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जेल में कैदियों को मिलने वाली छुट्टी का प्रावधान अधिकारियों के कठोर बर्ताव की वजह से अपनी महत्ता कम कर देगा, थोड़ा दयालु हों: हाईकोर्ट

फरलो के एक मामले में आज हाईकोर्ट की जज ने अहम टिप्पणी की. उन्होंने कहा— अदालतों को जेल की कोठरियों के एकांत कैदी के मानसिक स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव न पड़ने को सुनिश्चित करने के लिए थोड़ा दयालु होना चाहिए.

Rohini Court

प्रतीकात्मक फोटो.

HC Comment On Furlough Leave: एक मामले की सुनवाई के दौरान ​दिल्ली हाईकोर्ट ने फरलो (जेल में मिलने वाली अवकाश) के संबंध में आज अहम टिप्पणी की. हाईकोर्ट ने कहा कि यदि फरलो (जेल में मिलने वाली अवकाश) का प्रावधान जेल नियमों की कठोर और यांत्रिक व्याख्याओं से बंधा हुआ है, तो यह अपना वास्तविक उद्देश्य और चमक खो देगा.

हाईकोर्ट में न्यायमूर्ति स्वर्ण कातां शर्मा ने कहा कि कैदियों के कल्याण के लिए बनाया गया (फरलो) परोपकारी प्रावधान अधिकारियों के कठोर व्याख्याओं (सख्त बर्ताव) की वजह से अपनी महत्ता कम कर देगा. न्यायमूर्ति स्वर्ण कातां शर्मा ने उक्त टिप्पणी करते हुए पॉस्को के तहत आजीवन कारावास भुगत रहे अभियुक्त को 3 सप्ताह के लिए फरलो देने का निर्देश देते हुए की.

न्यायमूर्ति स्वर्ण कातां शर्मा ने कहा कि अदालतों को जेल की कोठरियों के एकांत कैदी के मानसिक स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव न पड़ने को सुनिश्चित करने के लिए थोड़ा दयालु होना चाहिए. वह सोचे कठोर व्याख्या की वजह से उनके सुधार व पुनर्वास का मार्ग पटरी से न उतरे. उन्होंने कहा कि जेल नियमों में पैरोल और फरलो पर कैदी को रिहा करने के उद्देश्य बताए गए हैं. उसे सावधानी और दूरदर्शिता के साथ तैयार किया गया है. उसे सहानुभूति और समझ के माध्यम से ही पालन किया जाना चाहिए, जिससे लगे कि मानवता के साथ निष्पक्ष न्याय किया जा रहा है.

उन्होंने कहा— “जेल के दौरान फरलो कैदी की रचनात्मक आशा के रूप में है. जिससे वह अपने परिवारों के साथ फिर से जुड़ सके. उसे जेल की दीवारों से परे समाज में संबंध बनाने, भावनाएं पैदा करने एवं उज्जवल भविष्य की आशा को बढ़ावा देने का अवसर देने के लिए है.”

— भारत एक्सप्रेस

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