो काउंटिंग यूनिट के नतीजे को घोषित कर दिया जाए। दिग्विजय सिंह के इस सुझाव पर सोशल मीडिया पर हज़ारों प्रतिक्रियाएँ आई हैं। अधिकतर लोगों ने इस सुझाव को व्यावहारिक माना है।
जब भी कभी कोई प्रतियोगिता होती है तो उसका संचालन करने वाले शक के घेरे में न आएँ इसलिए उस प्रतियोगिता के हर कृत्य को सार्वजनिक रूप से किया जाता है। आयोजक इस बात पर ख़ास ध्यान देते हैं कि उन पर पक्षपात का आरोप न लगे। इसीलिए जब भी कभी आयोजकों को कोई सुझाव दिये जाते हैं तो यदि वे उन्हें सही लगें तो उसे स्वीकार लेते हैं। ऐसे में उन पर पक्षपात का आरोप नहीं लगता। ठीक उसी तरह एक स्वस्थ लोकतंत्र में होने वाली सबसे बड़ी प्रतियोगिता चुनाव हैं। उसके आयोजक यानी चुनाव आयोग को उन सभी सुझावों को खुले दिमाग़ से और निष्पक्षता से लेना चाहिए। चुनाव आयोग एक संविधानिक संस्था है, इसे किसी भी दल या सरकार के प्रति पक्षपात होता दिखाई नहीं देना चाहिए। यदि चुनाव आयोग ऐसे सुझावों को जनहित में लेती है तो मतदाताओं के बीच भी एक सही संदेश जाएगा, कि चाहे ईवीएम पर गड़बड़ियों के आरोप लगें पर चुनाव आयोग किसी भी दल के साथ पक्षपात नहीं करता।
जहां तक इवीएम पर दिग्विजय सिंह के सुझाव की बात है, सभी राजनैतिक दलों को इस सुझाव का सम्मान करना चाहिए। इसके साथ ही हर प्रमुख राजनैतिक दल को भी ऐसे सुझाव देने चाहिए जिससे कि चुनाव आयोग को भी उन सुझावों को लागू करने में दिक़्क़त न हो। यदि ईवीएम की गुणवत्ता पर और उसकी कार्य पद्धति पर चुनाव आयोग को पूरा विश्वास है तो चुनाव आयोग को इस सुझाव पर एक सर्वेक्षण भी करा लेना चाहिए। इससे यदि मतदाता को भी कुछ सुझाव देने होंगे तो वो भी चुनाव आयोग के पास आ जाएँगे। ऐसे में निष्पक्ष चुनाव कराने के लिए जाने जाने वाली संस्था भी जनता के बीच अपना पक्ष रख पाएगी। यदि चुनाव आयोग को दिग्विजय सिंह के सुझाव पर आपत्ति नहीं है तो आगामी पाँच राज्यों के चुनावों में ऐसा प्रयोग कर लेना चाहिए। ऐसा करने से दूध का दूध और पानी का पानी सामने आ जाएगा। इतना ही नहीं भारत जैसे मज़बूत लोकतंत्र को और मज़बूती भी मिलेगी।
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