रजनीश कपूर, वरिष्ठ पत्रकार
भारत एक्सप्रेस
मांसाहार से परहेज़ क्यों?
कुछ वर्ष पहले बनी एक फ़िल्म ‘नायक’ आज तक चर्चा में है. इस फ़िल्म में दिखाया गया कि किस तरह एक दिन का मुख्य मंत्री जनता के विकास के लिए वो सब करता है जो एक मुख्य मंत्री को वास्तव में करना चाहिए.
घरों को बर्बाद करता सट्टा
ऐसा नहीं है कि जांच एजेंसियों के पास इस ख़तरनाक खेल की कोई जानकारी नहीं है. पिछले दिनों कई गेमिंग एप की शिकायत मिलने पर जांच एजेंसियों ने कड़ी कार्यवाही भी की. परंतु इन गोरखधंधे को चलाने वाले कभी पकड़े नहीं जाते.
प्रदूषण के असली कारण खोजने होंगे
सरकार को प्रदूषण की समस्या से छुटकारा पाना है तो उसे इसके असल कारणों पर वार करना होगा तभी हमारा पर्यावरण स्वच्छ हो पाएगा।
देश में पुलिस सुधार लागू हों
जब भी हमें पुलिस थाने या किसी पुलिस अधिकारी के संपर्क में आना पड़ता है तो मन में एक तनाव सा पैदा हो जाता है। इसका कारण है पुलिस के व्यवहार को लेकर हमारी सोच।
क़र्ज़ की किश्तें: कितनी आसान, कितनी पेचीदा
‘नो कॉस्ट ईएमआई’ के ज़्यादातर मामलों में यह सुविधा ग्राहक को मुफ़्त में ही पड़ती है। परंतु वहीं कुछ वित्तीय संस्थान या बैंक इसमें ‘फाइल चार्ज’ जोड़ लेते हैं, जिसका भार भी ग्राहक को ही सहना पड़ता है।
क्या आपका मोबाइल फोन सुरक्षित है?
कुछ वर्षों पहले जब ‘पेगसस’ द्वारा जासूसी का मामला उठा था तो यह सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचा जहां ये आज भी लंबित पड़ा है।
चुनावी मौसम में EVM पर फिर उठे सवाल
Election Commission. ऐसे में चुनावी मशीनरी पर सवाल खड़े होना ज़ाहिर सी बात है। जो भी नेता हारता है वो इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (ईवीएम) या चुनावी मशीनरी को दोषी ठहराता है।
निठारी कांड: सीबीआई पर फिर उठे सवाल
पिछले दिनों इलाहाबाद हाई कोर्ट ने 2006 के चर्चित निठारी हत्या कांड के दोनों आरोपियों को बरी कर दिया। जस्टिस अश्वनी कुमार मिश्रा और जस्टिस एसएएच रिजवी की खंडपीठ ने कहा कि, “निठारी हत्याकांड की जांच करने में अभियोजन पक्ष की विफलता, जांच एजेंसियों द्वारा जनता के भरोसे के साथ विश्वासघात से कम नहीं है."
बैंक फ्रॉड: क्या सही रफ़्तार से हो रही जांच?
जिन मामलों में सीबीआई या अन्य जांच एजेंसियों को तत्तपर्ता दिखानी होती है वहां तो रातों-रात गिरफ़्तारी भी हो जाती है और कार्यवाही भी गति पकड़ती है. परंतु जहां ढील देने का मन होता है या ऊपर से ढील देने के ‘निर्देश’ होते हैं, वहां विजय माल्या, नीरव मोदी और मेहूल चौकसी जैसे आर्थिक अपराधियों को देश छोड़ कर भाग जाने का मौक़ा भी दे दिया जाता है.
‘हेल्थ फूड’ के नाम पर हमें क्या खिलाया जा रहा है?
बहुराष्ट्रीय कंपनियों के उत्पादनों ने बाज़ार में एक ऐसा मायाजाल बिछाया है जिसके शिकंजे में हम बड़ी आसानी से फंस जाते हैं।