
दिल्ली दंगा मामला
वर्ष 2020 दिल्ली दंगा मामले में दिल्ली पुलिस ने कथित आरोपी उमर खालिद, शरजील इमाम और अन्य की ओर से दायर जमानत याचिकाओं का विरोध करते हुए कहा कि ऐसा कुछ भी नहीं है, जिससे पता चले कि अभियोजन पक्ष ने आरोपियों के खिलाफ युएपीए मामले में निचली अदालत की कार्यवाही में देरी कराने का प्रयास किया है. साथ ही कहा कि त्वरित सुनवाई के अधिकार कोई मुफ्त पास नही है.
दिल्ली पुलिस ने कही ये बात
दिल्ली पुलिस की ओर से पेश एडिशनल सॉलिसिटर जनरल चेतन शर्मा और विशेष लोक अभियोजक अमित प्रसाद ने जस्टिस नवीन चावला और जस्टिस शैलिन्दर कौर की पीठ से कहा कि देरी के लिए आरोपी खुद जिम्मेदार है. उनके ओर से देरी करने का कभी भी प्रयास नही किया गया. यह बात निचली अदालत के रिकॉर्ड से पता चलता है. उन्होंने कहा कि आरोपों पर बहस चल रही हैं/ दूसरे आरोपी ने दलीलें पूरी कर ली है. वे सप्ताह की देरी चाहते थे. दिन प्रतिदिन सुनवाई के बावजूद आरोपी बहस के लिए आगे नही आ रहे है.
मामले को संतुलित किया जाना चाहिए था- एएसजी चेतन शर्मा
एएसजी चेतन शर्मा ने कहा कि देरी के मुद्दे को प्रत्येक मामले की जटिलता के साथ संतुलित किया जाना चाहिए था. आतंकवाद तथा राज्य की अखंडता से जुड़े मामलों में निर्णय अलग-अलग मानदंड का था. वैसे त्वरित सुनवाई एक आवश्यकता थी, लेकिन राष्ट्र-विरोधी गतिविधियों के मामलों में विचाराधीन कैदियों की लंबी कैद अपने आप में उन्हें जमानत पर रिहा करने का आधार नहीं है. खासकर जब तथ्य उनकी संलिप्तता को दर्शाते हैं. उन्होंने कहा कि समाज के अधिकार को व्यक्ति के अधिकार के ऊपर रखा जाना चाहिए. वर्तमान आरोपी उम्रकैद कारावास की सजा वाले अपराधों के तहत हिरासत में है.
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53 लोगों की चली गई जान
यह एक ऐसा मामला है जिसमें 53 लोगों की जान चली गई या उन्हें जान गंवाने के लिए मजबूर किया गया. कोर्ट के ही दो पीठों ने माना है कि एक साजिश रची गई थी और युएपीए लागू होता है. खालिद, शरजील इमाम और कई अन्य पर फरवरी 2020 के दंगों के कथित तौर पर मास्टरमाइंड होने के लिए आतंकवाद विरोधी कानून गैरकानूनी गतिविधियां अधिनियम और भारतीय दंड संहिता के प्रावधानों के तहत मामला दर्ज किया गया, जिसमें 53 लोग मारे गए थे और 700 से अधिक घायल हुए थे.
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