आखिर क्यों सृष्टि के रचयिता ब्रह्मदेव की पूजा नहीं होती है? यहां जानिए इसकी वजह
ऐसी वाणी बोलिए, मन का आपा खोये। औरन को शीतल करे, आपहुं शीतल होए।। कबीर दास जी का यह दोहा हमें बचपन से ही सिखाता आया है कि चाहे कुछ भी हो हमें ऐसी भाषा बोलनी चाहिए जो सुनने वाले के मन को आनंदित करे। जहां मीठे वचन सुनने वालों को सुख देते हैं, वहीं हमारे मन को भी आनंदित करते हैं। परंतु क्या हमारे द्वारा चुने गये जनप्रतिनिधि इसका अनुसरण कर रहे हैं? या सत्ता के अहंकार में आपा खो रहे हैं। भारत के नये संसद भवन के पहले सत्र में जो हुआ, वो अनहोनी बात थी। नई संसद के पहले सत्र में ऐसा होना देश के लोकतंत्र के लिए बहुत शर्मनाक है।
ऐसा नहीं है कि संसद या विधान सभा में हंगामा पहली बार हुआ है कि जब सदन की गरिमा को वहाँ बैठे नेताओं ने तार-तार किया। ऐसा भी नहीं है कि संसद में ऐसी असभ्यता केवल भारत में ही होती है। दुनिया के कई देशों में आजकल ऐसे दृश्य दिखाई देने लगे हैं। हम इसकी केवल निंदा करके छोड़ देते हैं। ऐसी घटनाओं से कोई भी सबक़ नहीं लेता। जब भी कभी, किसी भी दल के नेता द्वारा, सदन में या सदन के बाहर असभ्यता का परिचय दिया जाता है तो उसके आचरण से न सिर्फ़ उस नेता के पारिवारिक संस्कार बल्कि उसके दल के संस्कारों का भी परिचय मिलता है। उनकी छवि पर इसका बुरा असर पड़ता है, अगर उन्हें अपनी छवि की चिंता हो तो।
कोई मशहूर व्यक्ति न सिर्फ़ राजनीति में बल्कि किसी भी अन्य क्षेत्र में क्यों न हो अगर शांत और शालीन स्वभाव के हैं तो उनका ज़िक्र हमेशा सम्मान के साथ ही होता है। वहीं जब भी कभी कोई नेता अपने बुरे व्यवहार या कटु वचनों के कारण चर्चा का विषय बनते हैं तो वे इस बात से बेख़बर होते हैं कि उनके ऐसे व्यवहार से उनके वोटरों पर कितना विपरीत असर पड़ता है। पर आजकल तो वोटर भी ऐसे होते जा रहे हैं जो अनेक अन्य कारणों से ऐसे ही नेताओं को पसंद करते हैं। राजनैतिक दलों की बात करें तो सत्ता में बने रहने के लिए उन्हें भी अधिक वोट दिलाने वाली ऐसी दुधारू गायों की ज़रूरत पड़ती रहती है, जो हंगामा खड़ा करके ध्यान आकर्षित करें।
असभ्य नेता जब सदन में होते हैं तो वो भूल जाते हैं कि उनके विपक्ष में बैठे नेता भी एक जनप्रतिनिधि हैं। वो भी उतने ही सम्मान के हक़दार हैं जितने कि वे स्वयं को मानते हैं। परंतु सत्ता के नशे में चूर कुछ नेता, चाहे किसी भी दल के क्यों न हों अपने विपक्षी नेताओं को आजकल आम जनता की तरह समझने लगे हैं।
नेताओं द्वारा असभ्य व्यवहार किसी भी तरह का हो सकता है। फिर वो चाहे किसी धर्म विशेष के प्रति हो या किसी जाति या वर्ग के प्रति हो, ऐसे असभ्य नेता कभी भी कोई मौक़ा नहीं छोड़ते। इन असभ्य नेताओं को, यदि वे सत्तारूढ़ दल के हों, उनके दल का समर्थन प्राप्त हो, तो वे किसी की भी परवाह नहीं करते। ऐसे में कोई आम नागरिक यदि किसी सभा में इनसे इनकी असभ्यता पर सवाल भी उठाए तो वे घमंड के चलते उनके सवाल का उत्तर नहीं देते। वहीं यदि कोई पत्रकार इन नेताओं से सवाल पूछे तो उसे इस बात की गारंटी नहीं होती कि ऐसे नेताओं से सवाल पूछने पर उसकी नौकरी बरकरार रहेगी या जायेगी। इसलिए ऐसे असभ्य नेता हमारे समाज में बेख़ौफ़ घूमते हैं।
यदि किसी एक दल के नेता को किसी अन्य दल के नेता के ख़िलाफ़ की गई अपमानजनक टिप्पणी के लिए दोषी पाया जाता है तो उसके ख़िलाफ़ लोकसभा या राज्य सभा या विधान सभा के स्पीकर कारवाई कर सकते हैं। अन्यथा उन पर क़ानूनी करवाई की जा सकती है, अगर उन्होंने ऐसा व्यवहार सदन के बाहर किया हो। अदालत यदि ऐसे नेता को दोषी मानती है तो उसे क़ानून के हिसाब से सज़ा भी सुना सकती है। परंतु जब भी कभी सत्तापक्ष के किसी नेता द्वारा ऐसी गलती होती है तो विपक्षी दल के नेता की गलती पर कड़ी से कड़ी सज़ा की माँग करने वाले सत्तारूढ़ दल अपने ही दल के नेता को एक नोटिस दिलवाकर केवल औपचारिकता ही करवाता है। सरकारें आती जाती रहतीं हैं पर यह मानसिकता क़ायम रहती है।
मामला किसी धर्म विशेष के लोगों पर हमले का हो या किसी जाति या वर्ग के लोगों पर हमले का हो, ऐसे हमले रुकने चाहिए। भारत जैसे देश के लिए कहा जाता है कि ‘चार कोस कोस पर पानी बदले आठ कोस पर वाणी’ यानी हमारे देश में विविधताओं का होना प्राचीन युगों से चला आ रहा है। भारत में अनेक धर्मों, जातियों, विचारों, संस्कृतियों और मान्यताओं से सम्बन्धित विभिन्नताएँ हैं। किन्तु उनके मेल से एक खूबसूरत देश का जन्म हुआ है, जिसे हम भारत कहते हैं। भारत की ये विविधताएँ एकता में बदल गई हैं, जिसने इस देश को विश्व का एक सुन्दर और सबल राष्ट्र बना दिया है। शायद इसीलिए भारत के लिए कहा गया है कि ‘अनेकता में एकता : मेरे देश की विशेषता’। इसलिए हमें सभी धर्मों, विचारधाराओं और संस्कृतियों का सम्मान करना चाहिए।
हमारे द्वारा चुने गये नेता, चाहे किसी भी दल के क्यों न हों, चुनाव जीतते ही यदि अपनी असभ्यता का परिचय देने लग जाएँ और उनके दल द्वारा उन्हें किसी भी तरह दंड न दिया जाए। तो अगली बार जब भी ऐसे नेता जनता के सामने याचक बन कर आएँ तो वोटरों द्वारा ऐसे नेताओं का बहिष्कार कर उन्हें आईना ज़रूर दिखाया जाए। ऐसा करने से इन असभ्य नेताओं में एक मज़बूत संदेश जाएगा और वे ऐसी गलती करने से पहले कई बार सोचेंगे। तब शायद उन्हें कबीरदास जी का दोहा याद आएगा।
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