
Bihar Assembly Election 2025: बिहार विधानसभा चुनाव 2025 को लेकर कांग्रेस ने अपनी रणनीति को तेज कर दिया है. पार्टी की नजर इस बार दलित वोट बैंक पर है, और इसके लिए कांग्रेस ने बिहार में अपनी चुनावी गतिविधियों को तेज कर दिया है. राहुल गांधी ने अब तक इस साल दो बार पटना का दौरा किया है और आगामी दिनों में कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे तथा प्रियंका गांधी भी बिहार में कार्यक्रमों के माध्यम से चुनावी माहौल को गर्म करेंगे.
मल्लिकार्जुन खरगे की बिहार में जनसभाएं
कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे 22 फरवरी 2025 को बिहार के बक्सर जिले में जनसभा को संबोधित करेंगे, और इसके बाद 28 फरवरी 2025 को पश्चिम चंपारण में भी उनकी एक सभा आयोजित की जाएगी. इन सभाओं का नाम “जय बापू, जय भीम, जय संविधान” रखा गया है, जिसका उद्देश्य बिहार की दलित आबादी को कांग्रेस से जोड़ना है.
मल्लिकार्जुन खरगे की इन सभाओं के जरिए कांग्रेस का लक्ष्य दलित समुदाय से अपनी कड़ी सगाई करना है, और इस समाज में अपनी पकड़ मजबूत करना है. इससे पहले राहुल गांधी भी दलित समाज से जुड़ी घटनाओं और आयोजनों में हिस्सा ले चुके हैं, जैसे कि संविधान सुरक्षा सम्मेलन और माउंटेन मैन दशरथ मांझी के बेटे भागीरथ मांझी का कार्यक्रम.
कांग्रेस और आरजेडी गठबंधन में दलित नेताओं की कमी
बिहार में पासवान समाज से चिराग पासवान और जीतन राम मांझी बड़े दलित नेताओं के रूप में एनडीए का हिस्सा हैं. हालांकि कांग्रेस-आरजेडी गठबंधन में कोई प्रमुख दलित नेता नहीं है. यही कारण है कि कांग्रेस ने अब बिहार में दलित समुदाय के बीच अपनी साख बनाने की योजना बनाई है. कांग्रेस ने महसूस किया है कि दलित समाज में अपनी पकड़ बनाने से उसकी चुनावी संभावनाएं मजबूत हो सकती हैं, खासकर ऐसे समय में जब अन्य गठबंधन पार्टियां अपनी सीटों की संख्या बढ़ाने के लिए तैयारी कर रही हैं.
कांग्रेस अकेले चुनाव लड़ने की तैयारी में?
अब सवाल यह उठता है कि कांग्रेस बार-बार बिहार में क्यों दौरे कर रही है? क्या कांग्रेस अकेले बिहार चुनाव में उतरने की तैयारी कर रही है? सूत्रों के मुताबिक कांग्रेस अकेले चुनाव नहीं लड़ेगी, लेकिन आरजेडी के साथ सीट बंटवारे से पहले कांग्रेस अपनी ताकत दिखाना चाहती है. पिछले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को 70 सीटें मिली थीं, लेकिन उसे सिर्फ 19 सीटों पर ही जीत हासिल हो सकी थी. इस परिणाम से यह संकेत गया था कि कांग्रेस के कारण तेजस्वी यादव मुख्यमंत्री नहीं बन पाए.
इस बार संभावना जताई जा रही है कि आरजेडी कांग्रेस को 40 से ज्यादा सीटें देने के लिए तैयार नहीं है. वहीं विपक्षी गठबंधन में सीपीआई (एमएल) ज्यादा सीटों की मांग कर रही है, जबकि वीआईपी पार्टी को भी सीटें दी जानी होंगी. इससे जाहिर है कि कांग्रेस को नुकसान उठाना पड़ सकता है, और इसी कारण कांग्रेस अपनी स्थिति मजबूत करने के लिए पहले से ही बिसात बिछा रही है.
कांग्रेस को आरजेडी पर दबाव बनाने की रणनीति
कांग्रेस अब गठबंधन में मजबूरी का हिस्सा बनने की बजाय मजबूत साझेदार की भूमिका निभाना चाहती है. पार्टी का मुख्य उद्देश्य अपनी पसंद की सीटें हासिल करना है, जिनकी उसे पिछली बार कमी रही थी. सूत्रों के अनुसार, यदि इस बार कांग्रेस को अपनी पसंद की सीटें मिलती हैं, तो वह कुछ सीटों पर समझौता करने के लिए तैयार हो सकती है. कांग्रेस अब आरजेडी पर दबाव बनाने के लिए अपनी ताकत का प्रदर्शन कर रही है ताकि सीट बंटवारे में उसे पूरी तरह से सम्मान मिल सके.
राहुल गांधी के करीबी को बिहार कांग्रेस का प्रभारी बनाया
कांग्रेस ने बिहार की चुनावी टीम को भी मजबूत किया है. हाल ही में राहुल गांधी के करीबी युवा नेता कृष्णा अलावरु को बिहार कांग्रेस का नया प्रभारी नियुक्त किया गया है. कृष्णा अलावरु को राहुल गांधी का विश्वासपात्र माना जाता है और उनकी नियुक्ति से कांग्रेस को बिहार में आगामी चुनावों के लिए एक मजबूत नेतृत्व मिला है.
गठबंधन में कांग्रेस की स्थिति और भविष्य
कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष अखिलेश प्रसाद सिंह, जो लालू प्रसाद यादव के करीबी माने जाते हैं, के लिए यह चुनौती होगी कि वह गठबंधन में कांग्रेस को जरूरत से ज्यादा कुर्बानी न देने दें. हालांकि यदि ऐसी स्थिति आती है तो कांग्रेस आरजेडी को अपनी ताकत दिखा सकेगी. बिहार में कांग्रेस के दलित कार्ड का फायदा अंततः गठबंधन को ही होगा, क्योंकि यह कार्ड पूरे चुनावी परिदृश्य को प्रभावित कर सकता है.
कांग्रेस नेतृत्व ने इस बार बिहार में अपनी भविष्य की रणनीति तैयार करने की दिशा में काम शुरू कर दिया है, ताकि उसे आरजेडी के साए से बाहर निकलने की स्थिति मिल सके. इसके साथ ही, आगामी चुनावों में कांग्रेस की भूमिका और दलित वोट बैंक को लेकर उसकी रणनीति अहम साबित हो सकती है.
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-भारत एक्सप्रेस
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