आखिर रम पीने के बाद क्यों लगने लगती है गर्मी? जानिए इसके पीछे की असल वजह
By Uma Sharma
रविरंजन आनंद @ बिहार।
बक्सर लोकसभा क्षेत्र में सबसे अधिक ब्राह्मण मतदाताओं की संख्या है। इसके बाद यादव और राजपूत वोटर हैं। पिछले चुनावों पर नजर डालें तो यहां भारतीय जनता पार्टी को ही सबसे ज्यादा बार जीत मिली है। भाजपा यहां पर, लोकसभा चुनाव में सबसे अधिक 6 बार जीती। 1984 के बाद से ही कांग्रेस यहां से एक बार भी चुनाव नहीं जीत सकी।
पौराणिक मान्यताएं हैं कि जहां आज बिहार का बक्सर जिला है, वो जगह पहले भगवान राम की शिक्षा स्थली थी। महर्षि विश्वामित्र से इसी स्थान पर भगवान राम और लक्ष्मण ने शुरूआती शिक्षा ग्रहण की थी। वहीं, ऐतिहासिक तौर पर देखें तो 1764 में बक्सर की लड़ाई के बाद ही पक्का हो गया था कि ईस्ट इंडिया कंपनी भारत पर राज करेगी।
अब पौराणिक और ऐतिहासिक मुद्दे से हटकर इस चुनावी मौसम में चुनाव के मुद्दे पर आते हैं। बक्सर लोकसभा क्षेत्र का प्रतिनिधित्व 1996 से बीजेपी के हाथों में रहा है। वहीं, 2009 में मामूली अंतर से राजद के उम्मीदवार जगदानंद सिंह को जीत मिली थी। हालांकि, 2014 से भाजपा के अश्विवनी चौबे यहां से लगातार सासंद बनते आ रहे हैं।
2024 के आगामी लोकसभा चुनाव में अश्विवनी चौबे का टिकट फंसता नजर आ रहा है, क्योंकि चौबे के प्रति आमजन में नाराजगी देखी जा रही है। इसके अलावा जिला पार्टी इकाई के स्तर पर भी विरोध के स्वर उठ रहे हैं। पार्टी के कई पूर्व जिलाध्यक्ष्यों ने उनके खिलाफ सड़क से पार्टी हाईकमान तक अपना विरोध जताया। पार्टी कार्यकर्ताओं ने भी समय-समय पर चौबे के प्रति अपनी नाराजगी जाहिर की है।
आलोचक कहते हैं कि क्षेत्र में विकास कार्यों को लेकर अश्विवनी चौबे का उदासीन रवैया रहा है। चौबे पर एक जाति विशेष के लिए कार्य करने का आरोप गाहे-बेगाहे लगता रहा है। ऐसे में भाजपा अब चौबे को टिकट देकर जल्दीबाजी में कोई निर्णय नहीं लेना चाहती है।
केंद्र की सत्तारूढ़ पार्टी भाजपा के समक्ष विपक्ष ने सुधाकर सिंह जैसे मजबूत उम्मीदवार को उतारा है। राजद उम्मीदवार सुधाकर सिंह के चुनावी मैदान में आने के बाद से ही स्थानीय स्तर पर यह चर्चा है कि अश्विनी चौबे उनके सामने कहीं कमजोर न पड़ जाएं । इस तरह का फीडबैक भाजपा को भी मिल रहा है। इसी असहजता के कारण बीजेपी उम्मीदवार को लेकर अभी तक निर्णय नहीं ले पायी है।
सूत्रों के अनुसार, भाजपा में चार-पांच नए नामों पर चर्चा चल रही है। अश्विनी चौबे के अलावा भाजपा से चार-पांच नए नामों पर टिकट को लेकर मंथन का दौर जारी है। जिसमें आईपीएस आनंद मिश्रा, पूर्व विधानसभा प्रत्याशी प्रदीप दुबे, पूर्व सासंद के बेटे शिशिर कुमार चौबे, डॉ मनोज कुमार मिश्रा और प्रो. एके दूबे के साथ ही डॉ राजेश मिश्रा का भी नाम चल रहा है, लेकिन इन सभी नामों में सबसे भारी आईपीएस आनंद मिश्रा पड़ रहे हैं। क्योंकि आईपीएस मिश्रा असम कैडर के अधिकारी हैं, जहां उनकी पहचान एक ईमानदार अधिकारी की रही है। वह असम के मुख्यमंत्री हेंमत बिस्वा शर्मा के भी करीबी बताये जाते हैं।
स्थानीय और पार्टी स्तर पर चर्चा है कि यदि आनंद मिश्रा को चुनावी मैदान में उतरा जाता है तो वो राजद उम्मीदवार सुधाकर सिंह से अधिक मजबूत साबित हो सकते हैं। इसके कई कारण हैं। एक तो अश्विनी चौबे के प्रति क्षेत्र के आमजन में असंतोष है, चेहरा बदलने पर लोग संतुष्ट हो सकते हैं। दूसरे, भाजपा में पार्टी स्तर पर भितरघात भी नहीं होगा।
भाजपा को यह भी डर है कि यदि अश्विनी चौबे को टिकट दिया जाता है तो नाराज कार्यकर्ताओं को भितरघात करने का एक मौका मिल जायेगा, जिसका सीधे लाभ सुधाकर सिंह को मिल सकता है। वैसे सुधाकर सिंह की छवि भी लोगों के बीच मिलनसार रही है, जो लोगों के हर दुख-सुख में शामिल रहते हैं। इसका लाभ भी राजद उम्मीदवार को मिल सकता है।
चौबे से लोग असंतुष्ट माने जा रहे हैं, यदि उनकी जगह भाजपा उम्मीदवार के तौर पर आनंद मिश्रा की बात शुरू हो जाती है…तो उनकी छवि साफ-सुथरी और एक सख्त पुलिस ऑफिसर वाली रही है। उम्मीदवार बनाए जाने पर, वो तेज-तर्रार और व्यापक दृष्टिकोण वाले जनप्रतिनिधि भी साबित हो सकते हैं।
लोगों के बीच ऐसी चर्चा है कि अखिल भारतीय सेवा में रहने के कारण आनंद मिश्रा का व्यापक दृष्टिकोण है, जिसका लाभ क्षेत्र और देश के विकास में मिलेगा। भाजपा का बल युवा शक्ति को राजनीति में आर्कर्षित करने लेकर है। वहीं, अश्विनी चौबे एक थके हुए प्रत्याशी भी माने जा रहे हैं। जिस कारण भाजपा अभी बक्सर संसदीय क्षेत्र का प्रत्याशी घोषणा करने में अनिर्णय की स्थिति में है।
— भारत एक्सप्रेस
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