अखिलेश यादव और सुब्रत पाठक.
Parliamentary Election: इत्र नगरी के नाम से मशहूर उत्तर प्रदेश का कन्नौज शहर के इतिहास में सिर्फ तीन बार ऐसा मौका आया है, जब यहां की अवाम ने किसी महिला को अपनी रहनुमाई करने के लिए देश की सबसे बड़ी पंचायत में दिल्ली भेजा है.
दिल्ली की पूर्व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित के नाम 1984 में कन्नौज की पहली महिला सांसद होने का रिकॉर्ड है. उसके करीब तीन दशक बाद 2012 में डिंपल यादव ने निर्विरोध निर्वाचित होकर नया रिकॉर्ड बनाया था. 2014 के लोकसभा चुनाव में डिंपल तीसरी बार कन्नौज से सांसद बनीं.
कन्नौज है बेमिसाल
इत्र की खुशबू दुनियाभर में फैलाने वाला कन्नौज उत्तर प्रदेश के साथ-साथ देश की सियासत में अहम स्थान रखता है. कन्नौज संसदीय क्षेत्र को उत्तर प्रदेश के हाई-प्रोफाइल क्षेत्रों में गिना जाता है. देश के बड़े समाजवादी नेता राम मनोहर लोहिया के अलावा तीन पूर्व मुख्यमंत्री भी यहां से सांसद रह चुके हैं.
दिल्ली की मुख्यमंत्री रहीं दिवंगत शीला दीक्षित, यूपी के मुख्यमंत्री रहे दिवंगत मुलायम सिंह यादव और उनके बेटे सपा प्रमुख अखिलेश यादव कन्नौज संसदीय क्षेत्र का प्रतिनिधित्व कर चुके हैं.
देश के प्राचीन शहरों में शुमार कन्नौज को अपनी अलग पुरातात्विक और सांस्कृतिक विरासत के लिए जाना जाता है. स्थानीय लोगों और वाल्मीकि रामायण, महाभारत एवं पुराण के अनुसार के अनुसार, कन्नौज का प्राचीन नाम कन्याकुज्जा या महोधी हुआ करता था. आगे चलकर इसका नाम कन्नौज हो गया, जो आज भी प्रचलित है. स्थानीय लोग बताते हैं कि अमावासु ने एक राज्य की स्थापना की और बाद में कन्याकुज्जा (कन्नौज) इसकी राजधानी बनी. महाभारत काल में यह क्षेत्र बेहद चर्चित रहा.
सपा का गढ़
यह सीट सपा का गढ़ मानी जाती है. साल 1998 से 2014 तक इस सीट पर सपा का कब्जा रहा है. बीते सोमवार (22 अप्रैल) को सपा की ओर से तेज प्रताप सिंह यादव को कन्नौज सीट के लिए अपना उम्मीदवार नामित किया गया. तेज, अखिलेश के भतीजे और राजद सुप्रीमो लालू यादव के दामाद हैं. तेज प्रताप के पिता दिवंगत रणवीर सिंह यादव, अखिलेश यादव के चचेरे भाई थे.
हालांकि सपा ने 48 घंटों में ही तेज प्रताप को यहां से हटा दिया अब इस सीट से सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव चुनाव मैदान में हैं. अखिलेश का मुकाबला भाजपा उम्मीदवार और निवर्तमान सांसद सुब्रत पाठक से होगा. वहीं बसपा ने यहां से अकील अहमद पट्टा को मैदान में उतारा था, लेकिन अब खबर है कि उनका टिकट काट दिया गया है. पार्टी ने अब यहां से इमरान बिन जफर को मैदान में उतारा है. यहां चौथे चरण में 13 मई को मतदान होंगे.
दूसरे चरण में 26 अप्रैल को उत्तर प्रदेश की अमरोहा, मेरठ, बागपत, गाजियाबाद, गौतमबुद्धनगर, बुलंदशहर, अलीगढ़ और मथुरा सीटों पर मतदान होगा. पहले चरण में 19 अप्रैल को सहारनपुर, कैराना, मुजफ्फरनगर, बिजनौर, नगीना, मुरादाबाद, रामपुर और पीलीभीत सीटों पर वोटिंग हो चुकी है.
कन्नौज उत्तर प्रदेश के 80 लोकसभा निर्वाचन क्षेत्रों में से एक है. कन्नौज सीट में छिबरामऊ, तिर्वा, कन्नौज, बिधूना और रसूलाबाद समेत पांच विधानसभा क्षेत्र शामिल हैं. यह निर्वाचन क्षेत्र एक सामान्य सीट है, अनुसूचित जाति (एससी) और अनुसूचित जनजाति (एसटी) के लिए आरक्षित नहीं है. भारतीय जनता पार्टी (भाजपा), समाजवादी पार्टी (सपा) और बहुजन समाज पार्टी (बसपा) इस निर्वाचन क्षेत्र में मुख्य दल हैं.
डिंपल यादव का सियासी सफर
2009 के लोकसभा चुनाव में अखिलेश यादव फिरोजाबाद और कन्नौज से लोकसभा प्रत्याशी थे. उन्होंने दोनों जगह से जीत दर्ज की थी, लेकिन बाद में अखिलेश यादव ने फिरोजाबाद संसदीय क्षेत्र को छोड़ दिया और यहां से पत्नी डिंपल यादव को पहली बार चुनाव मैदान में उतारा.
हालांकि कांग्रेस प्रत्याशी राज बब्बर ने डिंपल यादव को उनके पहले ही चुनाव में शिकस्त दी थी. 2012 के कन्नौज के लोकसभा उपचुनाव में डिंपल यादव पहली बार निर्विरोध सांसद निर्वाचित हुईं, उसके बाद वह 2014 में कन्नौज से फिर 2019 के उपचुनाव में मैनपुरी से लोकसभा सांसद निर्वाचित हुईं.
2012 कन्नौज लोकसभा उपचुनाव
2012 में उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी (सपा) पूर्ण बहुमत के साथ यूपी की सत्ता में आई थी. उसके बाद कन्नौज संसदीय क्षेत्र के तत्कालीन सांसद अखिलेश यादव ने लोकसभा की सदस्यता से इस्तीफा देकर मुख्यमंत्री पद की शपथ ली. सीट खाली होने के बाद यहां उपचुनाव हुआ था.
2012 के कन्नौज संसदीय उपचुनाव में कांग्रेस और बहुजन समाज पार्टी (बसपा) ने किसी को भी उम्मीदवार नहीं बनाया वहीं संयुक्त समाजवादी पार्टी के दशरथ सिंह शंखवार और निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर संजू कटियार ने अपना नामांकन किया.
भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने नामांकन के आखिरी दिन जगदेव सिंह यादव के नाम की घोषणा की, लेकिन समय सीमा समाप्त हो जाने की वजह से वह अपना नामांकन दाखिल नहीं कर पाए थे. हालांकि, भाजपा की तरफ से यह आरोप लगाया गया था कि डिंपल यादव को निर्विरोध सांसद बनाने के लिए उसके प्रत्याशी को नामांकन करने से रोका गया था.
उपचुनाव की प्रक्रिया 30 मई 2012 को शुरू हुई थी, जिसमें कुल तीन लोगों ने नामांकन पत्र दाखिल किए थे. बाद में दोनों प्रत्याशियों के नाम वापस लेने के बाद सिर्फ डिंपल ही चुनाव मैदान में रह गई थीं. उनके निर्विरोध निर्वाचन की औपचारिक घोषणा की गई और इसके साथ ही वह उत्तर प्रदेश से लोकसभा के लिए निर्विरोध निर्वाचित होने वाली पहली महिला और अविभाजित उत्तर प्रदेश की वह तीसरी सांसद बन गई थीं.
कन्नौज का सियासी इतिहास
कन्नौज संसदीय क्षेत्र के सियासी इतिहास की बात करें तो इस क्षेत्र से देश एवं प्रदेश की सियासत के कई बड़े चेहरे चुनावी मैदान में उतरे और लोकसभा में कन्नौज का प्रतिनिधित्व करने पहुंचे.
कन्नौज लोकसभा क्षेत्र पहले फर्रुखाबाद संसदीय क्षेत्र का हिस्सा हुआ करता था. 1967 में कन्नौज में पहली बार लोकसभा का चुनाव हुआ और पहले चुनाव में संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी के प्रत्याशी के तौर पर राम मनोहर लोहिया विजयी हुए. इस तरह से वह यहां से पहले सांसद बने.
1971 में कांग्रेस के सत्य नारायण मिश्रा, 1977 में जनता पार्टी के राम प्रकाश त्रिपाठी तो 1980 में जनता पार्टी के ही टिकट पर छोटे सिंह यादव सांसद चुने गए. 1984 के चुनाव में शीला दीक्षित ने कांग्रेस के टिकट पर चुनाव में जीत हासिल की.
1989 और 1991 के चुनाव में जनता दल के टिकट पर छोटे सिंह यादव ने जीत हासिल की. वह 3 बार सांसद चुने गए. 1996 के चुनाव में बीजेपी ने पहली बार कन्नौज में जीत का खाता खोला और चंद्र भूषण सिंह सांसद बने.
1998 में यह सीट सपा के पास चली गई. 1999 के लोकसभा चुनाव में पूर्व मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव ने अपनी किस्मत आजमाई और सांसद चुने गए, लेकिन बाद में उन्होंने यह सीट छोड़ दी जिस वजह से उपचुनाव कराया गया.
2000 के उपचुनाव में उनके बेटे अखिलेश यादव विजयी हुए. 2004 और 2009 के चुनाव में भी वह सांसद चुने गए. 2012 के उपचुनाव में अखिलेश की पत्नी डिंपल ने भी किस्मत आजमाई और निर्विरोध चुनी गईं. 2014 के लोकसभा चुनाव में तो वह फिर जीत गईं, लेकिन 2019 के लोकसभा चुनाव में सुब्रत पाठक ने कन्नौज में फिर से कमल का झंडा बुलंद किया. यह दूसरी बार था जब भाजपा ने यह सीट जीती थी; पहली बार ऐसा 1996 में हुआ था.
-भारत एक्सप्रेस