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दिल्‍ली में ईदगाह के पास स्‍थापित हुई झांसी की रानी लक्ष्मीबाई की मूर्ति, हाईकोर्ट ने किया याचिका का निपटारा

दिल्‍ली के शाही ईदगाह पार्क में झांसी की रानी लक्ष्मीबाई की मूर्ति लगाने का मुस्लिम समुदाय की ओर से विरोध किया जा रहा था. हालांकि, अदालत के फैसले के बाद मूर्ति वहीं पर स्थापित की गई है.

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Delhi News: दिल्‍ली के शाही ईदगाह पार्क में झांसी की रानी लक्ष्मीबाई की मूर्ति लगाने के मामले में दायर याचिका का दिल्ली हाई कोर्ट ने निपटारा कर दिया है. एमसीडी ने कोर्ट में दावा किया कि प्रतिमा को उचित दूरी पर लगाया गया है.

इससे पिछली सुनवाई में कोर्ट को बताया गया था कि मुस्लिम समुदाय की मजहबी भावनाओं का ध्यान रखते हुए ईदगाह की दीवार से 200 मीटर की दूरी पर पार्क के कोने में झांसी बाकी रानी की मूर्ति लगाई गई है. दिल्ली हाई कोर्ट ने संबंधित एजेंसियों को निर्देश दिया था कि तीन सदस्यीय टीम उस जगह पर जाए और देखकर बताए कि मूर्ति कहां स्थापित की गई है. वहीं, डीडीए ने कहा था कि हम धार्मिक भावनाओं का सम्मान करते हैं. मूर्ति के तीन तरफ दीवार लगाई गई है. मूर्ति को पार्क के कोने में लगाया गया है. मूर्ति ईदगाह की दीवार से 200 मीटर दूर लगाई गई है.

शाही ईदगाह मैनेजिंग कमिटी ने लिखित में माफी मांगी

कोर्ट में मामले की सुनवाई के दौरान शाही ईदगाह मैनेजिंग कमिटी ने कोर्ट से लिखित माफी मांग ली थी. इससे पहले कोर्ट ने वकील को लिखित में माफीनामा देने को कहा था. कोर्ट ने कहा था कि कृपया साम्प्रदायिक राजनीति बको अदालत की चौखट से बाहर रखें. अपील में इस्तेमाल भाषा को अपमानजनक मानते हुए हाई कोर्ट ने कहा था कि साफ तौर पर यहां अदालत के जरिए साम्प्रदायिक राजनीति करने की कोशिश हो रही है. यहां अदालत को संबोधित नही किया जा रहा है. बल्कि अदालत के जरिए किसी और को संबोधित किया जा रहा है.

इलाके में कानून व्यवस्था बिगड़ने की दलील दी गई थी

कोर्ट ने कहा था कि यह वही इलाका है, जिसके सौन्दर्यीकरण का हाई कोर्ट ने स्थानीय पुलिस, डीडीए ओर एमसीडी को निर्देश दिया था. वह भी आपके ही लोगों के अनुरोध पर. पार्क से अतिक्रमण हटाकर जब ऑथोरिटीज ने काम करना शुरू किया तो आप प्रतिमा को मुद्दा बनाकर यहां आ गए. झांसी की रानी की प्रतिमा लगाने से इलाके में कानून व्यवस्था बिगड़ने की दलील पर नाराजगी भी जाहिर किया था.

कोर्ट ने कहा था वह नेशनल हीरो हैं. यह गर्व की बात है. कोर्ट ने कहा था कि याचिकाकर्ता शाही ईदगाह के आसपास के पार्क के रखरखाव का विरोध करने के लिए कोई कानूनी या मौलिक अधिकार नहीं है. समिति ने 1970 में प्रकाशित एक गजट अधिसूचना के हवाला दिया जिसमें कहा गया था कि शाही ईदगाह पार्क मुगल काल के दौरान निर्मित एक प्राचीन संपत्ति है, जिसका उपयोग नमाज अदा करने के लिए किया जा रहा है. यह भी कहा गया था कि इतने बड़े परिसर में एक समय में 50000 से अधिक लोग नमाज अदा कर सकते हैं.

– भारत एक्‍सप्रेस



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